
गुरुवाणी/ केन्द्र
संतों की प्रेरणा से बन सकते हैं पतित से पावन : आचार्यश्री महाश्रमण
जन-जन के उद्धारक, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी प्रातः लगभग 10 किमी का विहार कर चन्द्राला स्थित ज्योति विद्या मंदिर के प्रांगण में पधारे। अमृतमय देशना प्रदान करते हुए परम पूज्य ने प्रेरणा दी कि साधु-संतों का गांवों में प्रवास होता है। उनके द्वारा प्रवचन और सत्संग की प्रभावशाली परंपरा चलती है, जिसमें अनेक श्रद्धालु भागीदार बनते हैं और श्रद्धा से श्रवण करते हैं। एक साधु जब बोलता है, तो अनेक श्रोता उसे सुनते हैं। वक्ता की वाणी से ज्ञान का प्रसार होता है और श्रोतागण उस ज्ञान को आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। जैसे विद्यालयों में विद्या का आदान-प्रदान होता है, वैसे ही सत्संग भी ज्ञान की प्राप्ति का एक केंद्र बन जाता है। साधु की वाणी उसकी साधना से प्रभावित होती है, जो श्रोता के मन-मस्तिष्क को गहराई तक छू सकती है।
वक्ता अनेक प्रकार के होते हैं, परंतु हर वक्ता के प्रति समान श्रद्धा भाव हो, यह आवश्यक नहीं। किंतु जब वह वक्ता त्यागी-संयमी संत हो, तो उसकी वाणी स्वतः ही प्रभावशाली बन जाती है। आस्था के स्थान बनने पर श्रावक संतों के सामान्य से निर्देश को भी आदरपूर्वक सुनते हैं और उस पर चिंतन करते हैं। गुरुओं की कही हुई बातों को सुनकर हर्ष की अनुभूति होती है। जब वचन, श्रवण और श्रद्धा—ये तीनों तत्व एक साथ उपस्थित होते हैं और वक्ता में भी करुणा और अनुग्रह का भाव होता है, तब कल्याणकारी स्थिति निर्मित हो सकती है। संतों के प्रति श्रद्धा का एक प्रमुख कारण उनकी तपस्या और साधना होती है। यदि वे त्यागी, वैरागी और ज्ञानी हों, तो उनका संग दुर्लभ और अत्यंत लाभदायक होता है। थोड़े समय की साधु-संगति भी पापों को हर सकती है और जीवन की दिशा-दशा परिवर्तित कर सकती है।
संतों की प्रेरणा से पापी भी पाप त्याग सकता है और पतित से पावन बन सकता है। जिस धरती पर संतों का पदार्पण होता है, वह भूमि भी पवित्र बन जाती है। जब साधु पदयात्रा करते हैं, तो छोटे-छोटे गांवों में भी प्रेरणा का संचार होता है। प्रत्यक्ष संपर्क से धर्म का उपकार और प्रभाव अधिक होता है। पदयात्रा अपने आप में एक तपस्या है। वाहन का परित्याग संयम का प्रतीक है और यह अहिंसा की साधना का भी माध्यम बनता है। पदयात्रा से जनहित का कार्य होता है। त्याग अपने आप में आध्यात्मिकता है। हमें आगे की सोच रखनी चाहिए और धर्म का संचय करना चाहिए। यदि जीवन में अहिंसा, संयम, नैतिकता और नशामुक्ति आ जाए, तो निश्चित ही हमारा कल्याण हो सकता है।
पूज्यवर के स्वागत में महावीर हिरण, चांदनी सिसोदिया, विद्या मंदिर के प्रमुख दशरथ पटेल, प्रिंसिपल राकेशकुमार पटेल ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। स्थानीय महिला मंडल, प्रांतीज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।