शक्‍ति का उपयोग स्व-पर कल्याण एवं परोपकार में करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शक्‍ति का उपयोग स्व-पर कल्याण एवं परोपकार में करें : आचार्यश्री महाश्रमण

चाकसू, 22 दिसंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ 13 किलोमीटर का विहार कर चाकसू के मानव पब्लिक स्कूल में पधारे। चाकसू पदार्पण पर ग्रामवासियों की तरफ से भव्य स्वागत किया गया। मानव के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शक्‍ति का बहुत महत्त्व है। कर्मवाद के अनुसार शक्‍ति का संबंध अंतराय कर्म से होता है। अंतराय कर्म हल्का होने से वीर्य का विकास हो सकता है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शक्‍ति का दुरुपयोग नहीं करना, सदुपयोग करना। शक्‍ति होना, अपने आपमें उपलब्धि है। अच्छी बात भी है। मेरी शक्‍ति दूसरों को दु:ख देने में न लगे। मेरी शक्‍ति स्व-कल्याण और पर-कल्याण में लगे। सज्जन लोग होते हैं, वो परोपकार के लिए होते हैं। मेरी शक्‍ति उत्थान के लिए है, मैं उसे आध्यात्मिक, धार्मिक विकास में लगाऊँ। परोपकार से पुण्य का बंध होता है, दूसरों को पीड़ा पहुँचाना पाप का बंध कराने वाला तत्त्व होता है। हाथी कितना स्थूलकाय होता है, पर एक छोटा सा अंकुश हाथी को कंट्रोल में रख लेता है। अंधकार को छोटा सा दीया दूर कर सकता है, पहाड़ को वज्र चूर-चूर कर सकता है। जिसमें तेज है, वो बलवान है। गुणों से आदमी साधु बनता है। रूप का मूल्य नहीं, योग्यता का महत्त्व है। साधना में ज्ञान का महत्त्व है। सुंदरता से गुणवत्ता का अधिक महत्त्व है। यह एक प्रसंग से समझाया। कपड़ों से ज्यादा ज्ञान का महत्त्व है। एक प्रसंग से यह समझाया। शरीर में सहजता हो, शक्‍ति हो व स्वास्थ्य ठीक रहता है। चेहरे से ज्यादा महत्त्व शक्‍ति और आचरणों का है। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि देख तुम्हारा चेहरा सुंदर नहीं है, पर चारित्र और ज्ञान सुंदर रहना चाहिए। दुर्जन आदमी के पास अगर शक्‍ति है, तो वो दूसरों को कष्ट पहुँचाने में शक्‍ति का उपयोग करेगा। सज्जन के पास शक्‍ति है, तो वह दूसरों की सेवा-रक्षा करता है। हमारे मन में ये बात रहे कि मेरे पास जितनी भी शक्‍ति है, मैं उसका दुरुपयोग करने से बचूँ और आध्यात्मिक सदुपयोग करने का प्रयास करूँ। शक्‍तियाँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं। तन की शक्‍ति, वचन की शक्‍ति, जनबल की शक्‍ति हो सकती है। गृहस्थ के पास धन बल की शक्‍ति हो सकती है। शक्‍तियों का दुरुपयोग न हो, यह भावना मन में रहे, तो आदमी का जीवन और उसकी आत्मा अच्छी रह सकती है। यह जीवन तो क्या, आगे का जीवन भी अच्छा बनने की संभावना रह सकती है। शक्‍ति का महत्त्व है। शक्‍ति का सदुपयोग हो, दुरुपयोग न हो, यह आदमी का मनोभाव रहना चाहिए। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि मानव विद्या संस्थान में आए हैं, यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाएँ ताकि वे अच्छे मानव बन सकें। चाकसू में जैन संप्रदाय में खूब आध्यात्मिक-धार्मिक भावना रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में जैन समाज की ओर से चौथमल जैन, विनोद कुमार जैन, मानव पी0जी0 कॉलेज के डायरेक्टर खोलिया ने अपनी भावना व्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।