गुरु के गुणों को धारण करने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण
दशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का 103वाँ जन्म दिवस
तोलियासर, 26 जून, 2022
आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी, तेरापंथ धर्मसंघ के दशम अधिशास्ता, प्रेक्षा प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का 103वाँ जन्म दिवस। आज ही के दिन झूंझनू जिले के छोटे से गाँव टमकोर में बालक नत्थु का जन्म हुआ था। आपने नत्थु से मुनि नथमल, महाप्रज्ञ, युवाचार्य महाप्रज्ञ और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एक लंबी संयम यात्रा संपन्न की है। तेरापंथ के आचार्यों में सर्वाधिक संयम पर्याय प्राप्त करने वाले और सबसे ज्यादा उम्र में आचार्य पद को प्राप्त करने वाले आप प्रथम आचार्य हैं। श्रीडूंगरगढ़ में त्रिदिवसीय प्रवास सुसंपन्न कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी दस किलोमीटर का विहार कर तोलियासर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे।
मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने गुरु के जन्म दिवस पर मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दो शब्द हैं-भोग-योग। शास्त्रकार ने भोग के संदर्भ में बताया है कि जो प्राणी आसक्ति जनक भोग में डूबा रहता है, वह कर्मों से चिपक जाता है। आसक्तिपूर्ण भोग पाप कर्म बंध का कारण बन सकता है। बंध से मुक्त होने के लिए योग का आश्रय लेना अपेक्षित होता है। भोग से योग की ओर आगे बढ़ना। आदमी मनोरंजन में मन बहलाव करता है, हँसी-मजाक करता है। मनोरंजन से आत्मरमण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आदमी प्रवृत्ति करता है, उसका अपना महत्त्व भी हो सकता है, पर निवृत्ति में भी जागरूक रहे।
आज परमपूज्य, परम वंदनीय आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का 103वाँ जन्म दिवस है। दक्षिण यात्रा में उनका जन्म शताब्दी कार्यक्रम एक अपने ढंग के समारोह के रूप में संपन्न हुआ था। आदमी जन्म लेता है, और एक दिन चला भी जाता है। परंतु जीवनकाल में वह क्या करता है, वह महत्त्वपूर्ण बात है। दुनिया में कभी-कभी महापुरुष पैदा हो जाते हैं। जो धर्म की जागृति लाने का प्रयास करते हैं। उनके उपदेशों से पाप का नाश भी कुछ अंशों में हो सकता है। दुनिया में अनेक स्तरों के व्यक्ति होते हैं। भगवान महावीर, आचार्य भिक्षु हुए हैं। एक नया संप्रदाय सामने आ गया है। उसी संप्रदाय में आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी हुए हैं। लंबे काल तक दोनों साथ-साथ रहे थे। गुरु के पास रहने का मौका मिले तो अच्छी बात है। पंद्रह वर्षों तक युवाचार्य रूप में रहने का मौका मिला। बाद में भी गुरु सन्निधि में आचार्य पद पर रहे थे। आज तक यह मौका सिर्फ उन्हें ही मिला है।
इस संबंध में आचार्य महाप्रज्ञ जी विलक्षण आचार्य थे। वे 11वें वर्ष में ही पूज्य कालूगणी के पास साधु बन गए थे। सरदारशहर-भादासर आदि उनके उत्थान के क्षेत्र हैं, जहाँ उन्होंने दीक्षा ली। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी एक मनस्वी, चिंतनशील, चिंतन के गांभीर्य से युक्त व्यक्ति थे। ऐसा अनेक प्रसंगों से, अनेक रूपों से प्रतीत होता है। ज्ञान की उनकी गहराई, उनमें जो वैदुष्य था। संस्कृत भाषा के बहुत अच्छे ज्ञाता थे। साहित्य में तो स्वाद हो सकता है, पर व्याकरण में स्वाद वाली बात नहीं है। व्याकरण को कंठस्थ कर नियमों को समझना। जिज्ञासा करना विद्यार्थी जीवन का अच्छा लक्षण है। उनमें ज्ञान का अच्छा विकास था। हमारे धर्मसंघ में वे विद्वत्त वैरुण्य मुनि के रूप में सामने आ गए। वे एक दार्शनिक संत थे। ऐसा ज्ञान का क्षयोपशम सबमें होना मुश्किल है।
जैन आगमों के संपादन में उनकी शक्ति का नियोजन हुआ है। हम अपने गुरु के गुणों को गा सकते हैं। हम गुरु के जैसे कुछ बन सकें, गुणों से गुरु-महान बन जाए तो हमारे लिए कल्याणकारी बात हो सकती है। मुझे भी उनके पास विद्यार्थी के रूप में रहने का मौका मिला था। साध्वीप्रमुखाश्रीजी भी रही थी। वे हमारे प्राध्यापक, आचार्य और गुरु भी थे। उनके जन्म दिवस पर मैं बारंबार श्रद्धांजलि अर्पण करता हूँ। परम पावन आज तोलियासर पधारे हैं। तोलियासर में भैरूंजी का प्रसिद्ध मंदिर है। प्राधानाचार्य गजानंद सेवड़ा ने अपनी भावना रखते हुए परम पावन का स्वागत किया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि कुछ समय पूर्व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की जन्म शताब्दी अलग ढंग से मनाई थी। आचार्यप्रवर के भीतर से जो निकल रहा था, वह जन्म शताब्दी की गरिमा को बढ़ा रहा था। आपने चैन्नई में एक पाठ्यक्रम भी तैयार किया था-महाप्रज्ञ श्रुताराधना पाठ्यक्रम। अनेक साधु-साध्वियों ने वो पाठ्यक्रम स्वीकार किया था। आचार्यप्रवर ने शताब्दि वर्ष को ज्ञान चेतना वर्ष के रूप में घोषित किया था। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का व्यक्तित्व ज्ञानत्व से युक्त था। उनके मन में ज्ञान के प्रति अनुराग था। वे कभी आयुर्वेद, कभी मनोविज्ञान, कभी दर्शन के ग्रंथ पढ़ते थे। आपने ज्ञानकोष बढ़ाया। उनकी दृष्टि अंतर्दृष्टि बन गई। वे प्रवचन करते तो एक नया वातावरण बन जाता। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।