सरलात्मा, शुद्धात्मा, महात्मा महाप्रज्ञ जी

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मुनि कमलकुमार

सरलात्मा, शुद्धात्मा, महात्मा महाप्रज्ञ जी

जैन धर्म के अनुसार यह संसार अनादि काल से चल रहा है। इसमें जन्म और मृत्यु का क्रम भी शाश्वत है। आज तक यह देखने सुनने को नहीं मिला कि अमुक व्यक्ति का जन्म तो हुआ था परन्तु उसकी मृत्यु नहीं हुई। ऐसा ना हुआ और न ही हो सकता है। कुछ व्यक्ति धरा का गौरव बढ़ाने और अपने आत्म कल्याण के लिए ही जन्म लेते हैं। उनमें एक नाम जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दशमेश आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का भी गौरव के साथ लिया जा सकता है। जिनका जन्म राजस्थान के झुंझनु जिले के अंतर्गत टमकोर नामक गाँव में हुआ। उनकी माता का नाम बालूजी और पिता का नाम तोलाराम जी चौरड़िया था। बचपन में ही पिताश्री का स्वर्गवास हो गया था। आपका पालन पोषण ननिहाल में ही हुआ था। मात्र 10 वर्ष की उम्र में आपका मन विरक्त हो गया था और माता जी के साथ सरदारशहर में तेरापंथ धर्म संघ के अष्टम आचार्य पूज्य कालूगणी के कर कमलों से दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षा के पश्चात आपको साधुत्त्व के प्रारम्भिक संस्कार मुनि श्री तुलसी से प्राप्त हुए। आपका हर विषय में तलस्पर्शी अध्ययन देखकर सब आश्चर्यचकित हो जाते। कालूगणी ने मुनि तुलसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और वे तेरापंथ के नवमाचार्य कहलाए। परंतु आचार्य श्री तुलसी ने अपने रहते विद्या, विनय, विवेक संपन्न शिष्य को उत्तराधिकारी ही नहीं अपने रहते ही विशाल तेरापंथ धर्मसंघ का आचार्य भी बना दिया। यह तेरापंथ धर्मसंघ के लिए प्रथम ही कहा जा सकता है। आचार्य श्री तुलसी कई बार फरमाते - 'महाप्रज्ञ जी को अतिन्द्रिय ज्ञान हो गया है।' आपका मारवाड़ी, हिंदी, संस्कृत, प्राकृत का गहरा अध्ययन देखकर बड़े-बड़े विद्वान नतमस्तक हो जाते। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी हर विषय के विद्वान और धारा प्रवाह लेखक व वक्ता थे, जिन्हें सुनकर अच्छे-अच्छे दार्शनिक वैज्ञानिक लोग उनके दास बन जाते।
भारत के राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी दिग्गज हस्तियाँ उनके साहित्य से प्रभावित थी। जीवन के दसवें दशक में भी वे लेखन, प्रवचन, आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि समस्त कार्यों को युवकों की तरह तत्परता से करते रहे। देवलोक वाले दिन भी प्रातः काल प्रवचन दिराया, आचार्य श्री तुलसी की जन्म शताब्दी की पूरी रूपरेखा बनाई, आगंतुकों को सेवा करवाई।
सदा की भांति आहार कर विश्राम किया। विश्राम के बाद उठते ही बैचेनी सी महसूस हुई और आपने संतों से कहा - महाश्रमण को बुआलो। महाश्रमणजी समणियों को अध्ययन कर रहा थे, ज्योंही संतों ने निवेदन किया गुरुदेव याद फरमा रहे हैं, युवाचार्य श्री तत्परता से श्रीचरणों में पहुँचे। सबके देखते-देखते दोपहर में आप देवलोक पधार गए। आपका जीवन जितना सरल था, मृत्यु भी उतनी ही सरलता से आई। दवाई-डॉक्टर की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। ऐसे सरलात्मा, शुद्धात्मा, महात्मा महाप्रज्ञ जी के पुण्य दिवस पर शत-शत नमन।