धर्म के मूल तत्त्व हैं अहिंसा, संयम और तप : आचार्यश्री महाश्रमण
राजियासर मीठा,
20 फरवरी, 2022
महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी दिल्ली की ओर अग्रसर हैं। अहिंसा यात्रा के साथ पूज्यप्रवर 12 किमी का विहार कर राजियासर स्थित सरकारी विद्यालय पधारे। महामनस्वी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में धर्म भी चलता है और अधर्म भी चलता है। धार्मिक लोग भी मिलते हैं, अधार्मिक लोग भी मिल जाते हैं। धर्म एक वह तत्त्व है, जिसके द्वारा आत्मा की शुद्धि होती है। संप्रदाय भी होते हैं। पर अहिंसा, संयम, तप रूपी धर्म जीवन में नहीं है तो कल्याण की बात संभव नहीं होती है। शरीर और आत्मा दोनों का होना जरूरी है। बिना शरीर या बिना आत्मा वाला अकेला क्या कर पाएगा। जीवन में मूल तत्त्व आत्मा है। शरीर संप्रदाय की तरह है। आत्मा की तरह धर्म है। एक लिफाफा है, एक पत्र है। धर्म का मूल तत्त्वअहिंसा, संयम और तप है। संप्रदाय उसकी सुरक्षा, सहायता के लिए हो सकता है। अहिंसा हमारे जीवन में रहे, अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा भगवती है। ऐसा कौन सा धर्म-संप्रदाय होगा जो अहिंसा को नहीं मानता है। अहिंसा हमारे भावों और व्यवहार में भी रहे। संयम भी जीवन में रहे। अणुव्रत का मूल तत्त्व संयम है। तप भी धर्म है। शुभ योग तप होता है। धर्म का एक अर्थ कर्तव्य भी हो सकता है। आदमी सोचे कि मैं अपने कर्तव्य के प्रति भी जागरूक रहूँ। माता-पिता का भी कर्तव्य होता है। माता-पिता अपनी संतान को अच्छे धार्मिक संस्कार दें। यह एक प्रसंग से समझाया। व्यवहार में माँ का विशेष महत्त्व होता है। माँ अच्छे संस्कारों का निर्माण करने वाली होती है।
हमारे समाज में ज्ञानशालाएँ चलती हैं, उनके माध्यम से भी बच्चों में अच्छे संस्कार भरने का प्रयास किया जा सकता है। संतान का माता-पिता के प्रति भी कर्तव्य होता है। माता-पिता का उपकार-ॠण संतान पर होता है। गुरु का भी उपकार होता है। आगे से आगे परंपरा चलती है। माता-पिता के उपकार से उॠण होने के लिए उन्हें धार्मिक सहयोग देने का प्रयास करना चाहिए। गुरु भी अगर धार्मिक मार्ग से शिथिल हो जाए तो उस समय शिष्य गुरु को पुन: धर्म के मार्ग पर स्थापित कर गुरु के उपकार से उॠण हो सकता है। धार्मिक-शारीरिक सहयोग दे। हमारे पर उपकार किया है, तो हम भी दूसरों का उपकार करें। आदमी कर्तव्य के प्रति जागरूक रहे।
आत्मिक-आध्यात्मिक सेवा करने से आध्यात्मिक लाभ मिल सकता है। निर्जरा की भावना से परमार्थ का कार्य करें। कर्तव्य के पालन के लिए कुछ परिश्रम भी करना हो सकता है। कर्तव्य का पालन करने से व आध्यात्मिक सेवा करने से आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है। प्रवचन पश्चात आचार्यप्रवर ने समुपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समुपस्थित ग्रामीणों ने अपने स्थान पर खड़े होकर अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। सायं लगभग 4:40 बजे आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चक राजियासर मीठा से प्रस्थान किया। लगभग पाँच किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कनवारी गाँव स्थित वीर हनुमान मंदिर परिसर में पधारे। मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। आज का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ।