आत्मा के आसपास
ु आचार्य तुलसी ु
प्रेक्षा : अनुप्रेक्षा
दीर्घश्वास की साधना
प्रश्न : श्वास-प्रेक्षा का स्वरूप क्या है और उससे क्या परिणाम आ सकता है?
उत्तर : हमारे अंतर्भावों को नापने में श्वास की संख्या मानदंड बनती है। मुख्यत: श्वास की तीन अवस्थाएँ हैंसहज श्वास, मंद श्वास और छोटा श्वास। सहज श्वास सब लोग लेते हैं। मैं श्वास ले रहा हूँ, यह बोध किसी को हो या नहीं, श्वास सबको लेना पड़ता है। श्वास प्राणी का जीवन है। थोड़ी देर के लिए भी श्वास लेना बंद कर दिया जाए तो घुटन हो जाती है। जीने के लिए रोटी और पानी जितने आवश्यक नहीं हैं, उतना आवश्यक हैश्वास। सामान्यत: एक मिनट में सोलह या सतरह श्वास आते हैं। श्वास को देखना शुरू कर दिया जाए तो उसकी गति अपने आप मंद होने लगती है। एक मिनट में सतरह श्वास की संख्या घटकर बारह-तेरह श्वास तक पहुँच जाती है। श्वास के साथ चित्त का योग होने पर संख्या और घटती है और वह दस तक पहुँच जाती है। थोड़ी और गहराई में प्रवेश करने पर एक मिनट में पाँच-छह श्वास आते हैं। चित्त की एकाग्रता बढ़ने के साथ-साथ संख्या कम होती रहेगी और वह एक श्वास तक भी पहुँच सकती है। एक मिनट में एक श्वास की स्थिति सफलता की सूचना है। इस स्थिति में साधक अपने समग्र अस्तित्व को श्वास के साथ अनुभव करता है। उस समय वह स्वयं श्वासमय बन जाता है। श्वास के आगमन और निर्गमन का एक भी क्रम बोध-शून्यता की स्थिति में नहीं होता। जागरूकता के साथ श्वास लेना और उतनी ही जागरूकता के साथ छोड़ना अर्थात् चित्त को श्वास और श्वसन-केंद्र में स्थापित कर एकाग्र बन जाना और श्वास को सहज भाव से दीर्घ करते रहना, प्राथमिक रूप से यह श्वास-प्रेक्षा है। श्वास-प्रेक्षा का पहला परिणाम हैमानसिक एकाग्रता। इसका दूसरा लाभ हैमनस्तोष। प्राण शक्ति की प्रबलता और सक्रियता भी इससे होती है। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात है आत्मविश्वास का जागरण। आत्मविश्वास के लिए प्राण-शक्ति की प्रचुरता और सक्रियता अपेक्षित है, जो श्वास की मंदता पर निर्भर है। श्वास जैसे-जैसे मंद होता है, वैसे-वैसे गहरा होता जाता है। गहरे श्वास से एक वलय बनता है, जो ध्यान के क्षेत्र में आगे बढ़ने वालों के लिए बहुत आवश्यक है। छोटा श्वास शारीरिक और मानसिक अस्थिरता का सूचक है। श्वास जितना छोटा होगा, गति उतनी ही तेज होगी। ऐसे श्वास एक मिनट में पचास-साठ तक आ जाते हैं। बीमारी, चढ़ाई और विशेष आवेगों की स्थिति में ऐसा ही होता है। उत्तेजना के समय एक मिनट में लगभग चालीस श्वास आने लगते हैं। वासना के आवेग में यह संख्या साठ-सत्तर तक पहुँच जाती है।
प्रश्न : श्वास के साथ आयुष्य का भी कोई संबंध है क्या?
उत्तर : प्रत्यक्ष रूप से श्वास के साथ आयुष्य का कोई संबंध नहीं है पर आयुष्य के पुद्गलों को भोगने में श्वास निमित्त बनता है। इस दृष्टि से परोक्षत: श्वास के साथ उसका संबंध माना जा सकता है। श्वास छोटे होंगे तो आयुष्य के पुद्गलों की अधिक अपेक्षा रहेगी। श्वास मंद होंगे तो पुद्गलों की खपत कम होगी। हर प्राणी को आयुष्य के पुद्गल तो उतने ही भोगने पड़ते हैं, जितने पुद्गलों का उसने बंधन किया है। खपत की कमी और अधिकता के आधार पर काल कम और अधिक हो जाता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति एक महीने की भोजन सामग्री संगृहीत करता है। भोजन का अनुपात बराबर रहता है तो वह सामग्री एक मास तक काम में आ जाती है। किंतु बीच में ही मेहमान आ जाएँ और अतिरिक्त भोजन तैयार करना पड़े तो वह सामग्री एक महीने से कम समय में पूरी हो जाती है। ठीक यही स्थिति आयुष्य के पुद्गलों की है। खपत बढ़ने से कम समय में आयुष्य के अधिक पुद्गलों का भोग हो सकता है।
प्रश्न : योग के आचार्यों ने प्राणायाम को भी उतना ही मूल्य दिया है, जितना ध्यान को। प्रेक्षाध्यान साधना में प्राणायाम का कोई स्थान है या नहीं?
उत्तर : श्वास-प्रेक्षा का एक चरण श्वास-संयम भी है। श्वास-संयम एक प्रकार का प्राणायाम ही है। प्राणायाम के तीन अंग हैंपूरक, रेचक और कुंभक। कुंभक में श्वास को रोका जाता है और श्वास-संयम में उसे मंद करते-करते निरोध की स्थिति तक पहुँचा जाता है। मानसिक शांति के लिए तथा विचारों के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। किंतु यह जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही खतरनाक भी है। इसलिए प्रारंभिक अभ्यास में पाँच-सात सेकंड से अधिक श्वास संयम नहीं करना चाहिए। जिस साधक को इतनी भी सुविधा न हो, वह इस क्रम को छोड़ भी दे। हठपूर्वक श्वास-संयम का प्रयोग कभी नहीं होना चाहिए। ऐसा प्रयोग कोई करना चाहे तो उसके लिए विशेषज्ञ का निर्देशन बहुत आवश्यक है। श्वास एक छोटा-सा उपाय है, किंतु है इतना महत्त्वपूर्ण कि इसको जाने बिना प्रेक्षाध्यान का अभ्यास नहीं हो सकता और इसके प्रयोग के बिना एकाग्रता या निर्विकल्पता की स्थिति उपलब्ध नहीं हो सकती। अंतश्चेतना के संस्पर्श के लिए, एकाग्रता तथा मानसिक शांति को विकसित करने के लिए एक रहस्य और ज्ञातव्य है, वह है लयबद्ध श्वास।
प्रश्न : लयबद्ध श्वास क्या होता है?
उत्तर : जैसे संगीत में लयबद्धता होती है, वैसे श्वास में भी लयबद्धता रहती है। जिस श्वास को लेते समय चार मात्रा जितना समय लगता है, रोककर रखने में चार मात्रा जितना समय लगता है और छोड़ने में भी चार मात्रा जितना समय लगता है, वह श्वास लयबद्ध या संगीतात्मक श्वास कहलाता है। कोई व्यक्ति बीस मिनट तक प्रति मिनट इसका प्रयोग करे तो ध्यान की सहज स्थिति निर्मित हो जाती है। इसके बाद ध्यान के लिए बहुत बड़ी साधना करने की अपेक्षा नहीं रहती है। यह एक छोटा-सा उपक्रम है किंतु ध्यान का विकास करने के लिए अमोघ उपक्रम है, इस बात को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
(क्रमश:)