आगम को मित्र बनाकर आत्मसात करें : आचार्यश्री महाश्रमण
बीदासर, 11 फरवरी, 2022
शासन सम्राट आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि 32 आगमों में एक आगम हैदसवेंआलियं। यह आगम चारित्रात्माओं के लिए बहुत उपयोगी है। नवदीक्षित इसे कंठस्थ करने का प्रयास करते हैं। आवश्यक सूत्र के सिवाय आगमों में सबसे ज्यादा कंठस्थ किया जाने वाला यह आगम है। तीसरा स्थान उत्तराध्ययन आगम का होता है। दसवेंआलियं में दस अध्ययन हैं। पाँचवें अध्ययन में गोचरी के विषय में विधि-विधान के बारे में बताया गया है। भाषा के संदर्भ में क्या बोलना, क्या न बोलना इसके सातवें अध्ययन में सुंदर दिशा निर्देश प्राप्त होते हैं। षड़-जीविकाय के बारे में और महाव्रतों के बारे में चौथे अध्ययन में सुंदर जानकारी मिलती है। छेदोपस्थापनीय चारित्र जो पचक्खाया जाता है, वो इसके चौथे अध्ययन में सूत्रों के आधार पर ग्रहण कराया जाता है। कैसे आगे से आगे विकास होता है, उसकी सुंदर जानकारी मिलती है। सुगति-दुर्गति की जानकारी मिलती है। सुलभ किसके लिए, दुर्लभ किसके लिए सुगति हो जाती है, इसका भी निर्देश चौथे अध्ययन में मिलता है। माधुकरी भिक्षा के बारे में पहले अध्ययन में थोड़े से श्लोकों में दे
दी है।
दसवेंआलियं के पहले अध्ययन का पहला श्लोक है, वो तो मानो धर्म का सार है। अहिंसा, संयम, तप धर्म है। नौवें अध्ययन में विनय के संदर्भ में वर्णन प्राप्त होता है। दसवें अध्ययन में भिक्षु और उसके लक्षणों का वर्णन मिलता है। कभी साधु का मन अस्थिर हो जाए, तो क्या करना? इसका वर्णन इसकी पहली चूलिका में सुंदर भविष्य के लिए चेतावनी दी गई है।
दूसरी चूलिका में प्रेक्षाध्यान का आधार अति संक्षेप में इसमें बताया गया है। यों हम चारित्रात्माओं व समण श्रेणी के लिए स्थिति के अनुसार यह दसवेंआलियं बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। अर्थ का भी ज्ञान हो तो प्रेरणा मिल सकती है। निर्जरा की स्थिति बन सकती है। ज्ञान भी अच्छा रह सकता है।
प्रतिक्रमण का अर्थ हमारे समझ में आए तो बहुत अच्छा रह सकता है। उत्तराध्ययन आगम भी पूरा कंठस्थ हो तो अच्छी बात है। इसका दसवां और उन्तीसवाँ अध्ययन याद कर ले। ये स्वाध्याय, वैराग्य भाव की निर्मलता के लिए अच्छा है। इसे कंठस्थ करने का प्रयास करें। संयम रूपी शरीर के आगम भोजन के समान है। दुनिया में मित्र बनाए जाते हैं, आगम हमारा ऐसा मित्र बन जाए, आत्मसात् हो जाए। हमेशा हमारे साथ पास रहे।
आज माघ शुक्ला दशमी है। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का आज दीक्षा दिवस होता है। आज के दिन हमारे धर्मसंघ को एक ऐसा बालमुनि प्राप्त हुआ था। सरदारशहर के भंसालियों के बाग में पूज्य कालूगणी के करकमलों से दीक्षा हुई थी। वे हमारे धर्मसंघ के आचार्य बने। वे अद्वितीय-विलक्षण आचार्य थे।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ का एक बहुत बड़ा अवदान हैआगमों का संपादन, अनुवादन, टिप्पण लेखन। आज हम कई आगम सुविधा से प्राप्त कर रहे हैं, उनमें आचार्य महाप्रज्ञजी का विशेष योगदान रहा है। मैं आगम संपादन के कार्य को एक राज्य मानूँ तो आचार्य तुलसी आगम वाङ्मय के राष्ट्रपति थे। आचार्य महाप्रज्ञ जी उसके प्रधानमंत्री थे। आचार्य महाप्रज्ञजी का आगम संपादन में एक सेवादान है।
गुरुदेव महाप्रज्ञजी की संस्कृत भाषा पर अच्छी कमांड थी। आशु कविता भी कर लेते थे। प्रेक्षाध्यान को खड़ा करने में उनका कितना बड़ा योगदान है। जीवन-विज्ञान भी उनका अवदान है। प्रवचन भी करते थे। प्रवचन में उनकी भाषा बड़ी शुद्ध-स्पष्ट होती थी। उनका वैदुष्य भी था। साहित्यकार भी थे। महाप्रज्ञ वाङ्मय में 100 से अधिक पुस्तकें आ गई हैं। उनका विपुल साहित्य है। हमारे इस भैक्षव शासन की बगिया में एक विशिष्ट आचार्य हमारे धर्मसंघ को प्राप्त हुए। उनके उपपात-चरणों में रहने का मौका मुझे मिला। मुझे कार्य करने का कितना बड़ा मैदान दिया। उनका विशेष वात्सल्य मुझे प्राप्त हुआ था। युगप्रधान आचार्य के रूप में वे प्रस्तुत हुए। हमारे भी विकास होता रहे। हम भी उनके बताए मार्ग में विकास करने का प्रयास करते रहें। मैं गुरुदेव के प्रति श्रद्धा भाव से अपनी प्रणति अर्पित करता हूँ। पूज्यप्रवर के प्रति अभिवंदना के स्वर में चेतन, सरोज दुगड़, पुष्पा सुराणा, सुरेंद्र सेखाणी, पारस गोलछा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि पूज्य महाप्रज्ञजी के जीवन के सार रूप में हम आचार्यश्री महाश्रमण जी को देख सकते हैं।