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सुरक्षा के पायदान
जीवन में संरक्षण, संवर्धन और सम्पोषण ये तीन शब्द महत्वपूर्ण हैं। इनके साथ एक शब्द और जुड़ने से इसका दायरा विशाल हो जाता है- वह है ‘सुरक्षा’।
प्रश्न है- किसकी सुरक्षा? शरीर की अथवा आत्मा की? दोनों ही सुरक्षा आवश्यक व महत्वपूर्ण है- बाह्य व आंतरिक।
आत्मा की सुरक्षा हर प्राणी का अंतिम लक्ष्य है जिसे प्राप्त करने के बाद किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं रहती क्योंकि कर्म मुक्त आत्मा स्वतः सुरक्षित है। किन्तु जब तक सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती, आत्मतत्त्व की प्राप्ति नहीं होती, तब तक शरीर की सुरक्षा भी करणीय है क्योंकि इस शरीर का ही एक मात्र सामर्थ्य है जिसके द्वारा व्यक्ति शिव पद की प्राप्ति कर सकता है। कहा भी है - ‘वपुषि विचिन्त्य परमिहसारं - शिव साधन सामर्थ्य मुदारम्।’
इस आधार पर सुरक्षा के दो विभाग किए जा सकते हैं- बाह्य सुरक्षा व आंतरिक सुरक्षा। बाह्य सुरक्षा से तात्पर्य है- शरीर की सुरक्षा व आंतरिक सुरक्षा से तात्पर्य है- आत्मा की सुरक्षा। सूरत चातुर्मास के दौरान मैंने जाना शरीर की सुरक्षा के लिए सरकार कितना प्रबन्धन करती है।
2024 चातुर्मास में जब एक बार आर.एस.एस. के प्रमुख ‘मोहन भागवत जी’ आए तो देखा कि उनके साथ जो सुरक्षादल आया था, वह पहले से कुछ भिन्न था। मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई, समाधान भी मिल गया कि इन्हें Z+ Security प्राप्त है। मैंने देखा व जाना कि Z+ Security एक उच्च कोटि की सुरक्षा है। यह सुरक्षा VIP को ही मिलती है और यह केन्द्र सरकार के द्वारा प्रदान की जाती है। इसमें मुख्यतः 36 सुरक्षाकर्मी होते हैं। घर की सुरक्षा हेतु सभी ताले Electronic होते हैं। कुत्ते भी दिन रात सुरक्षाकार्य में तैनात रहते हैं जो चारों ओर नजर रखते हैं। सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति जहां भी जाते हैं सुरक्षादल साथ रहता है।
मोहन भागवतजी जब आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शनार्थ ‘महावीर युनिवर्सिटी’ में आए, उनके आने से पहले ही एक सुरक्षा दल पहुंच गया। जिस रास्ते से वे आए और जहां-जहां वे ठहरे उन स्थानों की सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी जागरूकता से जांच की व तैनात खड़े रहे। यह सारा दृश्य देख मुझे लगा उन्हें बाह्य सुरक्षा तो सरकार की ओर से प्राप्त है और वे आंतरिक सुरक्षा प्राप्त करने, आंतरिक संरक्षण और सम्पोषण प्राप्त करने के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणों में उपस्थित हुए हैं। वैसे भागवतजी श्रीचरणों में प्रायः साल में एक बार आते हैं क्योंकि आचार्य श्री महाश्रमण आंतरिक सुरक्षा की कला में निपुण हैं। अध्यात्म शिखर को प्राप्त अध्यात्म गुरु आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी आत्मसुरक्षा के लिए अहर्निश कवच का निर्माण करते हैं। आचार्य महाश्रमणजी शरीर की सुरक्षा को कम महत्व देते हैं और आत्मा की सुरक्षा के लिए पल-पल जागरूक रहते हैं। अपने गात्र रत्न की ओर ध्यान ही नहीं देते, इसकी सेवा सुश्रुषा भी नहीं के बराबर करते हैं, परन्तु आत्मा की सुरक्षा के लिए वे नींद में भी उतने ही जागरूक रहते हैं जितने कि अनिद्रा में। अनेक उदाहरणों में एक उदाहरण इस प्रकार है- जब कभी आपको रात्रि में करवट भी बदलना हो तो आप पहले प्रमार्जन करेंगे, कभी-कभी तो पैर के अंगूठे में भी प्रमार्जनी धारण कर प्रमार्जन कर करवट बदलते हैं, इस तरह शयन क्रिया में भी आप अपनी आत्मसुरक्षा के प्रति पूर्ण जागरूक रहते हैं।
बाह्य जगत में जहां लोग अपने शरीर की सुरक्षा हेतु अनेकानेक उपाय करते हैं, वहीं आप अपने योगों को अर्थात्- मन, वचन और काया को ही सुरक्षाकर्मी की तरह तैनात कर आत्मा की रक्षा करते हैं।
भगवान महावीर ने कहा है-
‘अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो, सव्विदिएहिं सुसमाहिएहिं।
अरक्खिओ जाइपहं उवेइ, सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चई।।’
सब इन्द्रियों से सुसमाहित होकर निश्चित रूप से आत्मा की सतत रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि अरक्षित आत्मा जन्म-मरण को प्राप्त होती है। सम्यक् प्रकार से रक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाती है।
आत्म रक्षा का एक उपाय है- ‘संयम’। आपकी जीवनशैली में 17 प्रकार के संयम का चित्रपट प्रतिबिम्बित हो रहा है। 17 प्रकार के संयम से आपकी आत्मा सर्वरूपेण रक्षित है, सुरक्षित है। मानो आपको पाकर संयम के ये प्रकार भी धन्य, कृतपुण्य हो गए हैं। हरियाली तो दूर आप अत्यन्त सूक्ष्म शैवाल (काई) को लांघने के अवसर पर भी भीतर से प्रकम्पिल हो जाते हैं। आपने आत्मरक्षा के लिए संयम के अभेद्य किले का निर्माण किया है। इतना ही नहीं उस किले की चारों दिशाओं में आहार संयम, वाणी संयम, काय संयम, दृष्टि संयम के जागरुक पहरेदार तैनात किए हुए हैं।
महायोगी आचार्य महाश्रमणजी के भीतर कोई Automatic Electronic Switch है जो आत्मरक्षा हित ring बजा देता है, वह है- ‘आगमवाणी’।
‘उवसमेण हणे कोहं,’
‘तवे सुया उत्तम बंभचेरं,’
‘देहे दुक्खं महाफलं,’
‘नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिट्ठेज्जा,’
आदि ऐसे अनेक आगम वाक्यों की अनुप्रेक्षा आपश्री को लक्ष्य की तरह गतिशील करती है। आपकी आंतरिक सुरक्षा को देख लगता है कि बाह्य सुरक्षा Z+ Security जो High Level की गिनी जाती है, आपकी आत्म सुरक्षा उससे भी आगे की है। इसलिए सम्पूर्ण सुरक्षा का मार्गदर्शन पाने के लिए जगत् आपके चरणों में उपस्थित होता है। मानवता के महामसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी का जीवन हम सबके लिए आदर्श है, पथदर्शक है। आपश्री के 64वें जन्मोत्सव पर हम यही शुभकामना करते हैं कि आप चिरायु हों और आपश्री की दीर्घ शासना में हम भी आत्मसुरक्षित बनकर लक्षित मंजिल को प्राप्त करें।