अच्छे श्रोता बनकर हो सकते हैं धर्म के मार्ग पर अग्रसर: आचार्यश्री महाश्रमण
बोथरा फार्म हाउस, 18 जून, 2022
गंगाशहर का चार दिवसीय प्रवास संपन्न कर आचार्यश्री महाश्रमण जी आचार्य तुलसी समाधि स्थल पर पधारे। वहाँ पर निर्मित आचार्य तुलसी उपासक साधना केंद्र का अवलोकन कर श्रीडूंगरगढ़ की ओर विहार करते हुए आज बोथरा फार्म हाउस पधारे। मार्ग में पीबीएम हॉस्पिटल स्थित आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर एवं श्रीडूंगर राजकीय महाविद्यालय भी पधारे। बोथरा फार्म हाउस में जिन वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में सुनने का काम भी पड़ता है और बोलने का काम भी पड़ता है। कर्णेंद्रिय ठीक है, तो आमतौर पर सुनने का मौका भी मिलता है। भाषण शक्ति ठीक है, तो बोलने का काम भी पड़ता है।
मौन का महत्त्व बताया गया है, पर बोलने के समय बोलना भी चाहिए। सुनने के समय सुनना भी चाहिए। शास्त्रकार ने कहा है कि सुनकर आदमी कल्याण को जान लेता है, सुनकर वह पाप को भी जान लेता है। कल्याण और पाप दोनों को सुनने के बाद जो श्रेय है, हितकर है, कल्याणकारी है, उसका आचरण करना चाहिए। तीन शब्द हैंµहेय, उपादेय, ज्ञेय। हेय जो छोड़ने लायक है। जो ग्रहण करने लायक है, वह उपादेय होता है। जो जानने लायक है, वह ज्ञेय होता है। हम सुनते हैं, सुनने से हमें ज्ञान होता है। ज्ञान हो गया तो विज्ञान विशेष ज्ञान हो गयाµहेय क्या और उपादेय क्या? हेय को छोड़ने का प्रयास हो, उपादेय को ग्रहण करने का प्रयास हो।
जीव-अजीव आदि नव तत्त्व हैं। संवर, निर्जरा और मोक्षµये तीन तत्त्व उपादेय हैं। ज्ञेय नव ही तत्त्व है। हेय पाप, आश्रव, पुण्य और बंध है। जीव की असद् प्रवृत्तियाँ हेय है। कर्म पुद्गल अजीव है, वे भी हेय है। नव तत्त्व में तीन तत्त्व उपादेय है, इनको ग्रहण करने का मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को उपदेश-व्याख्यान जो हितकारी हो, उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितनी बार प्रवचन किया होगा, कितने लोगों ने उनके प्रवचन को सुना होगा। ज्ञान एक ऐसा तत्त्व है, जिससे जीवन में परिवर्तन आ सकता है। वैरागी-साधु बनते हैं, तो कुछ तो उन्होंने सुना होगा, ज्ञान ग्रहण किया होगा। वाणी का कितना प्रभाव होता है। वाणी सुनकर आदमी पापों को छोड़कर, धर्म के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।
साधु की वाणी से कभी-कभी ऐसा संबल मिल जाता है कि आदमी स्थिर हो जाता है, पाप से दूर हो जाता है। यह आचार्य भिक्षु और विजय सिंह पटवा के प्रसंग से समझाया। सामायिक भी हो गई और रुपये भी मिल गए। धर्म की जड़ हरी होती है। झटपट आदमी को धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। सामायिक भी तो एक संपत्ति है। भीखण जी को भी दीक्षा की आज्ञा उनकी माँ से गुरुदेव रघुनाथजी के समझाने पर ही दी थी।
श्रोता मिलना चाहिए तो अच्छा वक्ता भी मिलना चाहिए। दोनों हाथ से ताली बजती है। वक्ता-श्रोता दोनों अच्छे मिलें तो कल्याण का काम हो सकता है। सुनने से अच्छी जानकारी मिल सकती है और आदमी मोक्ष की तरफ आगे बढ़ सकता है। आज मूलचंद बोथरा के इस फार्म हाउस में आना हुआ है। पूरे परिवार में अच्छे धर्म के संस्कार बने रहें। खूब प्रामाणिकता, नैतिकता, अहिंसा, सामायिक, तत्त्वज्ञान, साधुओं की सेवा का लाभ के संस्कार बने रहें। खूब धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति हो, मंगलकामना। पूज्यप्रवर के स्वागत में बोथरा परिवार की ओर से अयेश, राजेश, भाईयों एवं बहनों ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि आदमी को एकांत दृष्टि नहीं रखनी चाहिए। अनेकांत दृष्टि वाला हर तरह से सुखी होता है।