
गुरुवाणी/ केन्द्र
विलक्षण युगपुरुष थे तुलसी और महाप्रज्ञ : आचार्यश्री महाश्रमण
संयम के महासागर, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी अहमदाबाद के उपनगरों का विहार करते हुए ठाकोरभाई देसाई हॉल में पधारे। परिसर में बने ऑडिटोरियम में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने अपने प्रेरणा-पाथेय में फरमाया कि प्रज्ञा का जीवन में अत्यंत महत्व है। जब ज्ञान राग-द्वेष से मुक्त होता है, तभी वह निर्मल होता है। ज्ञान के साथ राग-द्वेष के साथ जुड़ जाता है तो वह ज्ञान मलीन हो जाता है। जो ज्ञान राग-द्वेष से मुक्त होता है, वह मात्र ज्ञान है। एक आदमी धर्मग्रन्थ पढ़ता है और वैराग्य भाव के साथ उसका अध्ययन करता है, वह अमोह की ओर आगे बढ़ सकता है। ज्ञान के साथ राग-द्वेष जुड़ता है तो वह अशुभग योग हो जाता है। मन, वचन और काया की प्रवृत्तियां उज्जवल भी और मैली भी हो सकती हैं। मोह का योग हो गया तो योग अशुभ बन गया, मोह कर्म का वियोग हो गया तो योग उज्जवल रह सकता है।
पूज्यवर ने आगे कहा कि — आज आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी — आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जन्मदिवस है। आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को टमकोर में उनका प्राकट्य हुआ। इसी महीने में आचार्यश्री तुलसी का महाप्रयाण हुआ था। आज एक नया संयोग बन गया है कि दिनांक के हिसाब से आचार्यश्री तुलसी का महाप्रयाण दिवस है और आज आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी आ गई तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जन्मदिवस भी आज के दिन आ गया। एक महान आचार्य का प्रस्थान आज के दिन हुआ तो एक आचार्य का जन्म आज के दिन हुआ। जन्म और महाप्रयाण का मानों जोड़ा है। जन्म अकेला नहीं आता, वह मृत्यु को भी अपने साथ लेकर ही आता है, किन्तु मृत्यु का प्राकट्य कब होगा, यह आने पर पता चलता है। आज का दिन हमारे दोनों सुगुरुओं से जुड़ा हुआ है।
आचार्यश्री तुलसी जैन शासन के विशिष्ट आचार्य थे। उनका कार्य क्षेत्र जैन शासन की सीमा से पार का भी था। मानव जाति के लिए भी उन्होंने कार्य किया था। तेरापंथ के आचार्य थे तो तेरापंथ के उन्होंने कितना श्रम और समय लगाया। जैन शासन के लिए जैन आगमों का संपादन का कार्य भी दोनों आचार्यों से जुड़ा हुआ है। आगम कार्य के वाचना प्रमुख आचार्यश्री तुलसी थे और इस कार्य को आगे बढ़ाने में मेरुदण्ड के समान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी थे। उनमें विशेष प्रज्ञा थी। दस आचार्यों में सबसे अधिक आयुष्य प्राप्त करने आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी थे। दोनों ही आचार्य युगप्रधान भी हुए। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अपने गुरु की विद्यमानता में आचार्य बनने का सुअवसर मिला। जीवन के नवमें दशक में अनेक प्रान्तों की यात्रा की। जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने प्रवचन किया।
तुलसी और महाप्रज्ञ—दोनों विलक्षण युगपुरुष थे, जिन्होंने न केवल अध्यात्म को ऊँचाई दी, बल्कि नैतिक जीवन की नयी रेखाएं खींचीं। गुरुदेव तुलसी स्वयं फरमाया करते थे—"तुलसी में महाप्रज्ञ को देखो और महाप्रज्ञ में तुलसी को देखो।" पूज्यवर ने कहा कि उन्हें दोनों महान गुरुओं के चरणों में रहने, चलने, बैठने और सोने तक का सौभाग्य मिला। भारत के राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से उनका आत्मीय संबंध था। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान, अध्ययन-अध्यापन—आदि उनके द्वारा समाज को दी गई अनुपम देन हैं। कार्यक्रम में मुनि मदनकुमारजी ने पूज्यवर की अभिवंदना करते हुए अपनी भावना व्यक्त कीं। आचार्यश्री के स्वागत में तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। पश्चिम सभा के पूर्व अध्यक्ष पारसमल कोठारी, प्रवास व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष छत्रसिंह बोथरा व पश्चिम सभा के उपाध्यक्ष पवन जैन ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।