
गुरुवाणी/ केन्द्र
अविश्राम और अखंड चले अनमोल साधुपन : आचार्यश्री महाश्रमण
वैशाख शुक्ला चतुर्दशी। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, संयम सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमणजी का 52वाँ दीक्षा दिवस, जिसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज से लगभग 51 वर्ष पूर्व, आचार्य श्री तुलसी की आज्ञा से सरदारशहर में मुनिश्री सुमेरमल जी ‘लाडनूं’ ने बालक मोहन को दीक्षित किया था। वह बालक आगे चलकर मुनि मुदित, फिर मुनि महाश्रमण, युवाचार्य महाश्रमण, और आज के आचार्य महाश्रमणजी बने — जो वर्तमान में भिक्षु शासन के एकादशम अनुशास्ता हैं। इसी तिथि पर चार वर्ष पूर्व, सरदारशहर में आचार्य श्री महाश्रमणजी द्वारा साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी को तेरापंथ धर्मसंघ की नवम साध्वीप्रमुखा के रूप में नियुक्त किया गया था।
श्री स्वामी नारायण गुरुकुल परिसर में बने ‘संयमोत्सव समवसरण’ में आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ आचार्य प्रवर के 52वें दीक्षा समारोह का शुभारम्भ हुआ। संयमोत्सव समवसरण में आचार्यश्री ने जिनवाणी का रसास्वादन कराते हुए कहा — एक सुंदर प्रश्न किया गया — मैं दुर्गति को प्राप्त न होऊँ, ऐसा कौन-सा आचरण करूँ? यह संसार अध्रुव, अशाश्वत है, आत्मा शाश्वत है। शाश्वत और अशाश्वत दोनों सापेक्ष चीजें हैं। द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि से कोई शाश्वत तो पर्यायार्थिक दृष्टि से वह अशाश्वत भी होता है। आत्मा शाश्वत है, परन्तु जीवन-काल अशाश्वत है।
25 बोल का 15वां बोल - आत्मा आठ :
1. द्रव्य आत्मा
2. कषाय आत्मा
3. योग आत्मा
4. उपयोग आत्मा
5. ज्ञान आत्मा
6. दर्शन आत्मा
7. चारित्र आत्मा
8. वीर्य आत्मा
आठ आत्माओं में द्रव्य आत्मा एक है, शेष सात भाव आत्माएं हैं। सिद्ध हो या संसारी, हर जीव में द्रव्य आत्मा प्राप्त होती है। द्रव्य आत्मा शाश्वत ही होती है। इसके साथ उपयोग आत्मा और दर्शन आत्मा भी प्रत्येक जीव में हर समय उपलब्ध होती हैं। शेष पांच आत्माएं हर जीव में नहीं मिलती हैं। कषाय आत्मा अवीतराग में मिलेगी, वीतराग में नहीं। योग आत्मा चौदहवें गुणस्थान में नहीं मिलेगी, तेरहवें तक ही है। ज्ञान आत्मा मिथ्यात्वी जीवों में नहीं मिलेगी। चारित्र आत्मा चौथे गुणस्थान तक नहीं, पांचवें में देश चारित्र, छठे से चौदहवें तक। वीर्य आत्मा सिद्ध भगवान में नहीं मिलेगी।
तीन आत्माएं तो हर जीव में रहती हैं। बाकी पांच आत्माएं कोई किसी में, कोई किसी में होती हैं। संसारी जीवों में कम से कम छह आत्माएं होती ही हैं। कौन-सी छह— यह अंतर हो सकता है।
संन्यास और साधुपन बहुत बड़ी चीज यह संसार दुःखमय है — जन्म, रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु इसके प्रमाण हैं। फिर भी, आत्मा शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकती है। मोक्ष में एकांत सुख है, वहाँ कोई दुःख नहीं है। प्रश्न किया गया — कौनसे आचरण को करने से दुर्गति में न जाना पड़े — साधुपन एक ऐसा धर्म है, जिसका आराधन करने से दुर्गति से बचा जा सकता है। हमारी दुनिया में और इस जीवन में संन्यास और साधुपन बहुत बड़ी चीज है। संन्यास के सामने अन्य भौतिक चीजें ना-कुछ हैं। संन्यास जैसी पवित्र चीज भाग्य से ही मिल सकती है। भाग्य ठीक न हो तो मिली हुई वापिस भी जा सकती है। दुनिया में साधुपन और संयम अनमोल हैं — यह सौभाग्य से प्राप्त होता है। यदि साधुपन अविश्राम, अखंड चले, तो वह जीवन धन्य हो जाता है।
आज वैशाख शुक्ल चतुर्दशी है। आज के दिन मैंने गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमलजी ‘लाडनूं’ से यह संयम रत्न प्राप्त किया था। संयम रत्न को लेकर चलते आज 51 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। मानो भीतर में ऐसी टोर्च है कि कहीं जाओ यह संयम की चेतना साथ रह सकती है। मुनिश्री उदितकुमारजी स्वामी और मैंने एक साथ दीक्षा प्राप्त की थी। हमें संयम का संकल्प ग्रहण करने का सद्भाग्य प्राप्त हुआ था। मोहनीय कर्म के उदय और मोहनीय कर्म के क्षयोपशम के संघर्ष में हम विजय प्राप्त करें। साधु को ऋजुभूत होना चाहिए। साधु को झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
प्रायश्चित के तीन स्तर
साधुत्व की एक कसौटी है — सरलता। झूठ नहीं बोलना — साधु का नियम है, पर हर सच बात बोलनी ही — यह नियम नहीं है। साधुपन को शुद्ध बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है। छोटा शिशु जिस तरह माता-पिता के सामने मन की बात कह देता है, वैसे ही जो महात्मा अधिकृत व्यक्ति को अपनी गलती बता देता है, वह धन्य है। कभी कोई गलती हो भी जाए तो उसकी आलोयणा लेकर उस भार को उतार देने का प्रयास होना चाहिए। कभी कहीं दोष लग जाए तो प्रतिक्रमण और प्रायश्चित से धवल चद्दर के दाग धुल जाएँ। हमारे संयम की शुद्धता की दृष्टि से दोनों समय का प्रतिक्रमण अवश्य हो जाए। प्रायश्चित के तीन स्तर हैं — अधिकृत को गलती बताना, प्रायश्चित स्वीकार करना, प्रायश्चित का निर्वहन करना।
संयम रत्न की प्राप्ति बड़े सौभाग्य की बात है। सभी को अपना साधुपन प्यारा होना चाहिए। जिस संघ में साधना हो रही है, वह संघ प्यारा और गुरु प्यारे बने रहें। आज मेरे संयम पर्याय में आने का दिन है। मैं भी बालमुनि के रूप में इस धर्मसंघ में दीक्षित हुआ था। लगभग बारह वर्ष की अवस्था में मुझे संयम रत्न की प्राप्ति हुई। इसको 51 वर्ष संपन्न हो गया। मेरा जीवन तो मानो धन्य हो गया। साधुत्व से बड़ी और अच्छी बात क्या हो सकती है। हमारा मूल सुरक्षित रहे। मुझे दो-दो गुरुओं के शिष्यत्व का मौका मिला। मुनि श्री सुमेरमल जी स्वामी ‘लाडनूं’ से दीक्षा प्राप्त हुई। संसारपक्षीय मातुश्री नेमा जी और बड़े भाई सुजानमल जी दुगड़ ने दीक्षा हेतु आज्ञा दी और मुझे यह संयम रत्न प्राप्त हो गया।
साध्वीप्रमुखा श्री का चयन दिवस
आज के दिन तीन वर्ष पहले साध्वी विश्रुतविभा जी को साध्वीप्रमुखा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। मेरी दीक्षा की तिथि और आपके मनोनयन की तिथि एक ही हो गई। यह योग है या सलक्ष्य है — जो भी है। आचार्यों के अनुशासन में, इतने बड़े साध्वी समुदाय का मुखिया बनना एक विशेष भाग्य की बात है, जिम्मेवारी का कार्य है। पूज्यवर ने साध्वीप्रमुखा श्री को आशीष प्रदान करते हुए फरमाया — चित्त में समाधि रहे, स्वास्थ्य अच्छा रहे और मनोबल मजबूत रहे। चतुर्दशी के अवसर पर आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को भी संपादित किया। उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
युवा दिवस पर मिली मुमुक्षु वृद्धि की प्रेरणा
युवा दिवस के उपलक्ष पर आचार्य प्रवर ने आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा — आचार्य श्री तुलसी का दीक्षा दिवस होता, तब भी संभवतः युवा दिवस कहलाता था, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का भी दीक्षा दिवस युवा दिवस के रूप में और अब हमारा भी दीक्षा दिवस भी युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् और शाखाएं खूब अच्छा कार्य करती रहें और मुमुक्षु बनाने का प्रयास भी चलता रहे। धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य आगे बढ़ते रहें। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा ने युवक परिषद् और किशोर मंडल के सभी साथियों की भावनाओं को प्रस्तुत करते हुए कहा — गुरुदेव! आप हर अर्थ, हर शब्द, हर रूप में युवा हैं। आपका श्रम, आपकी ऊर्जा, आपका हर एक पल हम युवकों के लिए प्रेरणा है।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति करते हुए कहा — जिसका मूल अच्छा है, उसका फूल भी अच्छा होता है। हमारे मूल हमारे गुरु हैं, और उनकी परिधि में विकास, नव-नवोन्मेष होता रहे — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आपकी फ़ौज इस प्रकार से सज्ज है कि आपके इंगित पर यह फ़ौज चाँद-तारों को छूने को तैयार है, आसमान से आगे बढ़ने को तैयार है। आज का दिन धर्मसंघ के युवाओं के लिए विशेष त्यौंहार का दिन है।
गुजरात सरकार के उद्योग, उड्डयन व श्रम मंत्री बलवंत सिंह ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। अभातेयुप उपाध्यक्ष पवन माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद–अहमदाबाद ने अपनी प्रस्तुति दी व गीत का संगान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा गीत को प्रस्तुति दी गई। तेरापंथ महिला मण्डल–सिद्धपुर ने भी गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी। राष्ट्रीय कन्या मण्डल प्रभारी अदिति सेखानी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल–अहमदाबाद ने गीत का संगान किया। बेंगलुरु से मूलचंद नाहर, जैन विश्व भारती की ओर से राजेश दूगड़, चतुर्मास व्यवस्था समिति–अहमदाबाद के स्वागताध्यक्ष भैरुलाल चौपड़ा, तेरापंथी सभा–अहमदाबाद के अध्यक्ष अर्जुन बाफना ने भी इस अवसर पर अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जागृत कोठारी ने गीत की प्रस्तुति दी।