
गुरुवाणी/ केन्द्र
अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का हो व्यवहार में उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, वर्तमान अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र के अन्तिम चरम तीर्थंकर भगवान महावीर का पावन जन्म कल्याणक दिवस। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर को सादर भावांजलि समर्पित करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर के लिए लोकोत्तम शब्द का प्रयोग किया गया है। इस दुनिया में उत्तम पुरुष भी मिलते हैं तो मध्यम और निम्न स्तर के पुरुष भी उपलब्ध हो सकते हैं। श्रमण ज्ञातपुत्र को लोकोत्तम कहा गया है। दुनिया में और भी लोकोत्तम पुरूष हुए हैं। लोकोत्तम होना कोई सामान्य बात नहीं है। अरिहन्त-सिद्ध लोकोत्तम होते हैं, साधु और केवली प्रज्ञप्त धर्म भी लोकोत्तम होते हैं।
श्रमण ज्ञातपुत्र इसलिए लोकोत्तम हैं कि उनमें धर्म था। केवली प्रज्ञप्त धर्म उनके जीवन में था। केवली प्रज्ञप्त धर्म मूल में लोकोत्तम है, वो जिसमें होता है, वो व्यक्ति लोकोत्तम है। इसी कारण अरिहन्त, सिद्ध और साधु, जो केवली प्रज्ञप्त धर्म की साधना करने वाले हैं, वे लोकोत्तम हैं। भगवान महावीर का जीवन हमें आगम वांग्मय में भी उपलब्ध होता है। आयारो आगम के नवमें अध्ययन में भगवान महावीर के जीवन की अवगति बताई गई है। उनके जीवन और उपदेश का तुलनात्मक अध्ययन भी किया जा सकता है।
भगवान महावीर का जीवन काल लंबा नहीं था। 30 वर्ष गृहस्थ, 12 वर्ष 6 महीने साधना काल व लगभग 30 वर्ष कैवल्य प्राप्ति का रहा, पर कम जीवनकाल वाले भी महापुरूष हो सकते हैं। जीवन कैसे बीता, कैसे जी रहे हैं, वह महत्वपूर्ण है। वे महाप्रशस्तजीवी थे। आज उनकी जन्मतिथि है, यह तिथि भी अपने आप में धन्य हो गई कि इस दिन महान व्यक्ति ने जन्म लिया था। अवतरण तो सवा नौ महीने पहले हो गया था, आज का दिन तो प्रागट्य का दिन है। जन्म होना तो एक सामान्य घटना है। जन्म के बाद प्राणी करता क्या है, वह महत्वपूर्ण बात है। गर्भस्थ जीव को भी अच्छे संस्कार दिये जा सकते हैं। जैन दर्शन के अनेक सिद्धान्तों में आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद, पुनर्जन्मवाद, अनेकान्तवाद आदि है।
अनेकान्तवाद वैचारिक अहिंसा का सिद्धान्त हो सकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी तो आगम सम्पादन के धुरन्धर व्यक्तित्व थे। आगम सम्पादन में संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद में तादात्म्य हो। अनेकान्त के द्वारा समस्या का समाधान हो सकता है। दोनों ओर की बात सुनकर समाधान हो सकता है। दोनों की बात सही हो जरूरी नहीं है, मतभेद भी हो सकता है। सबका विचार अलग-अलग हो सकता है पर झगड़ा न हो, तर्क किया जा सकता है। अनेकान्त के सिद्धान्त को व्यवहार में भी उपयोग लाएं तो शांति की बात हो सकती है।
कर्मवाद भी जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त है। 'जैसी करणी वैसी भरणी' यह कर्मवाद की मूल बात है। कर्मवाद का विस्तृत रूप आगमों में मिल सकता है। महापुरूष जो उच्च कोटि के होते हैं, वो दुनिया के लिए उपयोगी होते हैं। उनका सिद्धान्त सीमातीत हो सकता है। महावीर के नाम में तो हम सब एक हो सकते हैं। सबके साथ मैत्री की भावना बनी रहे, हम आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ते रहें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूँ कि इस युग में मुझे भगवान महावीर के दर्शन को पढ़ने का अवसर मिला। उनके दर्शन को समझने का और उसे जीवन में उतारने का अवसर मिला। भगवान महावीर के जीवन को हम तीन भागों में बांट सकते हैं - गृहस्थ का जीवन, साधना का जीवन और उनके कैवल्य का जीवन। जीवन के प्रारम्भ से ही भगवान अप्रमाद की साधना में लग गये थे। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने कहा कि भगवान महावीर ने स्वयं जागृत जीवन जीया और जन-जन को जागृत करने का प्रयास किया। निर्वाणवादियों, मुनियों, ऋषियों और तपस्वियों में महावीर श्रेष्ठ हैं। पूज्यवर आचार्यश्री महाश्रमणजी भी एक युगीन सोच के धनी है। महावीर के सिर्फ गुणगान ही न हो, हम महावीर के अवदानों को
भी समझें। महावीर को मानने का ही नहीं, जानने का, आचरण में लाने का प्रयास करें। साध्वीवर्याश्री संबुद्धयशाजी ने कहा कि आज का दिन भगवान महावीर की स्तुति, स्मृति करने का और उनके सिद्धान्तों, दर्शन और विचारों को पढ़ने, समझने का और जीवन में आत्मसात् करने का दिन है। भगवान ने विश्व को समझने के लिए अनेकान्तवाद का सिद्धान्त दिया। आज के पावन अवसर पर पूज्यवर ने महत्ती कृपा कराते हुए मुमुक्षु मनोज संकलेचा को 3 सितम्बर 2025 को प्रेक्षा विश्व भारती में आयोज्य दीक्षा समारोह में मुनि दीक्षा देने की घोषणा करवायी। मुमुक्षु अर्हम, मुमुक्षु जिगर और मुमुक्षु जहान को साधु प्रतिक्रमण सीखने की आज्ञा प्रदान करवायी।
भाभर के बालक-बालिकाओं ने अपनी प्रस्तुति दी। वाव-पथक भाभर की महिलाओं ने गीत का संगान किया। भाभर मूर्तिपूजक संप्रदाय के ट्रस्टी सेवंती भाई, रजनीभाई, भीखाभाई आचार्य ने अपनी भावना व्यक्त की। स्थानीय विधायक स्वरूप सरदार ठाकुर ने भी अपने विचार व्यक्त कर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। निराली मोदी ने गीत का संगान किया। मोदी परिवार के युवकों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।