
धर्म का सार है-अहिंसा, संयम और तप: आचार्यश्री महाश्रमण
अष्टम् आचार्य कालूगणी की जन्मभूमि में आचार्यश्री महाश्रमण जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
छापर का चातुर्मास खूब अध्यात्ममय और समाधिस्थ हो: आचार्यश्री महाश्रमण
छापर, 9 जुलाई, 2022
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य परमपूज्य श्री कालूगणी की पावन जन्मस्थली छापर जहाँ आज प्रातः लगभग 7ः21 पर तेरापंथ के एकादशम अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ विक्रम संवत् 2079 (ई0 सन् 2022) का पावन पावस प्रवास करने हेतु पधारे। छापर सेवा केंद्र भी है। पूज्यप्रवर ने आज प्रातः लगभग 6ः50 पर चाड़वास से छापर के लिए विहार किया। विहार के कुछ समय पश्चात ही मानो पूरा रास्ता महाश्रमणमय हो गया। चारों तरफ मंगल ध्वनियाँ, जयघोष ने वातावरण को तेरापंथमय बना दिया। तेरापंथ समाज के सभी संगठनों के अलावा विभिन्न स्कूलों के बच्चे, अनेक सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता जुलूस को विराट बना रहे थे। तीन किलोमीटर की इस दूरी को पाटकर ज्योंहि आचार्यप्रवर कालूमहाश्रमण भवन पधारे मानो छापरवासियों की 74 वर्ष की मनोकामना पूर्ण हो गई।
तेरापंथ के एकादशम महासूर्य ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मंगल की आकांक्षा की जाती है। दूसरों के लिए भी मंगलकामना की जाती है और आदमी खुद का भी मंगल चाहता है। मंगल के लिए कुछ उपाय भी काम में लिए जाते हैं। कई शुभ मुहूर्त देखते हैं। कुछ मंगल मंत्र का पाठ भी करते हैं। मंगलपाठ भी सुनते हैं। गुड़-चंवलेड़ी आदि पदार्थों का भी उपयोग किया जाता है कि मंगल हो। ये चीजें कुछ सहायक-निमित्त बन सकें तो बन सकते हैं।
उत्कृष्ट मंगल क्या है। शास्त्रकार ने ये बात बताई है। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म का सार है-अहिंसा, संयम और तप धर्म है। कोई भी प्राणी हंतव्य नहीं है, यह धर्म शाश्वत है। अहिंसा को परम धर्म भी कहा गया है। सब प्राणियों को अपने समान समझें। मैं अपने सुख के लिए दूसरे के सुख को बाधित क्यों करूँ। सब जीव सुख पाना चाहते हैं।
जो व्यवहार अपने लिए दूसरों से नहीं चाहते, हम भी वह व्यवहार दूसरों के साथ न करें। इस प्रकार का चिंतन अहिंसा का चिंतन है। संयम धर्म है। मन, वचन, शरीर का संयम रखना, अशुभ से इनको बचाना, यह संयम जहाँ है, वहाँ मंगल है। तप भी मंगल है। मन का शुभ कार्य में प्रवृत्त होना, वचन और काय का शुभ में प्रवृत्त होना तप है। अच्छे अध्यवसाय भी तप हो सकते हैं।
शास्त्रकार ने कहा है कि उस आदमी को देवता भी नमस्कार करते हैं, जिसका मन धर्म में रमा रहता है। आज हमें वि0सं0 2079 का चतुर्मास छापर में करने के लिए चातुर्मासिक मंगल प्रवेश किया है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के समय जो निर्णय हुआ था, उसको क्रियान्वित करने के लिए हमने चातुर्मासिक प्रवेश किया है।
चतुर्मास का समय अपने आपमें एक अपेक्षा से, एक जगह रहकर कार्य करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भी होता है। हम जैन शासन में साधना कर रहे हैं। कितनें तीर्थंकर, आचार्य, साधु-साध्वियाँ जैन शासन में हुए हैं। आचार्य भिक्षु ने लगभग 262 वर्ष पूर्व इस जैन श्वेतांबर तेरापंथ का प्रतिष्ठापन किया था। यदा-कदा उनका स्मरण भी करते रहते हैं।
हम आचार्य भिक्षु से संबद्ध शासन में साधना कर रहे हैं। उत्तरवर्ती उनकी आचार्य परंपरा में अष्टमाचार्य परम पूज्य कालूगणी थे। आज हम हमारे आठवें गुरु की जन्मभूमि में चतुर्मास करने के लिए आए हैं। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी के श्रीमुख से पूज्य कालूगणी के बारे में फरमाया जाता तो अलग ही बात होती। उन्होंने तो साक्षात उनका सान्निध्य प्राप्त किया था।
कालूगणी के दो शिष्य हमें आचार्य के रूप में प्राप्त हुए। मैंने भी उनकी माला फेरकर निर्णय किया था कि साधु बनूँ या न बनूँ। अनेक साधु-साध्वियाँ हमारे साथ हैं। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी तो प्रथम बार चतुर्मास प्रवेश हेतु पधारी हैं। सभी साधु-साध्वियाँ खूब स्वस्थ रहते हुए, खूब प्रशस्त कार्य करते रहें। गुरुओं की प्रेरणा हमें मिलती रहे। छापर का चतुर्मास खूब अध्यात्ममय समाधिस्थ हो।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि प्रबंधन का सूत्र है-स्वप्न लो, संकल्प करो, गतिशील बनो, मंजिल को प्राप्त करो। प्रबंधन के इस सूत्र को आचार्यप्रवर जीवन में अनुसरण कर रहे हैं। वह क्षेत्र धन्य हो जाता है, जिस क्षेत्र में आचार्यों के चरण-कमल टिकते हैं। छापर ने तेरापंथ धर्मसंघ को एक कोहिनूर प्रदान किया। परमपूज्य कालूगणी पुण्य प्रतापी आचार्य थे। उन्होंने दो-दो युगप्रधान आचार्यों को अपने हाथों से दीक्षित किया। शिक्षित किया, परिक्षित किया और उन्हें आगे बढ़ाया। संघ में विकास का बीज वपण करने वाले कालूगणी थे।
पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिनंदन में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा, स्वागताध्यक्ष रतन बैद, ज्ञानशाला, तेरापंथ महिला मंडल, विजयसिंह सेठिया (सभाध्यक्ष), महासभा से विनोद बैद, तेयुप, अणुव्रत समिति से प्रदीप सुराणा, सुजानगढ़ के एमएलए मनोज मेघवाल, भंवरलाल पुजारी (कांग्रेस जिला अध्यक्ष) नगरपालिका अध्यक्ष श्रवण माली, रतनगढ़ विधायक अभिनेष महर्षि, सुजानगढ़ की मियर निलोफर गौरी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।