धर्म साधना से संसार समुद्र तरने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
अरनेठा, 5 दिसंबर, 2021
जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: लगभग 15 किमी का विहार कर राजकीय उच्च महाविद्यालय अरनेठा में पधारे। मार्ग में कई लोगों ने पूज्यप्रवर के दर्शन का लाभ लिया। मंगल देशना प्रदान करते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि हमारा यह शरीर एक प्रकार की नौका बन सकता है। शरीर नौका है और जीव नाविक है। यह संसार जन्म-मरण का एक अरामय-सागर है। इस संसाररूपी सागर को महर्षि लोग, मोक्ष के इच्छुक साधना करने वाले व्यक्ति तर जाते हैं। मानव जीवन में जो धर्म की साधना हो सकती है, वह अन्य योनियों में होना मुश्किल लगता है। इस शरीर को हम नौका के रूप में काम लें। इस शरीर से साधना करके संसार समुद्र को तरने का प्रयास करना चाहिए। नौका सछिद्र है, यानी छिद्र है, यह भी ध्यान दें। सछिद्र नौका डूबने वाली हो सकती है। सछिद्र नौका में आश्रव-पाप रूपी पानी आने से ये मनुष्य जन्म डूब सकता है।
गाँव में संतों का आना अच्छी बात है। संतों की संगत से कोई कल्याण की ऐसी बात दिमाग में बैठ जाए, तो आदमी का जीवन तो क्या, वो भवसागर को तरने की बात भी बन सकती है। आदमी पापों को, बुराईयों को छोड़ने का प्रयास करे। संत तो भेंट रूप में आदमी की खोट-बुराई लेते हैं। एक प्रसंग से समझाया कि संतों से लिया गया व्रत-नियम ग्रहण कर, पालने से आदमी का कल्याण हो सकता है। आत्मा का उद्धार हो सकता है। संत लोग शिक्षाएँ देते हैं, अच्छी बातें जीवन में आ जाती हैं, तो आदमी इस जीवन में भी सुखी बन सकता है और आगे भवसागर तरने की दिशा में भी आगे बढ़ सकता है। जैन धर्म में 18 पाप बताए गए हैं। इन अठारह पापों से आदमी जितना बच सके बचने का प्रयास करे। हम बुराई को जीवन में छोड़ें और गुणों को स्वीकार करने का प्रयास करें। 1-1 बुराई छोड़ना शुरू करेंगे तो सारी बुराईयाँ दूर हो सकती हैं। जीवन में पवित्रता आ सकती है। हम जीवन में भवसागर तरने का प्रयास करें, कल्याण पथगामी यात्री बनने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को समझाकर तीनों प्रतिज्ञाएँ स्थानीय लोगों को स्वीकार करवाईं।