कर्मवाद को समझकर बुरे कर्मों से बचने का  प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कर्मवाद को समझकर बुरे कर्मों से बचने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

अरोली (रसदपुरा), 27 नवंबर, 2021
तीर्थंकर तुल्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी अरोली पदार्पण पर रसदपुरा ग्राम के निकट माण्डालगढ़ के विधायक गोपाल खंडेलवाल, पूर्व विधायक विवेक धाकड़, सरपंच ज्योति जैन, पूर्व प्रधान गोपाल मालवीय ने पूज्यप्रवर की अगवानी की। ढोल-नगाड़ों और जुलूस के साथ आचार्यश्री रसदपुरा (आरोली) गाँव स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि एक दर्शन का सिद्धांत है कि आत्मा का पुनर्जन्म होता हैं पुनर्जन्म का सिद्धांत आस्तिक विचारधारा का सिद्धांत है। जहाँ आत्मा का स्थायी अस्तित्व माना गया है, वहाँ पुनर्जन्म की बात बैठ सकती हैं जहाँ आत्मा नाम का तत्त्व है ही नहीं, या आत्मा शरीर एक ही है, वहाँ पुनर्जन्म की बात संभवत: हो नहीं सकती। जैसे आदमी पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्रों को धारण कर लेता है, इसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। आज तक हमारी आत्मा ने अनंत जन्म ले लिए हैं। मृत्यु के साथ जन्म जुड़ा है। जन्म है, तो मृत्यु भी अवश्यंभावी है। इस जन्म-मृत्यु का कारण क्या है? शास्त्र में बताया गया है कि हमारे भीतर कषाय रूपी विकार है, इन विकारों के कारण से आत्मा पुनर्जन्म ग्रहण करती है।
जैसे कर्म होते हैं, आदमी अच्छे कर्म करता है, तो अच्छी गति हो सकती है। पाप कर्म ज्यादा करता है, तो खराब गति भी हो सकती है। यह आत्मवाद और कर्मवाद के सिद्धांत हैं। मनुष्य को यह चिंतन करना चाहिए कि मैं कोई असद् कर्म न करूँ, जिसके कारण से मुझे अधोगति में जाना पड़े। अलग-अलग गति में जाने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। कर्म के अनुसार उसका फल भी मिलता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि अच्छे कर्म करने वाला शांति का जीवन जीता है। परलोक के विषय में संदेह है कि क्या पता है या नहीं तो भी बुरे काम मत करो, अच्छे काम करो। जीवन अच्छा जीयो, पापों से बचने का प्रयास करो। गालियाँ देना या गुस्सा करना बड़ी बात नहीं। हमेशा प्रसन्‍न रहें, शांति में आनंद है। घास-फूस में अग्नि डालो तो आग लग सकती है। जहाँ गीला है, मिट्टी है, वहाँ अग्नि नहीं लग सकती। आदमी सूखा मैदान बनकर रहे। व्यवहार हमारा सद्भावनापूर्ण रहे। दुर्भावना किसी के साथ न रखें। सबसे बड़ा विश्‍वास अपनी आत्मा-परमात्मा व धर्म का करें। जैसी करनी वैसी भरणी, सुख-दु:ख स्वयं मिलेगा। सुख-शांति पाना तो चाहते हो, पर दूसरों को सुख-शांति देते भी हो क्या? दूसरों को आध्यात्मिक चित्त समाधि दें। पिछले जन्म के पापों का फल भी भोगना पड़ सकता है। कर्म किसी को नहीं छोड़ता। राजा हो या रंक। हमें मानव जीवन प्राप्त है, इसका हम सद्-उपयोग करें। अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को समझाकर स्वीकार करवाए। हम कर्मवाद को समझकर बुरे कर्म करने से बचने का प्रयास करें। सुमति गोठी को संबल-आशीर्वाद प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर के स्वागत में नंदिनी जैन, दीपक त्यागी, ज्योति जैन, राजेश जैन, पूर्व प्रधान गोपाल मालवीय, विवेक धाकड़ (पूर्व विधायक), गोपाल खंडेलवाल (विधायक), संजय बरड़िया, सुमति गोठी, बिजोलिया ठिकाने के सौभाग्य सिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।