राग और द्वेष होते हैं पाप कर्म के मूल कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राग और द्वेष होते हैं पाप कर्म के मूल कारण : आचार्यश्री महाश्रमण

कापरेन, 6 दिसंबर, 2021
जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ अनरेठा से 15 किमी का प्रलंब विहार कर कापरेन स्टेशन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी जो जितने भी पाप करता है, उसकी नींव-पृष्ठभूमि में राग-द्वेष के भाव होते हैं। सारे पापों का मूल राग-द्वेष है। शास्त्र में कहा गया है कि कर्म के बीज राग और द्वेष हैं। ये दो न हों तो आदमी कोई भी पाप नहीं कर सकता। झूठ, चोरी, हिंसा की पृष्ठभूमि में भी राग-द्वेष के ही भाव होते हैं।
कहीं द्वेष की प्रधानता हो सकती है, कहीं राग की प्रधानता हो सकती है। राग-द्वेष की न्यूनता आने पर आदमी धर्माचरण कर सकता है। आदमी न चाहते हुए भी कई बार अपराध में चला जाता है। पाप से बचने के लिए हमें यह करना चाहिए कि मेरे राग-द्वेष के भाव पतले पड़ें। अनुप्रेक्षा-जप से राग-द्वेष के भाव पतले किए जा सकते हैं। माला फेरने के पीछे भी एक दर्शन है। धर्म के जितने अनुष्ठान हैं, इनसे राग-द्वेष कमजोर पड़ता है। मूल नहीं है तो पुष्प-फल नहीं लगेंगे। समरांगण में युद्ध शुरू होने से पहले आदमी के दिमाग में युद्ध शुरू हो जाता है। भाव जगत मूल है। कार्मण शरीर भी मूल है। कर्म शरीर तो हर संसारी जीव के होता है। इसके कारण ही तेजस और औदारिक शरीर होता है। कभी-कभी सही आदमी भी गलत आरोपों में फँसा दिया जाता है, मिथ्या आरोप दंड लगा दिया जाता है। आदमी झूठा आरोप जिंदगी में किसी पर न लगाए। इससे हमारी चेतना निर्मल रहती है। झूठा आरोप भी एक पाप है। हँस-हँस के किए हुए पाप हैं, वो रोने पर नहीं छूटते हैं, इसलिए पाप करने से बचें। किसी को दु:खी देखकर खुशी मत मनाओ और दूसरों को सुखी देखकर हमें दु:खी नहीं होना चाहिए।
यह मानव जीवन है, इसको अच्छी तरह से जीएँ। वर्तमान में तो मानव जीवन मिला हुआ है, पर लंबा काल नहीं है। अपने कल्याण के बारे में सोचें और पापों से बचने का प्रयास करें, ताकि आत्मा अच्छी बन सके।
पूज्यप्रवर ने स्थानीय गाँव के लोगों को अहिंसा यात्रा के तीन संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने करते हुए बताया कि हमें क्रोध से बचना चाहिए। क्रोध-अहंकार हमारे शत्रु हैं। हम प्रमाद से दूर रहें।