
गुरुवाणी/ केन्द्र
पट्ट आधार तो चद्दर है सुरक्षा कवच : आचार्यश्री महाश्रमण
वैशाख शुक्ल दशमी का पावन दिन— भगवान महावीर का केवलज्ञान कल्याणक दिवस। आज ही के दिन सरदारशहर के गांधी विद्या मंदिर के यूनिवर्सिटी ग्राउंड में युवाचार्य श्री महाश्रमण विधिवत रूप से चतुर्विध धर्म संघ की उपस्थिति में तेरापंथ धर्म संघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु की परंपरा में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के अनंतर, एकादशम् पट्टधर के रूप में प्रतिष्ठित हुए थे। सरदारशहर में ही गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमलजी लाडनूं के करकमलों से बालक मोहन दीक्षित होकर मुनि मुदित कुमार बन गए थे। गुरुदेव तुलसी की पारखी दृष्टि ने आपको महाश्रमण पद पर स्थापित किया था। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में युवाचार्य पद पर स्थापित किया था। आप ही एकमात्र ऐसे सौभाग्यशाली हैं, जिनके लिए दो युवाचार्य मनोनयन पत्र लिखे गए थे। सम्पूर्ण धर्म संघ ने आपके सोलहवें पट्टोत्सव के पावन दिवस पर आपकी अभ्यर्थना कर सात्विक आह्लाद की अनुभूति की। महाश्रमणोत्सव समवसरण में आयोजित युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के 16वें पदारोहण दिवस समारोह का शुभारंभ आचार्यश्री के मंगल मंत्रोच्चार के साथ हुआ। संतवृंद ने आचार्यश्री की स्तुति में मंगल सूक्तों का संगान किया।
प्रतिनिधि ने की आराध्य के केवलज्ञान प्राप्ति दिवस पर अभ्यर्थना
आचार्य भिक्षु की गद्दी को दीपाने वाले, आचार्य महाप्रज्ञ के सक्षम पट्टधर, युगप्रधान परम पूज्यवर आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना देते हुए फरमाया कि श्रमण ज्ञातपुत्र भगवान महावीर लोक में उत्तम हैं। आज वैशाख शुक्ल दशमी — भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति दिवस है। भगवान महावीर की साधना ने आज के दिन निष्पत्ति प्राप्त कर ली थी। व्यक्ति पुरुषार्थ करता है। पुरुषार्थ का फल तत्काल भी प्राप्त हो सकता है, तो लंबे काल बाद भी प्राप्त हो सकता है, पर पुरुषार्थ किया है तो फल अवश्य मिलता है। भगवान महावीर ने पूर्व भवों में भी साधना की थी। आज का दिन ज्ञान-दर्शन प्राप्ति से जुड़ा दिन है, वीतरागता की प्राप्ति का दिन है। भगवान ने आज के दिन क्षीणमोहता, बारहवें गुणस्थान और केवलज्ञान–केवलदर्शन का संस्पर्श किया था। वे तीर्थंकर बने, केवलज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान ने देशना दी।
क्षयोपशम और पुण्य का योग
भगवान महावीर की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा में एक आचार्य हुए हैं — महामना आचार्य भिक्षु। वे हमारे धर्म संघ के आद्य प्रवर्तक अनुशास्ता थे। उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा, उनकी व्यवस्था के अनुसार आगे बढ़ी है। हमारे धर्म संघ की परंपरा रही है कि वर्तमान आचार्य, भावी आचार्य का निर्णय करें। गुरुदेव तुलसी हमारे नवमें आचार्य हुए हैं, जिनको मैंने साक्षात देखा है। आज तक के तेरापंथ के आचार्यों में सर्वाधिक आचार्यकाल प्राप्त करने वाले कीर्तिमान पुरुष थे। पांच दशकों से भी ज्यादा उनका आचार्यकाल रहा था। मैं उनके नैकट्य में रहा हूँ। उनकी शासन प्रणाली व प्रबंधन कार्य को भी मैंने देखा है। मैंने देखा है कि आचार्य के अधिकार भी बड़े होते हैं। युवाचार्य, साध्वीप्रमुखा, अगवानी किसको बनाना — यह उनका अपना अधिकार होता है। किसी के हस्तक्षेप की अपेक्षा नहीं है। तेरापंथ के आचार्य बड़े शक्तिशाली होते हैं। वर्तमान युग में इतने बड़े धर्म संघ के नेतृत्व का अधिकार मिलना बड़ी बात होती है। यह सब क्षयोपशम और पुण्य के योग से होता है।
आचार्य श्री तुलसी ने मुझे संघीय कार्य से जोड़ा — यह उनकी दूरदर्शिता प्रतीत हो रही है। मुझे युवाचार्य महाप्रज्ञजी और आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के निकट में भी रहने का मौका मिला। मैं तेरह वर्ष तक युवाचार्य रूप में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के निकट रहा। इन तेरह वर्षों में प्रत्येक चातुर्मास और मर्यादा महोत्सव में उनके सान्निध्य में मेरा रहना हुआ। उनके पास अध्ययन करने, ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला। गुरुदेव तुलसी मुझे प्रबंधन का कार्य भी सौंपते रहे। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के समय तो मैं व्यापक रूप में प्रबंधन से जुड़ गया था। वह मेरे प्रशिक्षण का समय था। ग्राहक बुद्धि हो, तो देख-देख कर बहुत सीखा जा सकता है।
गुरुदेव तुलसी के महाप्रयाण के बाद आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने वि.सं. 2054 भाद्रव शुक्ल द्वादशी के दिन मुझे उत्तराधिकारी घोषित किया था। उसके आधार पर ही आज का दिन है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के निर्णय के अनुसार, वैशाख शुक्ला दशमी के दिन, धर्मसंघ ने औपचारिक रूप में दायित्व की चद्दर ओढ़ाई थी। इतने बड़े समुदाय के प्रशासन-संचालन का दायित्व मुझे आज के दिन मिला था। सरदारशहर में वह व्यवस्थित, गरिमापूर्ण कार्यक्रम था। चिंतन-मनन करके आज का दिन तय किया गया और मुझे भी भगवान महावीर के कैवल्य प्राप्ति की तिथि के साथ जोड़ दिया गया।
हमारे धर्मसंघ में एक आचार्य का नेतृत्व स्थापित है। दूसरों का भी सहयोग लिया जा सकता है। आचार्य को तो कईयों का आश्वासन होता है कि अमुक कार्य वह संभाल लेगा, यह उनका भाग्य है। इतना बड़ा व्यवस्था तंत्र है और हमारा धर्म संघ देश-विदेश के अनेक क्षेत्रों में फैला है। इस मायने में तेरापंथ व्यापक संप्रदाय है। साधु-साध्वियाँ और समणियाँ भी विचरण करते हैं। गुरुकुलवास में वर्तमान में मुझसे दीक्षा पर्याय में बड़ा कोई नहीं है। छोटे-बड़े सब अपने-अपने ढंग से कार्य करते हैं। अंतरग और बहिरंग सहयोग से कार्य अच्छा हो जाता है। गुरुकुलवास में तो कितने संत कर्मठता से कार्य करते हैं। कार्य के प्रति निष्ठा होना बड़ी बात है। साध्वियाँ भी अपने ढंग से कार्य करती हैं, पर उनसे मेरा ज्यादा संपर्क नहीं रहता। साध्वीप्रमुखा जी और साध्वीवर्या जी से ही व्यवस्था संबंधी संपर्क रहता है। बहिर्विहारी साधु-साध्वियों एवं समणियों से तो संदेश से संपर्क हो सकता है। अनेक रूपों में सहयोग मिलने से कार्य हो सकता है, पर श्रेय तो मुखिया को ही जाता है।
संस्थाओं का होना है तेरापंथ का भाग्य
तेरापंथ का सौभाग्य है कि यहाँ हमारी कई संस्थाएँ हैं। संस्थाएँ भी अनुशासित होकर कार्य कर रही हैं। कार्यकर्ताओं में भी विनय और समर्पण का भाव है। श्रावक-श्राविकाएँ भी कितनी सेवा का कार्य करते हैं। रास्ते की सेवा, चिकित्सा सेवा आदि अनेक कार्यों ने श्रावक समाज का सहयोग मिलता है। इतने बड़े तंत्र का मुखिया होना बड़ी बात है। पट्ट आधार है, चद्दर सुरक्षा कवच है, जो आज के दिन मिले — आज पंद्रह वर्ष पूरे हो रहे हैं।
आगम के साथ संपर्क बना रहे
मुख्य मुनि महावीर भी मेरे व्यवस्था तंत्र के कार्य से जुड़े हुए हैं। आगे भी अच्छा कार्य करते रहें। आचार्य के पास ज्ञान हो तो अच्छी बात है, जिससे तार्किकता के साथ अपनी बात प्रस्तुत की जा सकती है। मैं आगम को बहुत महत्व देता हूँ। आगम का एक-एक अक्षर ब्रह्मवाक्य है। आगम में जो आ गया उसके प्रति मेरे मन में निष्ठा का भाव रहता है। आगम के साथ संपर्क बना रहे। आचार्य की आगम और ज्ञान के प्रति निष्ठा रहे। आचार्य संप्रदायातीत रहें, बात को समझने का चिंतन रखें। सही क्या है, उसको पकड़ने की चेष्टा करें। निष्ठा से नई बात पकड़ में आ सकती है। साथ में संघीय मान्यताओं को भी सम्मान दें। संघ निष्ठा भीतर में हो, ज्ञानावरणीय का क्षयोपशम हो तो कई बार अनुकूल निर्णय भी हो सकते हैं।
तेरापंथ का आचार्य बनना विशेष भाग्य की बात
आचार्य पद का दायित्व मिलना भाग्य की बात ही मानता हूँ फिर तेरापंथ का आचार्य बनना विशेष भाग्य की बात लग रही है। अनेक संघ, संप्रदाय हमने देखें हैं, उनसे सुना भी है, आचार और सिद्धांतों की बात छोड़ दें पर व्यवस्था तंत्र में जो अनुशासन और व्यवस्था क्रम तेरापंथ का है वह अन्यत्र नहीं है, ऐसे संघ का आचार्य बनना विशेष भाग्य की बात लग रही है। एक आचार्य के अनुशासन में इतने साधु-साध्वियों, समणियों, श्रावक-श्राविकाओं की संख्या होना भी विशेष बात है। यहाँ आचार्य की आज्ञा और इंगित का सम्मान होता है। यह परंपरा अक्षुण्ण रहे और आगे बढ़ती रहे। यह संघ अनुशासित, मर्यादित धर्म संघ है। सब अपनी-अपनी जिम्मेदारी से कार्य करते हैं। साध्वीप्रमुखा जी का भी अपना योगदान है। साध्वीप्रमुखा के रूप में सेवा देते हुए तीन साल करीब होने को आ रहे हैं, आप तो पुरानी और अनुभवी हैं, पहले समणी नियोजिका, फिर मुख्य नियोजिका, ऐसे विकास करते-करते, अनुभवी साध्वीप्रमुखा हैं। साध्वीवर्या का भी व्यवस्था में सहयोग मिलता है। साध्वीवर्या को तो दीक्षा के चौथे वर्ष में ही पद पर स्थापित कर दिया गया था। तेरापंथ के इतिहास का विरल या अद्वितीय प्रसंग ही होगा कि किसी साध्वी को संयम पर्याय के चौथे साल में ही किसी पद पर स्थापित किया गया हो।
ऊपर जाकर देखूंगा
वर्तमान में मेरे साथ तीन पदस्थ चारित्रात्माएं शासन-प्रशासन, प्रबंधन के कार्यों से जुड़े हुए हैं। गुरुदेव तुलसी के समय में भी चार होते थे, गुरुदेव तुलसी स्वयं, युवाचार्य महाप्रज्ञ जी, महाश्रमण मुनि मुदितकुमार और साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी। वही स्थिति आज भी है। गुरुदेव के साथ भी तीन थे, आज मेरे साथ भी तीन हैं। आचार्य श्री तुलसी की कृपा दृष्टि और एक आश्वान मेरे प्रति था - ''ऊपर जाकर देखूंगा कि तुम लोग कैसे काम करते हो।'' आचार्य श्री तुलसी ने कितना श्रम कर मुझे आगे बढ़ाया। आचार्य श्री तुलसी के समय में ही उत्तराधिकारी का निर्णय हो जाना बड़ी बात है। दो-दो आचार्यों की विद्यमानता में यह कार्य होना तेरापंथ के इतिहास की प्रथम बात है। उन्होंने आगे की सोचकर दायित्व का निर्वहन कर दिया था। यह हमारे लिए प्रेरणा है कि कल तक का ही नहीं, परसों तक का चिंतन करना। भविष्य के बारे में सोचना अच्छी बात है।
दो गुरुओं के चरणों में मस्तक लगाना मेरे मस्तक का सौभाग्य
आचार्य श्री तुलसी ने धर्म संघ को एक मोड़ दिया था। मेरे मस्तक का सौभाग्य था जो दो गुरुओं के चरणों में मस्तक लगाने, चरण स्पर्श करने और हाथ का सहारा देने का मौका मिला था। मेरे हाथ भी धन्य हो गए। मेरे दीक्षा प्रदाता मुनिश्री सुमेरमलजी 'लाडनूं' के साथ में भी रहने का सौभाग्य मिला था। उनसे और उनके सहवर्ती संतों से भी मुझे सीखने का मौका मिला। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी से भी बचपन में संपर्क रहा था।
बक्सीस और नवीन घोषणाएं
पालनपुर में हमारा यह त्रि-दिवसीय कार्यक्रम हुआ है। पदाभिषेक दिवस पर आचार्य प्रवर ने साधु-साध्वियों को चार महीनों तक विगय से मुक्ति की बक्सीस प्रदान की। पूज्यवर ने मुमुक्षु जिगर और मुमुक्षु अर्हम को 3 सितंबर 2025 को अहमदाबाद में होने वाले दीक्षा समारोह में मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। मुमुक्षु विशाल को साधु प्रतिक्रमण सीखने की अनुमति प्रदान करवाई। साथ ही आचार्यश्री ने छोटी खाटू के मर्यादा महोत्सव समारोह में माघ शुक्ला सप्तमी, 25 जनवरी 2026 को पंजाब के चातुर्मास व मर्यादा महोत्सव के विषय में कहने की भावना व्यक्त की।
धर्मसंघ फलता-फूलता रहे
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि जन्म दिवस को मैं इतना महत्व नहीं देता। दीक्षा दिवस का महत्व है, पर पट्टोत्सव का दिवस मेरे लिए विशेष महत्व का है। ऐसे अनुशासित धर्म संघ का नेतृत्व करने का, आचार्य बनने का मौका मिला — यह विशेष बात है। आज के दिन मुझे दायित्व मिला, इस दायित्व के प्रति मेरी निष्ठा बनी रहे। धर्म संघ हमारे लिए त्राण है, प्राण है। साधु-साध्वियाँ, समणियाँ व श्रावक-श्राविकाएँ भी अच्छी सेवा करते रहें। मैं खुद भी और हमारा धर्मसंघ भी फलता-फूलता रहे।
आत्मसम्राट है बनना विशेष बात
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने पूज्यवर की अभ्यर्थना में कहा कि आज पट्टोत्सव का दिन है। चारों ओर उल्लास ही उल्लास है। आज के दिन आचार्य प्रवर ने नेतृत्व की बागडोर को हाथ में लिया था। आपके सफल नेतृत्व को देखकर अहोभाव की अनुभूति हो रही है। नेतृत्व के सन्दर्भ में चार बातें विशेष हैं — IQ, EQ, AQ और SQ। आचार्य प्रवर की बौद्धिक क्षमता विशेष है। आप एक कनेक्टर का कार्य कर रहे हैं। कितने-कितने जैन-जैनेतर लोग आपके साथ जुड़ रहे हैं। आप क्रिएटर का कार्य कर मानवता के हित की बात कर रहे हैं। आचार्य श्री अपनी शक्तियों का नियोजन संयम और तपस्या में कर रहे हैं। आभ्यंतर चेतना का जागरण कर रहे हैं। आपके तर्क का प्रति-तर्क नहीं है। आगम की गहन बातों को आप सरलता से समझा देते हैं। हर जिज्ञासा का सटीक समाधान प्रदान करा रहे हैं। आप अपने आवेश-आवेग को नियंत्रण में रखते हैं। आप उपशम के सर्वोच्च स्थान पर विराजित हैं। आप विपरीत परिस्थिति में भी चैलेंज लेकर आगे बढ़ते हैं। आप अध्यात्मनिष्ठ हैं, अध्यात्म के प्रति जागरूक हैं। बाह्य सौंदर्य को आप अध्यात्म के सौंदर्य में जोड़ देते हैं। आत्मसम्राट बनना विशेष बात है। आपके केंद्र में आत्मा रहती है। आप शतायु, दीर्घायु और चिरायु बनें और भैक्षव शासन को दीपायमान करते रहें।
विलक्षण और असाधारण आचार्य
मुख्यमुनि श्री महावीरकुमारजी ने वर्धापना के स्वरों में कहा कि तेरापंथ धर्म संघ के लिए आज का दिन एक विशेष उत्साह का दिन है। वह संघ, संघ कहलाता है जिसका नेतृत्व निपुण हो। आप चारित्र निपुण हैं। आपका प्रबंधन कौशल विशिष्ट है। आप मनोवैज्ञानिक ढंग से काम करते हैं। आप हर स्थिति में जागरूक रहते हैं। साधना में तो आप विशेष जागरूक हैं। संघ के शुभ भविष्य के प्रति भी आप जागरूक हैं। आप विलक्षण आचार्य हैं। आप एक असाधारण आचार्य होते हुए भी साधारण जीवन जीते हैं। आप पदयात्रा भी प्रलंब कर रहे हैं। आप निर्णायक मति के धनी हैं। आपकी चिंतन शक्ति विशिष्ट है। आप चिंतन, निर्णय और क्रियान्विति के महान आदर्श हैं। आपकी ख्याति भी विशेष है। तेरापंथ में तो आचार्य परम पुरुष होते हैं। आपका कृतित्व-व्यक्तित्व विशिष्ट है। एक बार जो पास में आ जाता है, आपका भक्त बन जाता है। आप सुदीर्घ काल तक हम सब पर शासन-अनुशासन कराते रहें।
अभ्यर्थना की लम्बी कतार
पूज्यवर की अभिवंदना में चारित्रात्माओं ने विभिन्न माध्यमों से अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। मुनि अजितकुमारजी, मुनि मृदुकुमारजी व मुनि वर्धमानकुमारजी ने अदालत की सुंदर प्रस्तुति दी। मुनिवृंद ने सुमधुर गीत — “नेमा मां के आंगन आया, मानो देव कंवर” — की सुंदर प्रस्तुति दी। साध्वी वृंद ने भी सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। संसारपक्ष में गुजरात से संबद्ध साध्वीवृंद और समणीवृंद ने गुजराती भाषा में गीत का संगान किया। पूज्यवर की अभ्यर्थना में साध्वी देवार्यप्रभाजी, साध्वी नवीनप्रभाजी, साध्वी तन्मयप्रभाजी, साध्वी मैत्रीयशाजी, साध्वी समताप्रभाजी, साध्वी वैभवप्रभाजी, साध्वी सिद्धांतश्रीजी, साध्वी दर्शितप्रभाजी, साध्वी हेमयशाजी, साध्वी चारित्रयशाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। समणी हर्षप्रज्ञाजी, समणी संचितप्रज्ञाजी ने भी अपनी प्रस्तुति दी।
पालनपुर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों व स्थानीय तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी। परेशभाई मोदी, तेरापंथी सभा-पालनपुर के अध्यक्ष सुभाषभाई खटेड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के संसारपक्षीय भाई सूरजकरण दूगड़ व सुमतिचंद गोठी ने भी आचार्यश्री को वर्धापित किया। समस्त तेरापंथ समाज की ओर से ‘संस्था शिरोमणि’ तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने आचार्यश्री की अभिवंदना की। अल्काबेन ने अपनी प्रस्तुति दी। पालनपुर के युवक-युवतियों ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।