जिसका मन धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर, 7 मई, 2022
जन कल्याण के लिए सतत गतिमान आचार्यश्री महाश्रमण जी सरदारशहर के वृद्ध-असक्त श्रावक-श्राविकाओं को प्रातः घर-घर जाकर सार-संभाल कर रहे हैं। आज लगभग 10ः30 बजे तक पूज्यप्रवर श्रम करवाते रहे। जन-जन के मुख पर एक ही बात थीµआध्यात्मिक गुरु कैसा हो, आचार्यश्री महाश्रमण जी जैसा हो।
लगभग 10ः30 बजे पूज्यप्रवर युगप्रधान समवसरण में पधारे। मंगलमय अमृतवाणी से पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जैन शासन में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। अहिंसा धर्म है, संयम धर्म है, तप धर्म है। इस धर्म की जो आराधना करता है, वह देवों के लिए भी नमस्करणीय हो जाता है। देवता भी उसको नमस्कार करते हैं, ऐसा शास्त्र में कहा गया है। जिसका मन धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
देवता नमस्कार करें, न करें एक अलग विषय है, मूल आत्मा का कल्याण धर्म से होता है। इसलिए आदमी को धर्म की साधना जितनी जिंदगी में कर सके, वो करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म ही एक ऐसा तत्त्व है, जिससे शांति भी मिलती है, शक्ति भी मिलती है और आगे का कल्याण का भी सुनिश्चय हो जाता है। आगे की स्थितियाँ भी अच्छी रह सकती है, इसलिए हमें जिंदगी में जितना संभव हो सके, धर्म के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्यप्रवर के संसारपक्षीय पारिवारिकजन की ओर से प्रियंका दुगड़, प्रतिभा दुगड़, निधि दुगड़, मास्टर चिन्मय दुगड़, संगायक कमल सेठिया, सुनीता बांठिया, राज सेठिया, सौम्या नाहटा, कोकिला कुंडलिया, राजू दफ्तरी, डॉ0 कुसुम लुणिया ने अपनी भावना गीत, कविता व वक्तव्य से पूज्यप्रवर के चरणों में अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हम कभी दूसरों का अहित न करें, न वाणी के द्वारा, न शरीर के द्वारा, न मन के द्वारा। जब चेतना जग जाती है, तो आदमी पाप कर्म से बच सकता है।