चेतना के द्वारा चेतना को जीतने की साधना विजय पाने की साधना है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चेतना के द्वारा चेतना को जीतने की साधना विजय पाने की साधना है : आचार्यश्री महाश्रमण

अणुविभा, जयपुर, 25 दिसंबर, 2021
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी अहिंसा यात्रा व धवल सेना के साथ प्रात: विशाल जनमेदिनी के साथ जयपुर नगर स्थित अणुव्रत विश्‍व भारती परिसर में पधारे। जैन-अजैन सभी लोग पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदन में पलक-पावड़े बिछाए खड़े थे। आचार्य तुलसी द्वारा निर्मित, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के पट्टधर ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में जय और पराजय के प्रसंग आते हैं। युद्ध में भी कोई विजय-जय को प्राप्त करता है, तो कोई पराजय का भागीदार भी बन जाता है। चुनाव में भी कोई जीत जाता है, कोई पराजित हो जाता है। कोई कार्य आदमी करता है, उसमें सफलता मिल गई तो मानो विजय मिल गई। असफलता आ जाए तो समझो पराजय हो गई। जय-पराजय के अनेक प्रसंग हो सकते हैं। शास्त्रकार ने एक विशेष बात बताई है, एक तो होती है, जय, एक होती हैपराजय। परम जय किसे प्राप्त होती है? सूत्रकार ने कहा है, एक आदमी समरांगण में दस लाख योद्धाओं को भी जीत लेता है, फिर भी वह परमजयी नहीं होता है। वह जय हो सकती है। परम विजय के लिए दस लाख को जीतने की जरूरत नहीं है। लाख, हजार, सौ या दस को जीतने की जरूरत नहीं है, केवल एक को जीत लो तो परमजय हो जाए। वो एक कौन है? एक आत्मा को जो जीत लेता है, अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह आदमी परम विजेता बन जाता है। इसे आत्म-युद्ध, धर्मयुद्ध कहा जा सकता है। आत्मा को जीतना मुश्किल है। जीतना है, तो जीतने का तरीका भी आना चाहिए। उसके लिए साधन-सामग्री के रूप में भीतर का बल-सत्त्व होना चाहिए। आदमी का सत्त्व, प्राणवत्ता, बल, मनोबल, आत्मबल होता है, उससे सफलता मिलती है। अपनी चेतना के द्वारा अपनी चेतना को जीतने की साधना पर विजय पाने की साधना है। साधु एक प्रकार से आत्म-योद्धा होते हैं। आज हम लोग जयपुर के इस अणुविभा के प्रांगण में आए हैं। परिचित स्थान है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का जयपुर पधारना आकस्मिक निर्णय के रूप में हुआ था। अतीत की स्मृतियाँ करवाईं। प्रज्ञा पुरुष जयाचार्य से जुड़ा यह जयपुर क्षेत्र है। पूज्य माणकगणी से भी जुड़ा क्षेत्र है। आचार्यों से जुड़ा क्षेत्र है। मुनि पुनमचंद जी की लंबे काल तक की तपोभूमि एवं श्रद्धेय मंत्री मुनि सुमेरमल जी का प्रवास स्थल भी जयपुर रहा है। साध्वी धनश्री जी से आठ चतुर्मास बाद मिलना रहा है। प्रेरणा प्रदान करवाई। जयपुर में खूब धार्मिक चेतना भी बनी रहे। साध्वीप्रमुखाश्री जी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा हॉस्पीटल में मिलने आए थे। ये विशेष बात है। राजनीति के लोग मौके-मौके पर अच्छा दायित्व निभाते हैं। अच्छी बात है। जयपुर आना हो गया, ये भी अच्छी बात है।
प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री जी की सेवा में लगी साध्वियों ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत का संगान किया। मुनि उदित कुमार जी, मुनि अनंत कुमार जी व मुनि पुलकित कुमार जी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्‍त किए। साध्वी धनश्री जी आदि साध्वियों ने गीत के माध्यम से पूज्य चरणों में अपनी प्रणति अर्पित की। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष नरेश नाहटा, तेयुप के मंत्री सुरेंद्र नाहटा, टीपीएफ के संदीप जैन आदि ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्‍ति दी। तेममं, शहर और तेरापंथ महिला मंडल सी-स्कीम ने अपने-अपने गीतों का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित पूर्व डीजी राजीव दासौत ने कहा कि आज बड़े सौभाग्य की बात है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमण जी जैसे महान संत के दर्शन करने और प्रवचन सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। जब भाग्य प्रबल होते हैं तो ऐसे महान संतों के चरणरज पड़ते हैं। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।