साध्वी करुणाश्री जी के प्रति भावांजलियाँ
शासनश्री साध्वी करुणाश्री जी के प्रति सहवर्ती साध्वियों (रत्नाधिक) के उद्गार
शासनश्री साध्वी कानकुमारी जी और साध्वी मानकुमारी जी के प्रति जितना आदर और सम्मान का भाव उनके मन में पहले दिन था उतना ही अंतिम दिन तक बरकरार रहा। साध्वी कानकुमारी जी ने बतायाउनकी समता गजब की थी, क्षमता भी गजब थी। उन्होंने सबका मन जीत लिया।
शासन गौरव साध्वी राजीमती जी के शब्दों में
(1) मैं कोई भी नया कार्य, चिंतन योग्य प्रसंग तथा आचार्यवर तक निवेदनीय मैटर भी उन्हें सुनाए बिना नहीं देती।
(2) लोगों को संभालने की उनकी कला बेजोड़ थी।
(3) मैं रात 8-8:3 के बीच अंदर चली जाती, वे बैठे रहते। वो कोई होता तो उनसे धर्म चर्चा करती, उनका सुख-दु:ख सुनती। नहीं होता तो अपना जप करती रहती।
(4) संघीय तथा आचार्यों के समाचार सुनने की उनमें अजब उत्सुकता थी। मैं कहती पहले उनको सुना दो मुझे बाद में बता देना।
(5) यद्यपि गुरुदेव ने उन्हें मुझे संभलाया था पर मैंने उनको नहीं संभाला बल्कि उन्होंने मुझे संभाला।
(6) मैं अपना सौभाग्य मानती हूँ कि ऐसी पवित्र साध्वी, पुरुषार्थी साध्वी, पुण्यवान साध्वी, धर्म प्रचारिका साध्वी समय नियोजिका साध्वी, भीतर में रहने वाली साध्वी गुरुदेवश्री तुलसी ने मुझे दिराईऊर्जावान साध्वी थी, इसीलिए तीनों आचार्यों की कृपा उन्हें प्राप्त हुई। (गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी और आचार्यश्री महाश्रमण जी) आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी सन् 2008 में अणुविभा, जयपुर में विराज रहे थे। आचार्य तुलसी की तीज का दिन। सब साध्वियाँ उपवास पचख रही थीं। आचार्यश्री ने करुणाश्री जी से फरमायाक्या तुमसे और हमसे गुरुदेव प्रसन्न नहीं होंगे, क्योंकि हम तो उपवास नहीं करते। कोई बात नहीं हम दोनों जाप करके गुरुदेव को प्रसन्न करेंगे।
(7) इनके साथ रहकर मैं भी धन्य हो गई। पाँचवें आरे में वेदना में इतनी समता रखने वाली साध्वी के साथ मैं रही।
(8) उनकी मंत्र-श्रद्धा भी अटूट थी। कई प्रकार के जप प्रयोग करती रहती। नवकार मंत्र की 5 माला, ॐ भिक्षु की 13 माला संती कुंथी अरहो की 1 माला आदि कई मंत्रों का जप करना उनका नित्यक्रम था। नवकार गिने बिना दवा-पानी भी नहीं लेती।
(9) योगासन-प्राणायाम सदा करती। रात साढ़े दस से पहले कभी नहीं सोती।
(10) खाने में अनासक्ति रखती। जो आया वो खा लिया। साथ ही सहवर्ती सभी साध्वियों को भी देखती रहती कि किसने क्या खाया और क्या नहीं। कोई नहीं खाता तो उन्हें कहती पीछे अपने लिए तो रख लिया करो।
(11) शरीर से वह बहुत कोमल थी। पर थकान क्या होती है? शायद वह जानती नहीं थी। मुझे कहीं भी जाना होता मैं उन्हें दिन में 3-4 बार भी कहती तो बिना ननुनच वह सदा तैयार रहती। एक बार जयपुर चातुर्मास में शहर से सवाई मानसिंह अस्पताल दर्शन देने जाने का दिन में 3 बार काम पड़ा पर वह हर बार पूर्ववत स्फूर्ति के साथ तैयार थी।
(12) साध्वी करुणाश्री जी के लिए जितने भी विचार आए हैं वे सभी उनकी निश्छल हँसी, समता, सहिष्णुता, विनम्रता की मूर्ति आदि के रूप में आए। सुलझी व सकारात्मक सोच की तो वह जीवंत मिसाल थी। कभी मैं किसी बात का चिंतन करती तो वे बिना बुलाए और बतलाए कहती कि इस पर कल सोचेंगे तब तक स्वयं समाधान आ जाएगा। नहीं तो मेरे पर छोड़ दो।
(13) उनकी प्रमोद भावना तो अविस्मरणीय है। कोई भी साध्वी कोई छोटा-सा काम भी कर देती तो उसकी बहुत-बहुत प्रमोद भावना भाती।
(14) वह शरीर और मन दोनों से कोमल थी। इन दिनों लगभग 9 महीनों से खाना-पीना उनके लिए एक समस्या हो गई। वमन पात्र पास में रखना पड़ता। खाने की मनुहार करने वाली साध्वी को कभी-कभी हाथ से हटाना चाहिए तब समताश्री जी प्राय: कहती थोड़ा-सा आवेश आया है ना? खमतखामणा करो। फिर तो इतनी विनम्र हो जाती कि हम देखते ही रह जाते।
(15) आराधना का प्रथम गीत समताश्री जी प्राय: उन्हें सुनाती। मर्यादाप्रभा जी से लोगस्स की पूरी माला सुनती, तेरापंथ प्रबोध सुनती। पुलकितयशा जी, कुसुमप्रभा जी, प्रभातप्रभा जी जप करवाती, गलती होते ही तत्काल ‘मिच्छामि दुक्कड़’ लेती।
(16) ऐसी साध्वियों के विकास का ग्राफ संघ में बढ़ता रहे।
ऐसी करुणावान साध्वी जिनके लिए प्राप्त हर संदेश पत्र में उनकी करुणा, वात्सल्य, समता की छाप हमें देखने को मिली। उनकी यह गुणराशि हम सबमें भी अवतरित हो। शुभाशंसा।