महापुरुषों की कल्याणी वाणी से पथ प्रशस्त हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

महापुरुषों की कल्याणी वाणी से पथ प्रशस्त हो सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

करोंदी, 30 नवंबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी डाबी से 16 किलोमीटर विहार करते हुए करोंदी गाँव में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय पधारे। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी सुनकर कल्याण और पाप को जानता है। कल्याण और पाप को जानने के बाद जो श्रेयस्कर हो, उसका आचरण करना चाहिए। सुनना एक ज्ञान का माध्यम है। पढ़ने, सुनने और इंद्रियों के द्वारा भी ज्ञान होता है। परंतु सुनना, पढ़ना या देखना यानी श्रोतेंद्रिय और चक्षुरिंद्रिय ज्ञान का सशक्‍त माध्यम होता है। साधु का जीवन तो धर्म के लिए समर्पित रहना ही चाहिए। गृहस्थ है, वे भी सुनकर के धर्म के आचरण को स्वीकार कर सकते हैं। मोक्ष प्राप्ति का एक सोपान हैसुनना। सुनने से ज्ञान, ज्ञान से विज्ञान, फिर आगे प्रत्याख्यान आदि का क्रम चलता है। महापुरुषों की कल्याणी वाणी कानों में पड़ने से पथ प्रशस्त कर सकती है। यह रोहणिय चोर के प्रसंग से समझाया। संतों की संगति से पापात्माएँ अच्छे मार्ग पर चल सकती है, जीवन में अच्छा परिवर्तन हो सकता है।
गृहस्थ जीवन में सदाचार आए। आदमी हिंसा-चोरी, झूठ से बचने का उपरत रहने का प्रयास करे। व्यसनों की आदतों से बचने का प्रयास करें। दुनिया में जो अच्छे संत-ज्ञानी लोग हैं, वे जो रास्ता बताते हैं, उस कारण से धर्म का प्रभाव बढ़ सकता है। संत पुरुष स्वयं साधना करने वाले और दूसरों को सन्मार्ग बताने का प्रयास करते हैं। संत जो बात बताते हैं, उस पर जनता अधिक ध्यान देती है। गृहस्थ सोचे कि मेरा हिंसा और परिग्रह कैसे कम हो। परिग्रह के लिए आदमी हिंसा करता है। गरीबी हिंसा का कारण बन सकती है। दूसरों को तकलीफ हो ऐसा कारण न बने। निमित्त और उपादान कारण से हिंसा हो सकती है। निमित्त उपादान पोषण देने वाला बन सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया। गृहस्थ जीवन में भी धर्म की साधना एक सीमा तक हो सकती है। गृहस्थ वेश में भी वीतरागता आ सकती है, केवल्य भी प्राप्त हो सकता है। आदमी गार्हस्थ्य में त्याग-प्रत्याख्यान का प्रयास जितना हो सके करे। गृहस्थ जीवन में कलह को मौका न मिले। घर-घर में स्वर्ग बन सकता है। घर नरक का स्थान न बने। यह एक प्रसंग से समझाया कि साधु जो संयम में रहा हुआ है, वो स्वर्ग से भी उच्च है। गुस्सा नरक का एक कारण बन सकता है। शांति स्वर्ग के समान है। संस्कृत श्‍लोक में कहा गया है कि मोक्ष यही है। जो विकारों-अहंकार से मुक्‍त है। उसके इसी जीवन में मोक्ष है। कषायमुक्‍ति अपने आप में एक मुक्‍ति है। हम जीवन में धर्म के मार्ग में चले तो व्यावहारिक रूप में स्वर्ग भी जीवन में और धर्म का आचरण न करे तो नरक भी जीवन में हो सकता है। हम सदाचार-सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करें, यह काम्य है। प्रवचन के पश्‍चात इंदौर से विहार कर तपोमुनि कमल कुमार जी ने अपने सहवर्ती संतों के साथ आचार्यप्रवर के दर्शन किए।