
गुरुवाणी/ केन्द्र
आत्मा के शत्रुओं को परास्त करने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वाव में नौ दिवसीय प्रवास संपन्न कर थराद में मंगल प्रवेश किया। करुणा-सागर पूज्यवर ने अमृतमय देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में कभी-कभी युद्ध की बात सामने आती है। प्राचीन काल में भी युद्ध हुए हैं। शास्त्रकारों ने भी युद्ध की बात कही है, किंतु बिल्कुल विपरीत संदर्भ में। सामान्यतः युद्ध का अर्थ होता है दूसरों से लड़ना, परंतु आगम में कहा गया है — स्वयं से युद्ध करो, आत्मा के शत्रुओं से युद्ध करो। बाह्य युद्ध में शौर्य, निर्भीकता और आस्था की आवश्यकता होती है, मृत्यु का भय रहता है, फिर भी कुछ लोग देश की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। वे कठिनाइयों की परवाह नहीं करते। यदि दूसरों से लड़ना कठिन है, तो स्वयं से लड़ना उससे कहीं अधिक कठिन और दुष्कर है। आत्मिक कषायों का दमन करना अत्यंत मुश्किल होता है। अरिहंत भगवान असली शत्रुओं — मोह, क्रोध, मान, माया, लोभ और काम — के संहारक होते हैं। इन अंतरंग शत्रुओं को परास्त करने वाला ही परमविजयी कहलाता है।
गुस्सा भी एक शत्रु है। साधना में रत व्यक्तियों के लिए क्रोध त्याज्य होता है, इसे उपशम द्वारा शांत करें। बार-बार उपशम के अभ्यास से गुस्से पर प्रहार करें। निरंतर पुरुषार्थ और प्रयास एक आध्यात्मिक चिकित्सा है। अहंकार भी एक शत्रु है। जाति, ज्ञान और रूप का अभिमान न करें। उत्तम कार्य करें, किंतु विनम्रता बनाए रखें। अहंकार को मार्दव से जीतें। माया को आर्जव से और लोभ को संतोष से परास्त करें। यही धर्म युद्ध है। आत्मा के शत्रुओं को पराजित या क्षीण करने का निरंतर प्रयास करें। थराद पदार्पण के संदर्भ में फरमाते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि आज वाव से थराद आना हुआ है। कभी परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी यहां पधारे थे, पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी भी यहां पधारे, तब मैं युवाचार्य रूप में साथ था। थराद के लोगों में खूब धार्मिक विकास होता रहे। पूज्यवर के स्वागत में नरेश भाई परीख, विधि परीख, सिल्की परीख, आयुषी परीख, त्रिस्तुति संघ से वाघभाई बोहरा, थराद संघ से प्रकाश भाई माजनी, जयंती भाई वकील ने अपनी भावभिकव्यक्ति दी। परीख परिवार ने स्वागत गीत का संगान किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।