अंक तीन के सन्दर्भ में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा

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साध्वी सिद्धार्थप्रभा

अंक तीन के सन्दर्भ में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा

तीर्थंकर भगवान गणधरों को तीन मातृका पद का उपदेश देते हैं - उप्पण्णे इवा, विगमेइ वा, धुवेइ वा - उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य। ये तीन मातृका पद सृष्टि का मूल हैं। इस आधार पर गणधर सूत्रागम की रचना करते हैं। यह कथन संक्षेप नय की दृष्टि से है। यदि इन तत्वों को अनेक वर्गों में वर्गीकृत किया जाए तो जैन दर्शन को विस्तार से जाना व समझा जा सकता है। किसी भी तत्त्व या वस्तु के विविध पहलुओं को जानने से उस विषय की गहरी जानकारी प्राप्त हो सकती है। सिर्फ तत्त्व या वस्तु ही नहीं, अपितु किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान भी तभी सुगमता से प्राप्त होती है जब उसे विविध पहलुओं से देखा जाए। ऐसे अनेक व्यक्तित्वों में एक महान् विभूति है - तेरापंथ धर्मसंघ की नवमी साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी। साध्वीप्रमुखाश्री जी का व्यक्तित्व भी विविधता लिए हुए है। उनका जीवन भी विविध पहलुओं का स्पर्श करता है। आज उनके तीसरे चयन दिवस की परिसम्पन्नता के उपलक्ष में प्रस्तुत आलेख उनके जीवन के उन पहलुओं को देख रहा है जो अंक तीन से जुड़ा हुआ है। उनका जीवन अनेक रूपों में प्रेरणा दे रहा है, परन्तु यहां सिर्फ संख्या की दृष्टि से तीन-तीन विषयों की परिगणना की गई है। इससे साध्वीप्रमुखाश्री जी के जीवन से जुड़े अनेक तथ्यों को सुगमता से जाना जा सकता है।
1. उनके गृहस्थ अवस्था के नाम में तीन अक्षर थे - सरोज :
1. स
2. रो
3. ज
2. उन्होंने तीन आध्यात्मिक श्रेणियों का आरोहण किया -
1. मुमुक्षु
2. समणी
3. साध्वी
3. भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक श्रेणियों के भिन्न-भिन्न तीन अभिधान हुए -
1. मु. सविता
2. समणी 'स्मित' प्रज्ञा
3. साध्वी 'विश्रुत विभा'
4. तीन मुख्य प्रसंग लाडनूं में हुए -
1. वैराग्य प्रस्फुरण (संस्था प्रवेश)
2. अभिनिष्क्रमण (समणी दीक्षा)
3. श्रेणी आरोहण (साध्वी दीक्षा)
5. संस्था के 6 साल में प्रथम तीन साल में स्नातक से पूर्व के तीन कोर्स (अध्ययन) किए।
6. शेष तीन साल में विश्वविद्यालय के B.A. अध्ययन में ब्राह्मी विद्या पीठ से तीन सालों में तीन-तीन महीनों के सेमेस्टर से गहन अध्ययन किया।
7. तीन दायित्वों को प्रथम बार संभाला -
1. प्रथम मुमुक्षु निर्देशिका
2. प्रथम समणी नियोजिका
3. प्रथम विदेश यात्रा
8. तीन गुरुओं द्वारा तीन पद पर आसीन हुईं -
1. समणी नियोजिका - आचार्य तुलसी
2. मुख्य नियोजिका - आचार्य महाप्रज्ञ
3. साध्वी प्रमुखा - आचार्य महाश्रमण
9. अपने जीवन में तीन आचार्यों का निकट सान्निध्य प्राप्त हुआ -
1. आचार्य तुलसी
2. आचार्य महाप्रज्ञ
3. आचार्य महाश्रमण
10. साधना की प्रारम्भिक अवस्था में तीन विभूतियों का योग रहा -
1. गुरु तुलसी
2. गुरु महाप्रज्ञ
3. शासनमाता
11. ठाणं के तीसरे स्थान के अनुसार जीवन के तीन याम होते हैं : 8 से 30 वर्ष, 31 से 60 वर्ष, 61 से आगे। उस अपेक्षा से आपका तीसरा याम चल रहा है।
12. समणी दीक्षा के समय लाडनूं से दीक्षित होने वाली बहिनें तीन -
1. मु. सरिता (समणी स्थितप्रज्ञा)
2. मु. सविता (समणी स्मितप्रज्ञा)
3. मु. विभावना (समणी विशुद्धप्रज्ञा)
13. तीन महाद्वीपों की यात्रा -
1. Asia
2. Europe
3. America
14. श्रेणी आरोहण के बाद तीन देशों की यात्रा -
1. भारत
2. नेपाल
3. भूटान
15. लाडनूं की तीसरी साध्वी प्रमुखा -
1. सा.प्र. लाडांजी
2. सा.प्र. कनकप्रभाजी
3. सा.प्र. विश्रुतविभाजी
16. आपके निकटतम ज्ञाति साध्वी तीन हैं -
1. सा. चन्द्रलेखा जी
2. सा. सोमप्रभा जी
3. सा. मुदितयशा जी
17. आपके दूरवर्ती ज्ञाति सदस्य भी तीन हैं -
1. सा. जिनप्रभा जी
2. सा. मंगलप्रभा जी
3. समणी अभयप्रज्ञा जी
18.मुख्य नियोजिका अलंकरण दिनांक - 3 Nov, 205
19. मुख्य नियोजिका की अवस्था में तीन नव दीक्षित साध्वियों का लुञ्चन किया -
1. सा. शारदा प्रभा
2. सा. स्नेह प्रभा
3. सा. नमन प्रभा
20. मुख्य नियोजिका की अवस्था में आचार्य महाप्रज्ञ जी की विद्यमानता में आपको तीन बक्शीश प्रदान किए गए -
1. समुच्चय के कार्यों की बक्शीश
2. आहार की पांती की बक्शीश
3. समुच्चय के बोझ की बक्शीश
21. आपको मुख्य नियोजिका की अवस्था में आचार्य महाश्रमण द्वारा प्रदत्त बक्शीश ये हैं -
1. औषध विगय बक्शीश
2. हाजरी में खड़ा न होना
3. कुर्सी पर बैठने की बक्शीश
22. तीन भाषाओं में लेखन किया -
1. अंग्रेजी
2. हिन्दी
3. संस्कृत (मूलपाठ की संस्कृत छाया)
23. तीन वस्तुओं का प्रायः अधिक उपयोग करती हैं -
1. रजोहरण / प्रमार्जनी
2. उपनेत्र
3. माला
24. प्रारम्भ से साधना के तीन आयामों में सबसे अधिक प्रवृत्त हैं -
1. तप
2. जप
3. स्वाध्याय
25. मुख्य नियोजिका की अवस्था में उपवास के अतिरिक्त सबसे ज्यादा तप:साधना तेरे की करवाते थे।
26. प्रतिदिन लगभग जागरण का समय - 3.30 am
27. तीन स्थानों पर प्रायः मौन साधना -
1. चलते समय
2. आहार करते समय
3. प्रतिक्रमण करते समय
28. तीन अनूठे संकल्प -
1. विधिवत प्रतिक्रमण करना
2. गुरु दर्शन बिना आहार ग्रहण नहीं करना
3. प्रतिदिन चौविहार नवकारसी
29. आपने तीन प्रकार के स्थविरत्व को प्राप्त किया -
1. जाति स्थविर
2. श्रुत स्थविर
3. पर्याय स्थविर
30. परमाराध्य आचार्यश्री तुलसी ने 19 नवंबर, 1992 में भगवान महावीर दीक्षा कल्याणक के अवसर पर लाडनूं में आगम अध्ययन में विधिवत् संलग्न किया - 3 संत, 3 साध्वियों, 3 समणियों को -
1. सा. श्रुतयशा
2. सा. मुदितयशा
3. सा. विश्रुतविभा
31. परमपूज्य युवाचार्य महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में आगम कार्य में प्रथम जुड़ने वाली साध्वियां तीन थीं -
1. सा. श्रुतयशा
2. सा. मुदितयशा
3. सा. विश्रुतविभा
32. आपश्री ने तीन आगमों का काम संयुक्त रूप में किया -
1. नंदी
2. अनुयोगद्वार
3. ज्ञाताधर्मकथा
33. आपश्री ने तीन Introductory text का लेखन किया -
1. Introduction to Jainism
2. Introduction to Terapanth
3. Introduction to Preksha Meditation
ऐसे अनेक त्रिभंगिया आपश्री के व्यक्तित्व के साथ जुड़ जाती हैं। हमने देखा, आपश्री तीसरे पद ‘आचार्य पद’ की विशेष आराधना करती हैं। साध्वीप्रमुखा मनोनयन के इस तीसरे बसंत की परिसम्पन्नता पर आत्मनिष्ठा, संघनिष्ठा व गुरु निष्ठा से अभिस्नात आपका जीवन यूं ही सदियों तक साध्वी समाज को ज्ञान, दर्शन, चारित्र की त्रिपथगा की प्रेरणाएं देता रहे मंगल कामना।