
गुरुवाणी/ केन्द्र
धर्म के प्रति रहे अडिग निष्ठा : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ के महासूर्य, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी अहमदाबाद के उत्तर क्षेत्र से विहार करते हुए पश्चिम क्षेत्र के घटलोडिया स्थित शायोना इंटरनेशनल स्कूल में पधारे। पूज्यवर ने पावन प्रेरणा-पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जीवन में समर्पण और भक्ति का अत्यंत महत्व है। जब व्यक्ति किसी को अपना आराध्य, गुरु या धर्मस्वरूप स्वीकार कर लेता है, तो उसके प्रति स्वाभाविक रूप से भक्ति और समर्पण का भाव जागृत हो जाता है। जहां समर्पण होता है, वहां कोई किंतु-परंतु नहीं रहता। समर्पण और भक्ति व्यक्ति, सिद्धांत या नियम किसी के प्रति भी हो सकती है। संघ और शासन के प्रति भी श्रद्धा और निष्ठा का भाव होना चाहिए। यदि कठिनाइयों में भी समर्पण अडिग बना रहे, तो वही सच्चा समर्पण कहा जाता है। सच्चे समर्पण में स्वार्थ नहीं होता। समर्पण के विविध क्षेत्र हो सकते हैं—आराध्य, अर्हत, सिद्ध और शुद्ध साधुजनों के प्रति। शास्त्रों में कहा गया है कि चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया जाए। नमस्कार करना भी भक्ति का एक रूप है। त्याग और संयम के समक्ष स्वयं देवता भी मस्तक झुकाते हैं। जो मन से सदैव धर्म में रमा रहता है, वह नमनीय होता है। णमोकार महामंत्र भी भक्ति का सर्वश्रेष्ठ पाठ है। एक बार इसका पाठ करने से पाँच बार नमस्कार हो जाता है। यह मंत्र विशुद्ध धर्ममय है—उसमें कहीं भी भौतिकता या लोकोन्मुख भावना नहीं है।
अपने नियमों और व्रतों के प्रति भी भक्ति होनी चाहिए। श्रावक अर्हन्नक का उदाहरण बताता है कि संकट आने पर भी धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म अत्यंत ऊंची और गहन साधना का विषय है। यदि धर्म छूट गया, तो भव-भव में भटकना पड़ेगा। शरीर छूट जाए—कोई बात नहीं; पर धर्म कभी न छूटे। हमारे अंतर्मन में समर्पण और भक्ति का भाव बना रहे। आत्मा के उत्थान हेतु धर्म के प्रति आस्था, गुरु के प्रति श्रद्धा और देव के प्रति समर्पण ही कल्याणकारी पथ है। कठिनाइयाँ आती हैं, पर निकल भी जाती हैं। संकट परीक्षा की घड़ी होते हैं, पर धर्म के प्रति हमारी निष्ठा अडिग रहनी चाहिए। पूज्यवर के स्वागत में पश्चिम सभा के अध्यक्ष सुरेश दक, चातुर्मास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष गौतम बाफणा, शायोना स्कूल के सुरेशभाई पटेल और जयंतिभाई भटेवरा ने भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के विद्यार्थियों द्वारा सुंदर प्रस्तुति दी गई। महिला मंडल द्वारा स्वागत गीत एवं कन्या मंडल की भक्ति प्रस्तुति हुई। अणुव्रत विश्व भारती द्वारा आयोजित त्रि-दिवसीय सेमिनार के समापन समारोह में प्रताप दुगड़ ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।