
गुरुवाणी/ केन्द्र
ज्ञान के प्रयोग से करें बुद्धि का सदुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
वाव के वर्धमान समवसरण में श्रावक समाज को पावन अमृत देशना प्रदान करते हुए अष्टगणी संपदा से सुशोभित पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारे जीवन में बुद्धि, शुद्धि और शक्ति — इन तीनों का विशेष महत्व है। शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए। व्यक्ति के पास यदि बुद्धि है और उसका सदुपयोग होता है तो जीवन में उत्तम कार्य हो सकते हैं। बुद्धि से समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। जैन दर्शन में कर्मवाद का सिद्धांत है, जिसमें ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म ज्ञान और दर्शन से जुड़े हुए हैं। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से विशेष बुद्धि की उपलब्धि होती है। बुद्धि मिलना स्वयं में एक विशेष उपलब्धि है, जिसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। बुद्धि का सदुपयोग कर अच्छे ग्रंथों का अध्ययन करें, साहित्य सृजन करें, और कल्याणकारी शिक्षा दें। आचार्यश्री भिक्षु का प्रसिद्ध सूक्त है -
'बुद्धि तिणा री जाणीये, जो सेवै जिन धर्म।
अवर बुद्धि किण काम री, जो पड़िया बांधे कर्म।'
मन, वचन, काय और भावों की शुद्धि पर बल देते हुए आचार्यश्री ने कहा — जो दूसरों का अनिष्ट सोचता है, वह अपना भी अनिष्ट कर सकता है। जो दूसरों का भला सोचता है, वह स्वयं का भी भला करता है। वचन से पवित्र वाणी बोलें, उच्चारण में शुद्धता हो और शरीर की बाह्य तथा आंतरिक शुद्धि भी बनी रहे। गृहस्थों में धनबल और शारीरिक बल होता है। पुण्य के योग से शरीर सक्षम बना रहता है। शक्ति का दुरुपयोग न करते हुए सेवा में उसका सदुपयोग करें। हमें कैंची नहीं, सुई बनना चाहिए — जोड़ने का कार्य करना चाहिए। ज्ञान न हो तो मौन रहना चाहिए। शक्ति है तो दूसरों की सेवा करें, साधर्मिक भक्ति करें। शारीरिक और बौद्धिक सेवा दोनों का महत्व है। लीडिंग का कार्य भी तपस्या है और निर्व्याज सेवा संघ सेवा का आवश्यक अंग है।
बड़ों को चाहिए कि वे युवाओं को अवसर दें ताकि समाज में नेतृत्व क्षमता विकसित हो। टीम भावना से कार्य करने पर योजनाएं सफल हो सकती हैं। बुद्धि, शुद्धि और शक्ति का सदुपयोग धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में होना चाहिए। अगली पीढ़ी को भी इसके लिए तैयार करना चाहिए।
दीक्षा दिवस पर मंगल आशीष
पूज्यवर ने बताया कि आज वैशाख कृष्ण अष्टमी है। आज से पचास वर्ष पूर्व जयपुर में गुरुदेव तुलसी के करकमलों से साध्वी सुरेखा जी 'चाड़वास' और साध्वी उज्ज्वलरेखा जी 'सरदारशहर' को दीक्षा मिली थी। आज उनका 51वां दीक्षा दिवस है। पूज्यवर ने दोनों साध्वियों के उत्तम स्वास्थ्य, साधना और संघ सेवा के लिए मंगलकामना प्रकट की तथा मुमुक्षुओं को तैयार करने का आह्वान भी किया। मुख्यमुनि श्री महावीरकुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि दुष्प्रवृत्तियाँ व्यक्ति का अनर्थ कर देती हैं। गुस्से से केवल दूसरों को ही नहीं, स्वयं को भी क्षति पहुँचती है और कर्मबंधन होता है। इसलिए मन, वचन और काय को सद्प्रवृत्ति में लगाना चाहिए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि हम आचार्यश्री महाश्रमणजी की अनुशासना में साधना कर रहे हैं। जब पूज्यवर अतीत की घटनाएँ सुनाते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो पूरा इतिहास जीवंत हो उठा हो। आचार्यवर का जीवन जोड़ने का प्रतीक है — कितने राज्यों की यात्राएँ, कितने संप्रदायों से संपर्क और आत्मीयता का विस्तार आपके जीवन का हिस्सा रहा है। साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशा जी ने 'वह संत पुरुष कहलाता है' गीत का सुमधुर संगान किया। कार्यक्रम में वाव पथक व्यवस्था समिति संयोजक विनीत संघवी ने पूज्यवर की अभिवंदना करते हुए अपनी भावना व्यक्त की। उधमचंद मोतीचंद संघवी परिवार ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।