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दो युगप्रधान आचार्यों के द्वारा हुआ आचार्य श्री महाश्रमण जी का निर्माण
आचार्य श्री महाश्रमण जी का निर्माण दो-दो युगप्रधान आचार्यों के कुशल मार्गदर्शन में हुआ है। इसीलिए आपकी प्रत्येक प्रवृत्ति अपने आप में अनुपम और अद्वितीय कही जा सकती है। आपकी अप्रमत्त चर्या जन-जन के लिए प्रेरणा पाथेय है। आपने अपने गहन चिंतन-मनन से जो धर्मसंघ की गरिमा और महिमा बढ़ाई है और अनवरत बढ़ा रहे हैं, वह अन्य मतावलंबियों के लिए भी प्रेरणा है। आपका प्रत्येक चिंतन साधना की दिशा में गतिमान बनाने वाला है।
दीक्षा के बाद प्रथम मिलन से लेकर आज तक देख रहा हूँ कि प्रमाद को कहीं देखने का अवसर ही नहीं मिला। मुनि अवस्था में भी आपकी जागरूकता बेमिसाल थी। अपने कार्य व अध्ययन-स्वाध्याय की नियमितता हम सबके लिए प्रेरणा थी। गुरुदेव तुलसी आपकी हर चर्या से प्रसन्न थे। आपकी आचार-विचार की निर्मलता को देखकर ही अल्पायु में आपको 'मुदित' से 'महाश्रमण' बना दिया।
आगम-निष्ठा, आज्ञा और अनुशासन में सुदृढ़ देखकर आपको युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के अंतरंग सहयोगी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने आपकी साध्वाचार की पारदर्शिता और संघीय विकास में पराक्रम को देखकर आपको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। शायद यह तेरापंथ धर्मसंघ के लिए प्रथम ही होगा कि नियुक्ति-पत्र को दो आचार्यों ने निहारा हो। दोनों आचार्यों का गहरा विश्वास ही आज साकार हो रहा है।
आचार्य श्री महाश्रमण जी के शासनकाल में कीर्तिमानों का अंबार-सा लग गया है। आपकी सन्निधि में आने वाला आपका ही बन जाता है। आपकी कोमल वाणी और मृदु अनुशासन को देखकर अन्य संप्रदाय के साधु-साध्वी ही नहीं, आचार्य और गच्छाधिपति भी यह कहने को विवश हो जाते हैं कि आपकी अखूट पुण्याई है। आपकी प्रबल पुण्याई है। आपकी पुण्याई का कोई पार नहीं है। अन्यथा इस बौद्धिक और वैज्ञानिक युग में इतने बड़े धर्मसंघ का संचालन करना कठिन ही नहीं, महाकठिन है।
धर्मसंघ में बाल, युवा, प्रौढ़, बुजुर्ग—सभी तरह के साधु-साध्वी हैं। सबको प्रसन्नचित्त रखना, सबको समाधि प्रदान करना, सबके विकास में सहयोग प्रदान करना कोई आसान काम नहीं है, परंतु प्रत्येक साधु-साध्वी का स्वर यही निकलता है कि 'गुरुदेव की मुझ पर बहुत कृपा है, गुरुकृपा से सब तरह से आनंद है।' इसी कारण इस धर्मसंघ को नंदनवन, कामधेनु, कल्पवृक्ष और चिंतामणि की उपमाओं से उपमित किया जाता है।
आचार्य श्री महाश्रमण जी का बाह्य और आंतरिक व्यक्तित्व चुम्बक की तरह सबको आकृष्ट करने में सक्षम है। शायद आप प्रथम आचार्य हैं, जिनका जन्म, दीक्षा और पट्टोत्सव—तीनों एक ही मास में और शुक्ल पक्ष में मनाने का अवसर प्राप्त हुआ है।
मैं इस पुनीत बेला में यह मंगलकामना करता हूँ कि आपकी कृपा सदैव मुझ पर, समस्त धर्मसंघ व समर्पित शरणागतों पर बनी रहे, जिससे आत्मकल्याण के साथ-साथ धर्मसंघ की प्रभावना
निरंतर प्रवर्धमान बनी रहे। गुरुदेव के सुस्वास्थ्य की मंगलकामना करता हूँ।