
गुरुवाणी/ केन्द्र
उदार, प्रशस्त और यथार्थपरक हो चिंतन : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षव गण के शिरोमणि, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी प्रातः लगभग 9 किमी का विहार कर दलानी मुवाड़ी गांव के गोगा मंदिर धर्मशाला में पधारे। अमृतमय देशना प्रदान करते हुए परम पूज्य ने प्रेरणा दी कि मनुष्य के पास सोचने की क्षमता होती है, बोलने की शक्ति होती है और चलने-फिरने जैसी क्रियाओं की सामर्थ्य भी होती है। यह आवश्यक नहीं कि ये सभी क्षमताएँ सभी में समान रूप से हों; इनमें कुछ अंतर या सीमाएँ हो सकती हैं। हम सोचते हैं और यह सोचने की प्रवृत्ति ऐसी है कि कभी-कभी अनचाहे भी विचार आते रहते हैं। यह मन की चंचलता का परिणाम है कि कई बार अनपेक्षित विचार भी मन में प्रवेश कर जाते हैं। चिन्तन की अधिकता और उसकी मलीनता—ये दो प्रमुख समस्याएँ बन जाती हैं। आवश्यकता है कि हमारा चित्त मलीन न हो, क्योंकि अधिक सोचकर हम कई बार स्वयं को दुःखी बना लेते हैं। कई बार कुछ ऐसे विचार भी आते हैं जो मन को शांति प्रदान करते हैं। मनुष्य के चिन्तन में आक्रोश नहीं, बल्कि सकारात्मकता होनी चाहिए। हमारा चिन्तन उदार, प्रशस्त और यथार्थपरक हो। हमें खालीपन को नहीं, भरे हुए को देखना चाहिए।
यदि चिन्तन के साथ आवेश जुड़ जाए, तो वह अशुभ हो जाता है; वहीं आवेश रहित चिन्तन शुभ और उपयोगी होता है। सोचने की कला का मूल सूत्र है—आवेश में आकर चिन्तन या निर्णय न करें। आवेश में लिए गए निर्णयों पर पश्चाताप करना पड़ सकता है, उन्हें बदलना भी पड़ सकता है। अतः अनावेश और अनाग्रहयुक्त चिन्तन करें। ऐसा चिन्तन करें जिसमें सबके हित की भावना हो। चिन्तन में संकीर्णता न होकर व्यापक दृष्टिकोण हो। जब हम परिवार या समाज को ध्यान में रखकर विचार करते हैं, तो स्वार्थ से परे जाकर परहित की भावना जागृत होती है, जिससे हमारे प्रति भी आदर का भाव उत्पन्न होता है। यदि चिन्तन में उदारता, निस्वार्थता और न्यायप्रियता हो, तो आत्मा निर्मल रह सकती है और व्यवहार भी श्रेष्ठ बन सकता है। संकल्प और विकल्प का अंत वही कर सकता है, जो समता में स्थित होता है। समता में स्थित व्यक्ति की चंचलता नष्ट हो जाती है। हमें भी समता में रहना चाहिए, समता से सोचना चाहिए। समता बहुत ऊँची स्थिति है और यही हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति होनी चाहिए। राग-द्वेष विकृति हैं, जबकि समता प्रकृति है। समता में रहना हमारे लिए हितकारी है। आचार्यश्री के आगमन पर धर्मशाला के करमशीभाई देसाई ने अपनी भावना व्यक्त की।