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एक अनुत्तर संयमी साधक : संघर्षों में खिलता फूल
साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु का अभिनिष्क्रमण दिवस तीन चरणों में मनाया गया। प्रथम चरण क्लासिक गार्डन में भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ, द्वितीय चरण जैन उपाश्रय पार्श्वनाथ मंदिर में तथा तृतीय चरण सुराणा भवन में आयोजित किया गया। डॉ. साध्वी गवेषणाश्रीजी ने कहा – आचार्य भिक्षु मरुधर की शुष्क धरा पर जन्मे, यदि वे जर्मनी में जन्म लेते तो कांत से भी बड़े दार्शनिक होते। उन्होंने कभी विद्यालय का दरवाजा नहीं देखा, पर विद्या ने उनके चरण चूमे। उन्होंने कभी कविता का पाठ नहीं किया, फिर भी कल्पना की ऊँची उड़ान भरते रहे। साध्वीश्री ने कहा कि आज के दिन आचार्य भिक्षु ने एक नई क्रांति की, जो आचार-विचार से संबंधित थी। उन्होंने सत्य के लिए घर छोड़ा, गुरु को छोड़ा, सत्य की पगडंडी पर चले और अंततः सत्य में ही विलीन हो गए।
साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा – आचार्य भिक्षु का अभिनिष्क्रमण अनेक संघर्षों, झंझावातों और तूफानों से भरा रहा। वे जब अपने गुरु से अलग हुए, तो मानो अपने सिर पर विपत्ति मोल ले ली। किन्तु उनका संयम अद्वितीय था। उनका एक ही लक्ष्य था – ‘मर पूरा देस्यां, आत्मा रा कारज सारस्यां।’ साध्वी मेरुप्रभाजी ने आचार्य भिक्षु के जन्म से लेकर अभिनिष्क्रमण की कथा को गीत के रूप में प्रस्तुत किया। साध्वी दक्षप्रभाजी ने अपने भावों की भावांजलि गीत के माध्यम से अर्पित की। सभा अध्यक्ष सुशील संचेती ने आचार्य भिक्षु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष अभिनंदन नाहटा, महिला मंडल अध्यक्षा कविता अच्छा, मंत्री सुशीला मोदी तथा महासभा सदस्य लक्ष्मीपत बैद ने अपने विचार प्रस्तुत किए। धन्यवाद ज्ञापन सभा मंत्री हेमंत संचेती ने किया। मंच संचालन सभा के सह-मंत्री राकेश सुराणा ने किया।