
गुरुवाणी/ केन्द्र
धर्म से बनाएँ इस दुर्लभ मानव जीवन को सफल : आचार्यश्री महाश्रमण
वीतराग पुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 किमी का विहार कर तेनीवाड़ा के मातुश्री मोंघीबेन रामजीभाई उपलाणा विद्यालय परिसर में पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगपुरुष ने फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है — मनुष्यों का जीवन वृक्ष के पके हुए पत्ते के समान है। जैसे वह पत्ता एक दिन गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाता है। यह जीवन की अनित्यता है। इसलिए संदेश दिया गया है— ''गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत करो।''
व्यक्ति के लिए यह संदेश है कि यदि तुम मोह-माया और भौतिकता में रचे-पचे रहते हो, तो यह स्मरण रखना चाहिए कि यह जीवन अशाश्वत है। दुनिया में कोई भी अमर नहीं है। जीवन अस्थायी है, आत्मा ही आगे जाती है। व्यक्ति सोचे — मैं विषय-भोगों में आसक्त हूँ, इससे क्या लाभ होगा? मैं धर्म का कार्य करूँ — वह साथ जाएगा। अध्यात्म, निर्मलता, उज्ज्वलता ही साथ जा सकेगी।कई बार तो पता ही नहीं चलता कि जीवन कब पूरा हो जाए। मृत्यु के आने के अनेक द्वार हैं। दुर्लभ मानव जीवन हमें प्राप्त हुआ है — हमें धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए, जीवन में ईमानदारी रखनी चाहिए। धर्म करने से जीवन सफल और सार्थक हो सकता है। संयोग का वियोग भी होता है। जैसे धर्मशाला में राही आते हैं और चले जाते हैं, वैसे ही व्यक्ति आता है और चला जाता है। आत्मा हमारी स्थायी है, अछेद्य है; शरीर अशाश्वत है। हम जैसा कर्म करते हैं, वैसा फल मिलता है। मानव जीवन मिला है, तो बुरे कार्यों से बचें, अच्छे कार्य करें। इस दुर्लभ जीवन का सदुपयोग करें। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संस्कार रहें।
गुरुदेव तुलसी ने 'अणुव्रत' के छोटे-छोटे नियमों की बात कही थी — उन्हें अपनाने से जीवन अच्छा बन सकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्रेक्षा ध्यान कराते थे। व्यक्ति आँख मूँद कर अपने भीतर देखे — मैं कौन हूँ? कैसा हूँ? धर्म और अध्यात्म की साधना से आत्मा का कल्याण संभव है। धर्मग्रंथों, संतों और पंथों से हमें उत्तम प्रेरणाएँ प्राप्त हो सकती हैं। सबके प्रति मैत्री की भावना रहे। इस मानव जीवन से हम भवसागर को तरकर मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। विद्यालय में विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार दिए जाएँ। पूज्यवर के स्वागत में विद्यालय के प्रिंसिपल परवीन पटेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।