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क्रोध पर नियंत्रण के लिए श्वास पर नियंत्रण आवश्यक
मुनि तत्वरुचि ‘तरुण’ ने कहा कि क्रोध जब भी आता है, वह श्वास रूपी घोड़े पर सवार होकर आता है। जिसने श्वास रूपी घोड़े की लगाम थाम ली, उसने क्रोध को अपने वश में कर लिया। अतः क्रोध पर नियंत्रण के लिए श्वास पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। वे न्यू लाइट कॉलोनी स्थित जैन मंदिर में "कैसे करें क्रोध पर नियंत्रण" विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि क्रोध भी एक प्रकार का नशा है। जो व्यक्ति क्रोध करता है, वह बेभान हो जाता है और अपनी शुद्ध बुद्धि खो देता है।
मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि माचिस की तीली की तरह क्रोधी व्यक्ति को भी पहले स्वयं जलना पड़ता है। तूलिका के सिर तो होता है, लेकिन दिमाग नहीं होता — जबकि मनुष्य के पास सिर और दिमाग दोनों होते हैं, फिर भी वह आग की तरह क्यों भभकता है? उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने दिमाग का उपयोग करे और होश न खोए। इस अवसर पर मुनि तत्वरुचि जी ने क्रोध नियंत्रण के कुछ व्यावहारिक उपाय तथा ध्यान के प्रयोग भी करवाए।
प्रवचन के प्रारंभ में संतों द्वारा पार्श्व स्तुति का संगान किया गया। तत्पश्चात मुनि संभवकुमार जी ने गीत के माध्यम से गुस्सा न करने की प्रेरणा दी और बताया कि गुस्सा स्वयं के लिए ही घातक होता है। कार्यक्रम में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक वंदन कर क्षमा याचना की। अंत में नेमीचंद झाड़झुड़ ने समस्त जैन समाज की ओर से मुनि मंडल का आभार प्रकट किया।