
स्वाध्याय
धर्म है उत्कृष्ट मंगल
खणं जाणाहि पंडिए– हे पंडित! तू क्षण को जान।
वयो अच्चेइ जोव्वणं च– अवस्था बीत रही है और यौवन चला जा रहा है।
णो हव्वाए णो पाराए– वे न इस तीर पर आ सकते हैं और न उस पार जा सकते हैं।
सव्वेसिं जीवियं पिय– सब प्राणियों को जीवन प्रिय है।
तीसरे अध्ययन का नाम शीतोष्णीय है। इसके कुछ सूक्त इस प्रकार हैं-
सुत्ता अमुणी सया, मुणिणो सया जागरंति– अज्ञानी सदा सोते हैं, ज्ञानी सदा जागते हैं।
लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं– तुम जानो-इस लोक में अज्ञान अहित के लिए होता है।
जागरवेरोवरए वीरे– जागृत और वैर से उपरत व्यक्ति वीर होता है।
आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा– दुःख हिंसा से उत्पन्न है।
माई पमाई पुणरेइ गब्भं– मायी और प्रमादी मनुष्य बार-बार जन्म लेता है।
आरंभजीवी उ भयाणुपस्सी– आरंभजीवी मनुष्य को भय का दर्शन होता रहता है।
समत्तदंसी ण करेति पावं– समत्वदर्शी पाप नहीं करता।
अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे– हे धीर! तू दुःख के अग्र और मूल का विवेक कर।
सच्चंसि धितिं कुव्वह– सत्य में धृति कर।
अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे– यह पुरुष अनेक चित्त वाला है।
णिव्विंद णंदि अरते पयासु– तू (कामभोग के) आनन्द से उदासीन बन। स्त्रियों में अनुरक्त मत बन।
सीओसिणच्चाई से निग्गंथे– निर्ग्रन्थ सर्दी और गर्मी को सहन करता है।
समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विप्पसायए– समता का आचरण कर अपने आपको प्रसन्न करो।
जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइं– जो एक को जानता है, वह सबको जानता है।
सव्वतो पमत्तस्स भयं– प्रमत्त व्यक्ति को सब ओर से भय होता है।
सड्डी आणाए मेहावी– आज्ञा में श्रद्धा करने वाला मेधावी होता है।
चौथे अध्ययन का नाम सम्यक्त्व है। इसके कुछ सूक्त इस प्रकार हैं—
णो लोगस्सेसणं चेर– वह लोकैषणा न करे।
विगिंच मंससोणियं– मांस और रक्त का विवेक कर।
जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कओ सिया–
जिसका आदि-अन्त नहीं है, उसका मध्य कहां से होगा?
पांचवें अध्ययन का नाम है लोकसार। इसके कुछ सूक्त इस प्रकार हैं-
उट्ठिए णो पमायए– पुरुष उत्थित होकर प्रमाद न करे।
बंध पमोक्खो तुज्झ अज्झत्येव– बन्धन-मोक्ष तुम्हारे अपने ही भीतर है।
वण्णाएसी णारभे कंचणं सव्वलोए– मुनि यश का इच्छुक होकर किसी भी क्षेत्र में कुछ भी न करे।
इस अध्ययन में वासना पीड़ित मनुष्य का अच्छा मार्गदर्शन किया गया है। उसे निर्बल आहार करना चाहिए, ऊनोदरी करनी चाहिए, ऊर्ध्वस्थान (कायोत्सर्ग) करना चाहिए आदि।
प्रस्तुत अध्ययन के अन्तिम अठारह सूत्रों में परमात्मा के स्वरूप का बहुत सुन्दर और संक्षिप्त चित्रण किया गया है।