सहजानन्द की प्राप्ति के लिए आवश्यक है क्रोध, लोभ और भय से मुक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोटा चीलोड़ा। 19 जून, 2025

सहजानन्द की प्राप्ति के लिए आवश्यक है क्रोध, लोभ और भय से मुक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 12 किमी का विहार कर मोटा चीलोड़ा स्थित सहजानंद ऑफ अचीवर में पधारे। अपने अमृतमय पाथेय के माध्यम से पूज्यवर ने प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में शांति की गहन कामना होती है। हर प्राणी सुख और शांति से जीवन व्यतीत करना चाहता है। परंतु सुख की चाह होते हुए भी कई बार वह मार्ग नहीं मिल पाता जिससे परम शांति की प्राप्ति हो सके। सुख की प्राप्ति हेतु व्यक्ति प्रयास करता है। कभी-कभी उसे सुख प्राप्त भी हो जाता है, परंतु वह टिकता नहीं और फिर से दुःख की ओर झुकाव हो जाता है। सुख दो प्रकार के होते हैं—एक सहज सुख और दूसरा कृत्रिम सुख। सहज सुख किसी परिस्थिति पर निर्भर नहीं होता, जबकि कृत्रिम सुख पूरी तरह परिस्थितियों पर आधारित होता है।
सहजानन्द का अर्थ है—वास्तविक और भीतर से उत्पन्न होने वाला आनंद। हम जितने सहज और सरल होंगे, उतने ही सहजानन्द के समीप होंगे। छल, कपट और कृत्रिमता को त्यागकर सरलता से जीना ही सहजानन्द की दिशा है। शांति में सबसे बड़ी बाधा है—गुस्सा। यदि गुस्सा न आए, तो यह एक बहुत उत्तम स्थिति है। सहजानन्द की प्राप्ति के लिए गुस्से को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। यदि कोई बात गलत कही है तो उसका परिष्कार करें, और यदि सत्य कही है तो भी क्रोध करने की आवश्यकता नहीं। आलोचना का उत्तर श्रेष्ठ कर्मों से देना चाहिए। किसी के कहने भर से कोई व्यक्ति गलत नहीं हो जाता। यदि कोई गाली देता है, तो उससे भीतर तक विचलित होने की आवश्यकता नहीं।
अत्यधिक लालसा और इच्छाओं को नहीं पालना चाहिए। संतोषी व्यक्ति ही सदा सुखी रहता है। कार्य को निष्काम भाव से करते रहना चाहिए—नाम और प्रसिद्धि की इच्छा से नहीं। यदि तप करें तो आत्मनिर्जरा के लिए करें, कीर्ति या यश के लिए नहीं। धार्मिक दृष्टिकोण से लोभ का त्याग अनिवार्य बताया गया है। व्यक्ति को निर्भीक बनना चाहिए, क्योंकि भय भी आनंद में बाधक बन सकता है। सहजानन्द की प्राप्ति के लिए गुस्सा, लोभ और भय—इन तीनों से मुक्ति आवश्यक है। यह आनंद आत्मा के भीतर से जागृत होता है।
संत तो त्यागी और वैराग्यशील होते हैं, अतः वे सहज रूप से सहजानन्द को प्राप्त कर सकते हैं। परंतु गृहस्थ भी इस दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। साधना और आत्मिक विकास के माध्यम से सहजानन्द की ओर बढ़ना और उसे उपलब्ध करना संभव है। आचार्यश्री के स्वागत में मंजु लोढ़ा, मुदित लोढ़ा, मंथन जैन, अशोक सुकलेचा, उत्तर गुजरात तेरापंथ समाज के अध्यक्ष गणपतलाल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल व स्कूल की छात्रा सोनल व पूजा ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। सहजानंद स्कूल की हीर जैन ने भिक्षु अष्टकम् को प्रस्तुति दी। विद्यालय की प्रिंसिपल अर्चना उपाध्याय ने अपनी अभिव्यक्ति दी।