विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ हो विनयभाव का विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ हो विनयभाव का विकास : आचार्यश्री महाश्रमण

कोटून्दा, 24 नवंबर, 2021
भीलवाड़ा जिले में 5 दिन के विहार के साथ पूज्यप्रवर 18 किलोमीटर विहार कर चित्तौड़गढ़ जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोटून्दा पधारे। भारतीय ॠषि परंपरा के महान संत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक आदमी विनीत होता है, एक अविनीत भी हो सकता है। शास्त्रकार ने मानो चेतावनी सी दी है कि जो अविनीत होता है, उसे विपत्ति मिलती है। जो विनीत होता है, उसे संपत्ति मिलती है। आदमी विपत्ति से परहेज करना चाहता है। चाह होना एक बात है पर राह कौन सी ली है। यह एक महत्त्वपूर्ण बात है। चाह क्या है, और राह क्या है? चाह और राह में सामंजस्य होता है, तब तो चाह की उपलब्धि हो सकती है। चाह के साथ राह भी है, पर राह पर चलने का उत्साह भी होना चाहिए। तो लाभ हो सकता है। विनीत वह है जिसमें घमंड का भाव न हो। अविनीत तो अनुशासन हीन होता है। विनय से ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जो अभिवादनशील है, वृद्धों की सेवा करने वाला है, उसको चार चीजों का विकास होता है, उसका आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है। विनीत का विकास कई संदर्भों में हो सकता है। मुनि खेतसी जी स्वामी के विनय भाव का प्रकरण समझाया। वे विनय से आचार्य तुल्य हो गए थे। नम्रता है, तो ऐसी संपत्ति मिल सकती है, जो पद से भी बड़ी हो सकती है। विद्यार्थी में विद्या का विकास होना अच्छा है, पर विद्या के साथ उनके आचरणों में भी उन्‍नति की स्थिति आए, यह अपेक्षित है। ज्ञान के साथ आचार बढ़िया हो। कोश ज्ञान अधूरा है। यह एक प्रसंग से समझाया कि अकिंचन साधु के लिए तो खोट (बुरी आदत) बढ़िया गिफ्ट है। विद्या का घमंड एक खोट है। आदमी को किसी पदार्थ का घमंड नहीं करना चाहिए। राजनीति में पद भी सेवा का साधन है। सेवा तो पद का उपहार है। अर्थ या ताकत या बाहुबल का भी घमंड नहीं करना चाहिए। क्या पता कब क्या हो जाए। सौंदर्य रूप का बढ़िया होना बड़ी बात नहीं है। गुणवत्ता ज्ञान का महत्त्व है। हम घमंड में न जाएँ, निरहंकारता में रहने का प्रयास करें। अहिंसा यात्रा के तीन संकल्पों को समझाकर विद्यार्थियों एवं स्थानीय लोगों को स्वीकार करवाए। मुनि दर्शनकुमारजी एवं साध्वी चंद्रिकाश्री जी की स्मृति सभा पूज्यप्रवर ने प्रवचन में भीलवाड़ा में प्रवासित मुनि दर्शनकुमार जी एवं जयपुर में प्रवासित साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रयाण होने पर स्मृति सभा आयोजित की गई। आचार्यप्रवर ने दोनों चारित्रात्माओं का परिचय देते हुए उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भावों के साथ आगे की गति की मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स का ध्यान करवाया। मुख्य मुनि महावीरकुमार जी, मुख्य नियोजिका विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी, साध्वी मुदितयशा जी, साध्वी ॠद्धिप्रभा जी, मुनि योगेश कुमार जी, मुनि कीर्तिकुमार जी, मुनि ॠषभ कुमार जी, मुनि कोमल कुमार जी ने भी अपनी भावांजलि अर्पित की। स्कूल के प्राध्यापक राजेश कुमार जी जोगिड़ ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।