
दुर्लभ मनुष्य जीवन में प्रमाद और पाप कर्म से बचें : आचार्यश्री महाश्रमण
लाहली (रोहतक), 3 अप्रैल, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी 12 किलोमीटर का विहार कर लाहली के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में आत्मरमण साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगमों में एक है। उत्तराध्ययन सूत्र। उसके 36 अध्ययन हैं। दसवाँ अध्ययन है, उसमें एक संदेश बार-बार दोहराया गया है, वह संदेश हैµसमयं गोयम मा पमायए।
आगम वाङ्मय में भगवान महावीर और गौतम का संवाद प्राप्त होता है। प्रस्तुत सूत्र में संदेश है कि गौतम! समय मात्र प्रमाद मत करो। इस संदेश को हम सभी अपने पर उपयोग कर सकते हैं कि प्रमाद नहीं करना चाहिए। कारण कि मनुष्य जन्म है, वह दुर्लभ है। जो हमें एक अवसर प्राप्त है। अवसर आदमी गँवा दे, अवसर चला जाए, फिर पछताने से क्या फायदा?
इस प्राप्त अवसर में आदमी पाप में चला जाए, तो जीवन तो पूरा हो जाएगा। फिर क्या पता यह कब मिलेगा। जो दुर्लभ हैµमनुष्य जीवन, इसलिए प्रमाद नहीं करना चाहिए। लंबे काल तक प्राणियों को मनुष्य जन्म न भी मिले। सघन कर्मों का विपाक होता है, तो मानव जीवन को प्राप्त नहीं होने देते। वर्तमान में तो हमें मनुष्य जीवन प्राप्त है। इस जीवन में प्रमाद से, पापों से बचने का प्रयास करें। मानव जीवन को सुफल-सफल बनाने का प्रयास करें।
मनुष्य जन्म को सुफल और सफल बनाने के छः उपाय बताए गए हैं। मनुष्य जीवन एक वृक्ष है, उसके छः फल लग जाएँµजिनेंद्र पूजा, अर्हत-तीर्थंकरों की भक्ति करो। णमो अरहंताणं का जप भी अर्हत भक्ति हो गई। आदमी मस्तक झुका दे, कितनी बड़ी भक्ति है यह। आदमी अपने माता-पिता के सामने सिर झुकाता है। मैंने भी दीक्षा लेने से पहले मेरी संसारपक्षीय माता के चरणों में शीश झुकाकर प्रणाम किया था। श्रद्धा से अरहंतों को नमन कर लो।
साधु के सामने तो राजा-महाराजा या राष्ट्रपति-मंत्री आदि सिर झुकाते हैं। संत त्यागी होते हैं। जिनेंद्र भगवान तो सर्वोच्च व्यक्तित्व होते हैं। दूसरा फल बतायाµगुरु-पर्युपासना-गुरु की भक्ति करो। गुरु तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं। तीसरा फल बतायाµसत्वानुकंपा-प्राणियों के प्रति अनुकंपा-दया की भावना। मन में दया का भाव है, तो आदमी हिंसा से बच सकता है। किसी प्राणी को बिना मतलब तकलीफ न दें।
यदि भला किसी का कर न सको तो, बुरा किसी का मत करना। चौथा फल हैµसुपात्र दान। शुद्ध साधु को शुद्ध दान दो। पाँचवाँ फल बतायाµगुणानुराग, गुणों के प्रति अनुराग। कोई भी आदमी है, उसमें जो गुण हैं, उन्हें ग्रहण करो। कमियों को मत देखो। छठा फल बतायाµश्रुतिरागमस्य। आगम और शास्त्रों की वाणी को सुनो। ये मानव जीवन रूपी वृक्ष के फल हैं। शास्त्रों की बातें तो अमृत हैं। वर्तमान में तो मोबाइल फोन या सोशियल मीडिया भी प्रवचन सुनने का माध्यम बन जाता है। यांत्रिक सुविधा का दुरुपयोग न हो।
किसी धर्म-समाज का आदमी है, अगर वो गुणवान है, तो गुणों के प्रति हमारा प्रेम है। कमी भाई में भी है, तो कमी तो कमी है। गृहस्थ धर्म के साथ थोड़ा अध्यात्म का धर्म करने का भी प्रयास करें।
पूज्यप्रवर ने श्रावकों से पूछा कि एक तो सामने देखकर सुनते हैं, एक मोबाइल या टीवी पर देखते हैं, उसमें अंतर है क्या? श्रावकों ने अपने अनुभव बताए। सामने साक्षात् देखकर सुनने से उसके आंतरिक भाव जुड़ जाते हैं। सामने सुनने से ज्यादा अच्छा लगता है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में कलनौर से ओ0पी0 जैन, लाहली से सरपंच राजेश मल्होत्रा, जुही जैन, श्रीपाल जैन, वीणा जैन ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
आज प्रातः विहार से पहले पूज्यप्रवर जनसेवा संस्थान के अनाथ आश्रम में पधारे। स्वामी परमानंदजी ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया। पूज्यप्रवर ने आश्रम का अवलोकन किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि कड़ी मेहनत, बड़ी सोच, पक्का इरादा आदमी को आगे बढ़ाते हैं। पैर की मोच ओर ओछी सोच से व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता।