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गुणों का समवाय-साध्वीप्रमुखाश्री
सभा में अनेक लोग उपस्थित थे। प्रश्न पूछा गया– सबसे ज्यादा गुणवत्ता किस खाद्य पदार्थ में है? अनेक उत्तर प्राप्त हुए, अंतिम पंक्ति में बैठे एक व्यक्ति ने उत्तर दिया– अनेक खाद्य पदार्थों में अनेक गुण हो सकते हैं। किन्तु मिश्री के गुण बेजोड़ हैं। उसमें उज्ज्वलता, मधुरता और घुलनशीलता है। मैनें भी इन वर्षों में अनुभव किया कि ये गुण सिर्फ मिश्री के ही नहीं कुछ विरले व्यक्तित्वों में भी मिलते हैं। उन विरले व्यक्तित्वों में एक नाम है- नवम् साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी।
आपका जीवन संपूर्ण साध्वीसमाज के लिए प्रेरणा-स्रोत है क्योंकि आपके भीतर मिश्री-सी उज्ज्वलता, वाणी में मधुरता, प्रत्येक सदस्य को अपनापन महसूस कराने वाली मिलनसारिता है। दीक्षा के बाद आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने महत्ती-अनुकंपा करके मुझे आपकी सेवा में नियुक्त किया। यह मेरे परम सौभाग्य का परिणाम है।
मिश्री सी उज्ज्वलता
मुझे आपको बहुत निकट से देखने का अवसर मिला। आप अपने लक्ष्य एवं कर्तव्य के प्रति सदा सजग रहती हैं। आपका पवित्र आभामण्डल आकर्षक प्रतीत होता है। जब भी आपके उपपात में बैठते हैं तो आपका चुम्बकीय व्यक्तित्व समय का अनुभव ही नहीं होने देता है। आपका मन निर्मल दर्पणवत् है। जो छवि भीतर है वही बाहर है।
एक दिन आपने साहित्य समिति को प्रदत्त संदेश एक रजिस्टर के केवल खाली कवर में रखा। बाद में मैंने उस कवर को फाड़ दिया। आपने मुझसे संदेश मांगा पर वह मिला नहीं। आपने कहा— मैंने इस रजिस्टर में ही निश्चित रूप से रखा था। मेरी चिंता बढ़ गई। क्या करूं? मुझसे गलती हो गई। लेकिन आश्चर्य इस बात का था, वो पत्र कहीं और मिल गया। मैंने तुरंत वो पत्र साध्वीप्रमुखाश्रीजी को दिया। पत्र मिलते ही साध्वीप्रमुखाश्री जी बहुत ही प्रसन्न हुए। आपने मुझसे खमतखामणा किया।
इतना ही नहीं, साध्वीप्रमुखाश्री जी ने 1 दिन छः विगयवर्जन का प्रायश्चित स्वीकार किया। इस बात से स्पष्ट जाना जा सकता है कि आपके भीतर पवित्रता और पापभीरूता है। पापभीरू व्यक्ति ही प्रायश्चित स्वीकार करता है और अपनी उज्ज्वलता को किंचित भी आंच नहीं आने देता है।
मिश्री सी मधुरता
सरस्वती स्वरूपा साध्वीप्रमुखाश्री जी की वाणी में मधुरता है। आपकी वाणी लोगों के मन को लुभा रही है। आपके मंद, मधुर, मंत्र मुग्ध करने वाले भाषा वर्गणा के पुद्गल कर्णप्रिय लगते हैं। मधुरता भरी कोमल वाणी आगंतुक के जख्म पर मरहम का काम करती है। कोई भी साध्वी हो या श्रावक-श्राविका आपके पास आकर अपनी समस्या रखते हैं, आप उसे बड़े मनोवैज्ञानिक ढ़ंग से और मधुरता से समझाती हैं। उसकी आधी समस्या का समाधान तो आपकी सन्निधि में ही अनुभव करने लग जाते हैं। हम गुरुकुलवासी एवं बर्हिविहारी प्रायः साध्वियों ने यह अनुभव किया कि आपका मृदु अनुशासन हमें एक विशेष प्रेरणा देता है। ऐसा ही एक प्रसंग सन् 2004 सूरत चातुर्मास में घटित हुआ। आपश्री ने फरमाया- जो साध्वियां अर्हत् वंदना में जितनी देरी से उपस्थित होगी उन्हें उतने मिनट खड़े-खड़े अर्हत् वन्दना करनी है।
सभी साध्वियों ने साध्वीप्रमुखाश्री जी की बात को सहजता से स्वीकार किया और पूरे चातुर्मास में पूर्ण सजगता का परिचय दिया। कभी किसी कारणवश साध्वियां अनुपस्थित रहती तो पूरी अर्हत् वंदना आपके कक्ष में आकर प्रायश्चित स्वरूप खड़े-खड़े अर्हत् वंदना करती।
एक दिन आपने प्रशिक्षण रूप फरमाया— आप सभी अर्हत् वंदना में उपस्थित होते हैं किंतु अर्हत् वंदना का भावपूर्वक उच्चारण नहीं करते। कभी नींद, कभी बातें, तो कभी मौन। अर्हत् वंदना हमेशा उच्चारण पूर्वक करनी चाहिए। इसे ऐसे ही न समझें। प्रभु के गुणगान निष्फल नहीं जाते। इस प्रकार मधुरता से एवं मनोवैज्ञानिक ढंग से दिया जाने वाला प्रशिक्षण सहज ही सबके हृदयंगम हो जाता है।
मिश्री-सी घुलनशीलता
यह एक ऐसा सद्गुण है जो एक दूसरे को जोड़ता है, अपनत्व भरे वातावरण में। जैसे- दूध में मिश्री एकरूप बन जाती है वैसे ही मिलनसार व्यक्ति किसी के भी साथ एडजस्ट हो जाता है। हमने नवम् साध्वीप्रमुखाश्री में देखा – जो भी छोटा, बड़ा, बालक, वृद्ध आपके श्री चरणों में पहुंचा है वो धन्यता का अनुभव किए बिना नहीं रहता। प्रत्येक साध्वी के साथ आत्मीयता का व्यवहार और मिलनसार व्यवहार को देखकर कई बार साध्वियां कहती हैं—
महाराज! आप कितने सहज, सरल हैं। छोटी साध्वियां भी आपके साथ बड़ी सरलता से बात कर पाती हैं और बड़ी साध्वियां भी आपके साथ बड़ी सहज रहती हैं। आपकी यह ऋजुता, व्यवहार कुशलता साध्वी समाज के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। जैसे मिश्री इन गुणों से सम्पन्न होने के साथ-साथ ठंडक प्रदान करती है, और शक्तिवर्धन भी करती है। वैसे ही आप भी साध्वी-समाज का ताप-संताप हरती हैं। छोटी साध्वियों को विकास के सुअवसर प्रदान करती हैं। छोटी साध्वियों को महाप्रज्ञ-श्रुताराधना, तत्त्वज्ञान, रंगाई, सिलाई आदि कार्यों में प्रेरित कर उनकी शक्ति को सफलता का रूप देती हैं।
इस प्रकार साध्वियों के हित व विकास के लिए एवं साधना पक्ष को मजबूत बनाने के लिए सतत चिंतन चलता रहता है। इन सब सद्गुणों से ऊपर कहूं तो पूरा साध्वी समाज अनुभव करता है कि आप अप्रमत्तता की मिसाल हैं। आपका हर एक पल प्रमाद किए बिना रहता है – या तो आप स्वाध्याय, जप में लीन रहती हैं या लेखन कार्य में लीन हो जाती हैं और जो भी आपके दर्शन करते आता है उनके आध्यात्मिक उत्थान के लिए समय प्रदान कराते हैं।
आपका मिश्रीवत जीवन हम सबके लिए कल्याणकारी, हितकारी हो, यही मंगलकामना।