काम व भोग रूपी विष होते हैं आध्यात्मिकता में बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

रामपुरा। 27 अप्रैल, 2025

काम व भोग रूपी विष होते हैं आध्यात्मिकता में बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

अणुव्रत अनुशास्ता, आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर रामपुरा पगार केन्द्रशाला प्रांगण में पधारे। अमृतमयी देशना प्रदान करते हुए शान्तिदूत ने फरमाया कि इस संसार में भौतिकता भी है और आध्यात्मिकता भी। भौतिकता पुद्गल से जुड़ी हुई है, जबकि आध्यात्मिकता आत्मा से संबंधित है। इस जगत में आत्मा नाम का तत्त्व भी है और पुद्गल नाम का तत्त्व भी। सृष्टि में पुद्गल जैसे मूर्त पदार्थ भी हैं और अमूर्त द्रव्य भी। छह द्रव्यों में से पुद्गलास्तिकाय को छोड़कर शेष पांच द्रव्य अमूर्त होते हैं। धर्मास्तिकाय जीव की गति में सहायक है, जबकि अधर्मास्तिकाय जीव की स्थिति में सहायक होता है। आकाशास्तिकाय तो विराट और अनन्त है। लोक-अलोक सर्वत्र व्याप्त हैं, जिनका कोई पारावार नहीं है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय केवल लोकाकाश में ही पाए जाते हैं।
पुद्गलास्तिकाय द्रव्य मूर्त होता है और यह भी केवल लोकाकाश में ही विद्यमान होता है। समस्त जीव भी केवल लोकाकाश में ही रहते हैं। भौतिकता का मूल तत्त्व पुद्गल ही है, जबकि अध्यात्म का तत्त्व अमूर्त होता है। भौतिक जगत में पाँच विषय होते हैं—शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श, जो हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियों से संबंधित हैं। इन्हीं ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से भौतिक विषयों का ज्ञान और ग्रहण संभव है। परंतु यही शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श पाँच विषय शल्य स्वरूप हैं—ये विष के समान हैं, जैसे कोई विषैला सर्प। इनकी कामना करने वाला व्यक्ति दुर्गति को प्राप्त कर सकता है। काम और भोग शल्य की तरह पीड़ा देने वाले बन सकते हैं। यदि उनमें आसक्ति जुड़ जाए, तो ये आत्मा के लिए विष के समान बन जाते हैं और आत्मिक हानि पहुंचाते हैं। यदि हम भौतिकता का उपयोग आध्यात्मिकता के हित में करें, तो वही भौतिकता हमारी साधना में सहायक बन जाती है।