
गुरुवाणी/ केन्द्र
निरंतरता और श्रद्धा के साथ हो साधना का अभ्यास : आचार्यश्री महाश्रमण
मैत्री के महासागर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 14 किमी का विहार कर कापरा गांव में स्थित श्री मोंघी अमृत सुन्दर तीर्थ पधारे। पावन प्रेरणा-पाथेय प्रदान करते हुए परम पूज्य ने फरमाया कि जीवन में योग-साधना का अत्यंत महत्व है। ध्यान भी योग-साधना का एक अंग है। पतंजलि के अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का उल्लेख मिलता है। इन आठ अंगों में काफी व्यापकता का दर्शन किया जा सकता है। अणुव्रत में भी अष्टांग की चर्चा की गई है। हमारे यहाँ प्रेक्षाध्यान पद्धति प्रचलित है, और वर्तमान में 'प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष' भी चल रहा है। ध्यान की अनेक पद्धतियाँ हैं। कोई भी प्रयोग करना है तो लम्बे समय तक निरंतर करने का प्रयास होना चाहिए। सततता और श्रद्धा के साथ साधना का अभ्यास हो।
जैन दृष्टिकोण से मोक्ष का उपाय योग ही है—सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र मोक्ष के मार्ग हैं। धर्म की वे सारी प्रवृत्तियाँ, जो मोक्ष से जोड़ती हैं, योग ही हैं। योग-साधना करने वाला व्यक्ति योगी कहलाता है। साधु तो स्वाभाविक रूप से योगी होते हैं। खाली पेट चलना एक उत्तम व्यायाम भी है और साधना भी। विहार के दौरान यदि चित्त केवल चलने में केन्द्रित हो जाए तो चलना भी एक साधना हो सकती है। ईर्या समिति भी योग साधना का ही एक अंग है। चलने में एकाग्रता हो जाए तो कितने ही पापों से बचाव हो सकता है। चलते समय बातों में लग जाना गमन योग में बाधा की बात हो सकती है। चलने में ईर्या समिति का ध्यान और ट्रैफिक नियमों का भी ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे यहाँ प्रेक्षाध्यान साधना-पद्धति में विविध प्रयोग होते
हैं। ध्यान हमारी साधना का एक प्रमुख तत्व है और यह भाव-क्रिया के साथ जुड़ा हुआ है। जीवन की प्रत्येक क्रिया में ध्यान समाहित होना चाहिए। आगम हमारे लिए 'नंदन वन' के समान हैं, उसमें नियमित भ्रमण करें। तेरापंथ धर्म संघ को भी 'नंदन वन' की उपमा दी गई है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में शासनश्री साध्वी मदनश्रीजी (बीदासर) की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करने के उपरान्त मध्यस्थ भावना के साथ चतुर्विध धर्मसंघ को चार लोगस्स का ध्यान कराया। इसके उपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी साध्वीश्रीजी की आत्मा के प्रति मंगलकामना की। अंत में पूज्यवर ने हाजरी का वाचन करते हुए प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी दर्शितप्रभाजी व साध्वी देवार्यप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने साध्वीद्वय को सात-सात कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में तीर्थ से संबंधित दीपकभाई डोसी ने अपनी अभिव्यक्ति दी।