'वर्धापना चंदेरी की चंद्रकांतमणी की'

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साध्वी अनुप्रेक्षाश्री

'वर्धापना चंदेरी की चंद्रकांतमणी की'

''जन-जन में प्रशंसित, कुशल कर्तव्य की अभिवंदना
अध्यात्मनिष्ठा में स्पंदित, गुरुकृपा की अभिवंदना।
साधना से ज्योतिर्मय आभावलय की अभिवंदना।''
गुरु की कृपा शिष्यों पर बरसती ही रहती है, उस कृपा को अंतस में धारण करना, अंतस में स्थान देना, उसे ठहराना, हर किसी के वश की बात नहीं होती। जैसे सिंहनी का दूध मात्र सोने के पात्र में ही टिकता है, वैसे ही गुरुकृपा अध्यात्मनिष्ठ व्यक्ति में ही टिकती है। जहाँ अध्यात्म निष्ठा नहीं है, वहीं गुरु की कृपा अनेक स्तोत्रों से बह जाती है, छिटक जाती है।
तेरापंथ के इतिहास में ऐसे
अनेकों-अनेक महाभाग, पुण्यात्माएं हुईं जिन्होंने गुरु की कृपा को, गुरु के प्रसाद को अपने अध्यात्मबल के आधार पर हजम किया है, पचाया है, परिणामतः उनका जीवन दिव्यगुणों का बोलता संदेश बना है।
मुमुक्षु सविता ने अध्यात्म क्षेत्र में जैसे ही प्रवेश किया, इनकी पुण्याई थी कि आरम्भ से ही गुरुकृपा का प्रसाद प्राप्त होता रहा। अध्यात्मनिष्ठा के बल पर उस दिव्य प्रसाद को वे हर स्थिति में, परिस्थितियों में, हजम करते गए, उसी के अनुरूप उनकी क्षमताएं भी बढ़ती गई। लोहे के टुकड़े में चुम्बकीय गुण समाहित किए जाते हैं तो, उस लोहे के टुकड़े की क्षमताएं बढ़ जाती, वह अपने वजन से 12 गुणा अधिक वजन उठा सकता है, वैसे ही आपश्री ने भी अध्यात्मनिष्ठा में गुरुकृपा को समाहित करके अपनी अंतर्निहित क्षमताओं को उजागर किया है। इसलिये तीनों आचार्यों के युग में आपश्री को नए-नए अवसर प्राप्त होते गए और अनगिनत उपलब्धियों से आपका व्यक्तित्व अलंकृत होता गया।
आचार्यप्रवर द्वारा प्रदत्त सम्पूर्ण साध्वी समाज के सर्वोच्चपद ‘साध्वीप्रमुखा’ पद के महनीय दायित्व का कुशलता के साथ निर्वहन करते हुए जिस भावविशुद्धि की साधना में आपश्री अहर्निश संलग्न है, उस साधना से निःसृत आपश्री का विलक्षण संरक्षण एवं संपोषण हम सभी साध्वियों को प्राप्त हो रहा है, वह अद्भुत है। आपश्री के उत्कृष्ट संयम और साधना की पवित्र रश्मियां हमारे शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक समाधि में योगभूत बन रही हैं।
प्रसंग घाटकोपर का –
4 जनवरी 2024, साध्वीप्रमुखाश्री जी तेरापंथ सभा भवन, अनेक प्रतिष्ठानों और घरों में पगलिए करने हेतु पधारे, मैं भी प्रमुखाश्रीजी के साथ थी। दो-तीन दिनों से मेरे पीठ में दर्द हो रहा था, कुछ उपचार किया पर आराम नहीं मिला। चलते-चलते साध्वीप्रमुखाश्रीजी को मैंने अपने हाथ का सहारा दिया, पहला ही सुअवसर था, आपश्री ने मेरे हाथ का सहारा लिया। एक चमत्कार सा घटित हुआ।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी के उर्जा भरे हाथों के स्पर्शमात्र से, जिस दर्द की अनुभूति मुझे निरंतर हो रही थी, वह दर्द मानों गायब ही हो गया। मैं साध्वीप्रमुखाश्री के प्रति श्रद्धानत हो गई। स्थान पर पहुंचने पर मैंने निवेदन किया— महाराज! आपश्री ने मेरे ऊपर बहुत कृपा कराई, आपश्री ने जैसे मेरी शारीरिक व्याधि को मिटाया है, वैसे ही मेरे आधि, उपाधि को भी दूर कर मुझे परम समाधि प्रदान कराएं। आपश्री ने मेरी बात सुनी और आप मुस्कुरा कर रह गए।
इस धरा पर ऐसे कई व्यक्तित्व हैं, जिनके विचार ही नहीं, बल्कि पूरा जीवन ही प्रेरक एवं प्रभावी होता है, किन्तु वे कंजूस व्यक्ति की तरह स्वयं ही बैंक बैलेन्स बनकर रह जाते है। वे सबके लिए उपयोगी नहीं होते। अमुक-अमुक तक ही सीमित रह जाते हैं। विरले व्यक्तित्व होते हैं, जो सबके लिए, हर स्थिति में, हर समय में, अपनी आभा से सबको प्रभावित करते ही रहते हैं।
शासनमाता की तरह ही आपश्री तेरापंथ महिला मंडल में नवजागृति के प्रति संकल्पित हैं। आधुनिकता के प्रभाव में महिलाओं की छवि जहाँ कहीं धुंधली नजर आती है, वहाँ आपश्री व्यक्तिगत स्तर पर या संगोष्ठी के माध्यम से युगीनशैली में, युगीन संदर्भ के साथ उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कराती हैं। जिस तरह मन का रूपान्तरण मौन है, शब्द का रूपान्तरण संगीत है, उसी तरह आपश्री की अमिय प्रेरणा जीवन का रुपान्तरण है।
मुंबई का प्रसंग–
साध्वीप्रमुखाश्रीजी की सन्निधि में कन्या मंडल की बहनों की संगोष्ठी हुई। तब साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने कन्याओं को कल्चर ओरिएंटेशन और कॅरियर ओरिएंटेशन के विषय में चर्चा करते हुए, जीवन को किस रूप में मूल्यवान बनाया जा सकता है, इसकी प्रेरणा दी। साध्वीप्रमुखाश्रीजी की वह प्रेरणा गरम लोहे पर हथोड़े के प्रहार जैसी थी, कई कन्याओं के बहकते कदम संभले। एक कन्या जो अपने संस्कारों से भटक गई थी, अवांछनीय तत्वों को अपनाने के लिए संकल्प-बद्ध थी, पारिवारिक जनों के लाख समझाने के बावजूद भी, अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा समझाने पर भी, वह कन्या अपने जिन्दगी के निश्चय के लिए अटल थी। आखिर उसे प्रमुखाश्रीजी की सन्निधि में लाया गया। ममतामयी साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने उसकी मन की बातें सुनी, फिर वत्सलतापूर्वक उसे प्रेरणा दी। वह प्रेरणा उसके जीवन के रूपान्तरण का कारण बनी।
आपश्री की सहजता में प्रतिबिम्बित उन्नत व्यक्तित्व की गहरी छाप लोगों के मन और मस्तिष्क में अंकित होती ही जा रही है, इसलिये आपके उपपात से लौटने वाले भले ही युवक हो, युवतियां हो, बुजुर्ग हो सबके मन में आत्मतोष एवं प्रसन्नता दिखाई दे रही है। चतुर्थ मनोनयन दिवस पर आपश्री के चरणों में यही निवेदन कर रही हूँ, रहस्यों के वेत्ता, महाशक्तिधर आचार्य श्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि से प्राप्त उर्जा का हम सब में युगों-युगों तक यों ही संप्रेषण करती रहें। मंगलकामना, मंगलकामना।