साधु के जीवन में त्याग के साथ ज्ञान हो तो सोने पे सुहागा : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म साधना केंद्र, 15 मार्च, 2022
जैन धर्म के प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी साधु-संतों के पास जाता है। श्रमण महान के पास जाता है। साधुओं की पर्युपासना करता है। पर्युपासना क्यों करनी चाहिए? क्या लाभ मिलता है। जो साधनाशील है, अहिंसा के आराधक हैं, संयम के साधक हैं, तप प्रयोक्ता है, ऐसे महापुरुषों के दर्शन करने से भी एक प्रेरणा मिल सकती है, पावनता का अनुभव हो सकता है। शांति मिल सकती है, कर्म-निर्जरा भी होती है। साधुओं के तो दर्शन भी पुण्य हैं। साधु चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। साधु के दर्शन से शीघ्र लाभ मिलता है, कर्म झड़ते हैं। साधु के दर्शन करने से कुछ सुनने को मिलता है। सुनने से ज्ञान होता है और ज्ञान होने से विशेष ज्ञान हो सकता है। मनुष्य जन्म दुर्लभ है, श्रुति भी दुर्लभ है। प्रवचन श्रवण के साथ सामायिक भी हो। हेय-उपादेय का विवेक प्राप्त हो सकता है। झूठ बोलने वाले को तनाव ज्यादा हो सकता है। सच्चाई में आत्मबल रह सकता है। आदमी न्यायालय में झूठ न बोले। झूठा आरोप न लगाए।
विज्ञान होने पर प्रत्याख्यान होता है। निर्जरा-तप होगा। करते-करते आत्मा अक्रिया तक चली जाती है। आदमी सिद्धि को भी प्राप्त कर लेता है। साधुओं की संगति का कितना बड़ा लाभ है। कितनी अच्छी प्रेरणा मिल सकती है। मौन करना भी अच्छा है, तो बोलना भी अच्छा है। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितना प्रवचन किया था। लोगों का कल्याण किया था। बोलने से लाभ भी होता है। साधु का दायित्व है, व्याख्यान देना, तत्त्व को बताना। लोगों को लाभ मिल सकता है। शास्त्रकार ने कहा है कि श्रमण महान साधुओं की पर्युपासना करने से अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। रोहिणिये चोर के कानों मे प्रभु महावीर की वाणी पड़ी और उसका मार्ग प्रशस्त हो गया। साधु के जीवन में त्याग के साथ ज्ञान भी हो तो, सोने पे सुहागा वाली बात है।
सत्संगति बहुत कल्याणकारी हो सकती है। साहित्य की भी सत्संगति हो। मीडिया में भी सत्संगति हो। अच्छों की संगति करते रहें। अच्छा सुनना, अच्छा देखना और अच्छा बोलना व अच्छा सोचने से सद्गुणों का विकास हो सकता है। रास्ता अच्छा मिल सकता है। हमें अपने जीवन में अच्छों की संगत में रहने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाश्री जी के स्वास्थ्य की चित्त समाधि हेतु पूज्यप्रवर ने मंत्र जप करवाया। साध्वी रतनश्री जी एवं सहवर्तिनी साध्वियों ने गीत व भावों की प्रस्तुति पूज्य चरणों में की। पूज्यप्रवर के अभिनंदन में दिल्ली की अन्य सभाओं की ओर से रमेश जैन (उत्तम नगर), अजित जैन (नांगलोई), पश्चिम विहार से श्यामलाल जैन एवं रोहिणी से समूह गीत मदनलाल जैन द्वारा प्रस्तुतियाँ दी गई। बालक मंथन ढेलड़िया ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।