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मृत्युंजयी साधिका : साध्वी संचितयशा
संघ वाटिका रंग-बिरंगे फूलों से मनोहर एवं रमणीय बनी हुई है। आज से 36 वर्ष पूर्व, इसी संघ वाटिका में एक कली खिली थी, जो फूल बनकर सबको सम्मोहित करती रही। वह फूल आज नहीं रहा, किन्तु उसकी खुशबू से धर्मसंघ महक रहा है। तुलसी युग के उस फूल का नाम है साध्वी संचितयशा। संघ गगन की चमकती हुई तारिका का नाम है साध्वी संचितयशा। हर पल को खूबसूरती से जीने वाली चेतना का नाम है साध्वी संचितयशा। जीवन के हर पल को सृजन में लगाकर आनन्द के निर्झर में अहर्निश अभिस्नात होने वाली निर्झरणी का नाम है साध्वी संचितयशा। जीवन को उत्सव की तरह जीने वाली एवं अंतिम समय में मृत्यु को महोत्सव का रूप देने वाली मृत्यंजयी साध्वी का नाम है साध्वी संचितयशा।
साध्वी संचितयशा जी हमारे धर्मसंघ की एक प्रबुद्ध साध्वी थीं। उनका शोध-प्रबंध उनकी प्रबुद्धता का दिग्दर्शन कराने वाला है। उनकी सुदृढ़ लेखनी से आलेखित लेख पाठकों को नई दिशा देने वाले होते थे। वे कुशल लेखिका एवं गीतकार साध्वी थीं। साध्वी संचितयशा जी कलाप्रिय साध्वी थीं। सिलाई, कढ़ाई एवं रंगाई में वे निष्णात थीं। वे चित्रकला में पारंगत थीं। उनके हाथों से निर्मित अमृत कलश को देखकर लगता था, वास्तव में कला की साधना की हो। साध्वी संचितयशा जी तेरापंथ दर्शन की ज्ञाता एवं तत्वज्ञ साध्वी थीं। गूढ़ तत्वों को सरल शब्दों में व्याख्यायित करने में सिद्धहस्त थीं। उनका आन्तरिक व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावक था। वे सौम्य स्वभाव की, मृदु व्यवहार वाली, मधुर तथा अल्पभाषिणी साध्वी थीं। उपशांत कषाय वाली साध्वी थीं। क्षण-क्षण जागरूक रहकर हर क्षण को सार्थक करने वाली साध्वी थीं। वे इंगियाकार संपन्न साध्वी थीं।
शासनश्री साध्वी सोमलता जी के साथ 25 वर्षों तक पय और मिश्री की तरह एकमेक होकर रहीं। उन्होंने शासनश्री को हर पल निश्चिंतता प्रदान की। परछाई की तरह साथ रहने वाली साध्वी संचितयशा जी ने उनको अहर्निश चित्त समाधि प्रदान की। शासनश्री साध्वी सोमलता जी के प्रयाण के पश्चात वे साध्वी शकुन्तला जी के साथ रहीं। चारों साध्वियों की परस्परता, सौहार्द स्तुत्य है। अस्वस्थ रहने के बावजूद वे हमेशा प्रसन्न रहती थीं। साध्वी शकुन्तलाश्री जी ने उनको संथारापूर्वक विदाई दी है। उनके आत्मोत्थान में सहयोगी बनी हैं। साध्वी जागृतयशा जी, साध्वी रक्षितयशा जी ने खूब सेवा की है। उनकी रिक्तता सभी को खल रही होगी, पर उस रिक्तता की पूर्ति असंभव है। भवितव्यता को कोई रोक नहीं सकता।
साध्वी संचितयशा जी हमारी संसारपक्षीय भतीजी थीं। मुम्बई प्रवास में उनसे मिलना हुआ। उनकी विनम्रता, सहजता, सरलता से मैं अभिभूत हूँ। वे वीतराग चेतना, वीतरागता के पथ पर निरन्तर गतिशील रहीं एवं एक दिन शिवरमणी का वरण करें। संसार पक्षीय संतोकभाई जी चण्डालिया के पूरे परिवार ने जागरूकता के साथ अपने दायित्व का निर्वहन किया है। आगे भी धर्मसंघ की सेवा करते रहें — मंगलकामना।