ग्रोथ के लिए नई सोच, नये चिन्तन की बने अवधारणा

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चेन्नई।

ग्रोथ के लिए नई सोच, नये चिन्तन की बने अवधारणा

तेरापंथ सभा किलपाक, चेन्नई के तत्वावधान में प्रिंस गेलड़ा गार्डन में 'थिंक डिफरेंट' वर्कशॉप के प्रथम चरण में ' विकास की सौगात, प्रकटे नव प्रभात' विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र के समुच्चारण से हुआ। मुनि भव्यकुमारजी ने मंगलाचरण गीत की प्रस्तुति दी। कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुनि मोहजीतकुमारजी ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा किए कि संसार के अनंत आकाश को देखने के लिए धरती से आगे बढ़ना होगा।
नर्सरी के पौधे सीमित सीमा में ही बढ़ते हैं, जबकि जंगल के पौधे आंधी-तूफानों में भी स्थिर रहते हैं, गहरी जड़ों के साथ विशाल बनकर फल-फूल प्रदान करते हैं। उसी प्रकार व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी नई सोच और नवीन दृष्टिकोण के साथ अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अतीत की स्मृतियों को साथ लेकर नवीनता की ओर बढ़ना ही वास्तविक विकास है। संवेगों पर नियंत्रण, सहिष्णुता, सामंजस्य और करुणा की चेतना को जागृत कर ही सत्य का सत्व प्राप्त किया जा सकता है। मुनिश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों की विकासशील सोच की भी सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने समय के साथ परिवर्तनों को स्वीकारते हुए संघ को निरंतर नवीन पायदानों पर पहुँचाया है।
मुनि जयेशकुमारजी ने ‘विकास’ शब्द का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि ‘वि’ का तात्पर्य है विवेक – जो हर कार्य में सम्मिलित होना चाहिए। एक विवेकशील मित्र कभी-कभी कठोर लग सकता है, लेकिन वही व्यक्ति सही मार्गदर्शन और सद्बुद्धि देता है। ‘का’ से तात्पर्य है काल – भगवान महावीर ने कहा है, ' काले कालं समायरे' अर्थात समय पर किया गया कार्य ही निष्पादन को प्राप्त करता है। काल की महत्ता सर्वोपरि है और हर क्षण का सही उपयोग आवश्यक है। ‘स’ का आशय सकारात्मक दृष्टिकोण से है – जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहिए। दूसरों को प्रसन्न करने की अपेक्षा स्वयं को संतुलित, शांतिपूर्ण और ऊर्जा से भरपूर बनाए रखना आवश्यक है। सभा मंत्री विजय सुराणा और विजयराज कटारिया ने भी कार्यशाला को संबोधित करते हुए अपने विचार साझा किए और कार्यक्रम की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त की।