
विनय और विवेक से विद्या शोभित होती है : आचार्यश्री महाश्रमण
बरूंदनी, 23 नवंबर, 2021
अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: लगभग 10 किमी का विहार कर श्रीमुनि कुल ब्रह्मचर्याश्रम वेद संस्थानम् पधारे। प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी सुखी जीवन जीना चाहता है। जैन आगम में कहा गया है कि इस प्रकार तुम सुखी बन सकते हो। पहली बात हैसुकुमारता को छोड़ो, अपने आपको तपाओ, कठोर जीवन जीने का भी अभ्यास रखो। सुविधा को भोगना एक बात है, भीतर से सुखी होना एक बात है। भौतिक साधनों का भी आवश्यकतानुसार उपयोग करना पड़ सकता है, पर आदमी का रूझान संयम की चेतना में रहे। संत का जीवन तो त्यागमय होता है। जैन संतों के पाँच महाव्रत होते हैं। रात्रि भोजन भी नहीं करते हैं। संयम के साथ तप हो सकता है। साधु भिक्षा से भोजन ग्रहण करता है। थोड़ा-थोड़ा कई घरों से भोजन ग्रहण करता है। भोजन शाकाहार हो और साधु के लिए न बना हो। उचित पदार्थ भी न हो। ये सब अहिंसा का पालन है। साधु देख-देखकर पैदल चले। साधु के पास परिग्रह भी नहीं। जीवन में जितना त्याग-संयम हो, रखें। सादगी रखें। विद्यार्थी में भी संयम हो तभी ज्ञान प्राप्त हो सकता है। व्याकरण तो अलूणी शिला है। उसमें स्वाद नहीं होता है। साहित्य में तो स्वाद आ सकता है। व्याकरण सिखना है, तो रटो, चितारो पुनरावर्तन करो, जिज्ञासा करो और लिखो। याद करने के लिए परिश्रम करना होता है। तभी विद्या का विकास हो सकता है। सुखार्थी है तो विद्या कितनी-क्या मिलेगी। कठोरता का अभ्यास हो तो, जीवन में विकास हो सकता है। विद्या के साथ घमंड नहीं आना चाहिए। ज्ञान तो अहंकार को हरने वाला हो। विद्या विनय से शोभित होती है। साथ में विवेक भी हो। विद्या, विनय और विवेक की त्रिवेणी है, उसमें स्नान करें। उसमें स्नान करने से जीवन अच्छा बन सकता है। आदमी भौतिकता में आसक्त न बने। परिश्रम है, तो जीवन में कुछ मिल सकता है। आदमी पुरुषार्थ करे। भाग्य भरोसे न बैठे। जो पुरुषाथी्र है, लक्ष्मी उसका वरण करती है। प्रयत्न करने पर भी सिद्धि न मिले तो उसमें हमारा दोष नहीं। जीवन में सत्-पुरुषार्थ करना चाहिए। विद्यार्थी अच्छा पुरुषार्थ करे, यह एक प्रसंग से मसझाया कि पुरुषार्थ को नहीं छोड़ना चाहिए। दीया जलता रहे, मैं पढ़ता रहूँ। विद्यार्थियों के जीवन में ज्ञान और आचरण अच्छे हों तो जीवन महान बन सकता है। आज यहाँ आएँ हैं। अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को संस्कृत भाषा में समझाया व विद्यार्थियों एवं ग्रामवासियों को स्वीकार करवाए। विद्यार्थियों का अच्छा विकास होता रहे, अच्छे संस्कार मिलते रहें। पूज्यप्रवर के स्वागत में पूर्व विधायक विवेक धाकड़, वेद विद्यालय की ओर से डॉ0 बद्रीनारायण पंचौली, डॉ0 बृजमोहन शर्मा, प्रभुलाल सोयानी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।