प्रेक्षा ध्यान, जीवन-विज्ञान और साहित्य के महान आचार्य के 16वें महाप्रयाण दिवस पर विविध कार्यक्रम

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मध्य उत्तर कोलकाता

प्रेक्षा ध्यान, जीवन-विज्ञान और साहित्य के महान आचार्य के 16वें महाप्रयाण दिवस पर विविध कार्यक्रम

मुनि जिनेश कुमारजी के सान्निध्य में तेरापंथी सभा मध्य-उत्तर कोलकाता द्वारा हरियाणा भवन में प्रेक्षाप्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के 16 वें महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धार्पण समारोह का आयोजन हुआ। इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा आचार्य महाप्रज्ञ जी अनेक विशेषताओं के धनी थे। वे एक संत, आचार्य, प्रशासक, ज्ञानी, विज्ञानी, आगम वेत्ता, विधिवेता, दार्शनिक, यायावर, प्रवचनकार, साहित्यकार, लेखक व कवि थे। वे जैन न्याय के राधाकृष्णन् थे। उनकी सहिष्णुता, समर्पण, श्रमनिष्ठा, सहजता, सरलता बेजोड़ थी। वे निर्मल व पवित्र आभा से सम्पन्न थे। उन्होंने अनेक सम सामयिक विषयों पर करीब 275 ग्रंथों की रचना की। उनके ग्रंथ साहित्य जगत की अमूल्य निधि हैं। मुनिश्री ने आगे कहा, “वे आचार्य श्री तुलसी के विचारों के भाष्यकार थे। उन्होंने अपने जीवन के नौवें दशक में अहिंसा यात्रा कर विशिष्ट कार्य किया। उनके 16 वें महाप्रयाण दिवस पर अपनी श्रद्धा समर्पित करता हूं।“ इस अवसर पर मुनि परमानंद जी ने कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी दृढ़, संकल्प के धनी थे। मुनि कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल मध्य कोलकाता की बहनों द्वारा महाप्रज्ञ अष्टकम् के संगान से हुआ। स्वागत भाषण तेरापंथी सभा मध्य उत्तर कोलकाता के अध्यक्ष पारसमल सेठिया ने दिया। इस अवसर पर कलकत्ता सभा के अध्यक्ष अजय भंसाली, रमेश गोयल ने अपने श्रद्धासिक्त उद्‌गार व्यक्त किये। श्रद्धार्पण समारोह में तेरापंथ महिला मंडल मध्य कोलकाता, पूर्वांचल, दक्षिण कलकत्ता, दक्षिण हावड़ा, उत्तर हावड़ा, टांलीगंज-बेहाला ने गीत, कविता, शब्द‌चित्र आदि के माध्यम से आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी को श्रद्धा समर्पित की। आभार ज्ञापन सहमंत्री विनय बच्छावत ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि परमानंदजी ने किया। रात्रि में मुनिश्री के सान्निध्य में ‘एक शाम महाप्रज्ञ के नाम’ भजन संध्या का आयोजन ओसवाल भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर जैन कार्यवाहिनी तेयुप साउथ हावड़ा, उम्मेद राखेचा ग्रुप ने सुमधुर गीतों का सामूहिक संगान करते हुए अपनी श्रद्धा समर्पित की। मुनि कुणाल कुमार जी, जगत छाजेड़, ताराचंद बरमेचा एवं सुरेन्द्र बोथरा ने एकल गीत प्रस्तुत किया।