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साधु की संगत बन सकती है कल्याण का माध्यम: आचार्यश्री महाश्रमण
छापर, 14 जुलाई, 2022
सरलता के आराधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जो आगम की वाणी में है, वो अर्हत् वाङ्मय में है। क्या-क्या कहा गया है, इसका वर्णन करना भी कठिन है। हमारे आगम स्वाध्याय के भी कुछ नियम हैं। तीर्थंकर जो कुछ बोलते हैं, वो ही एक तरह से आगम की सामग्री हो जाती है। वर्तमान में तीर्थंकर नहीं है। मैंने भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के जीवन में समानता का प्रस्तुतिकरण किया था। ग्रंथों में हमें आचार्य भिक्षु की बानिया भी प्राप्त होती हैं। आचार्य भिक्षु दृष्टांतों के माध्यम से भी समझाने का प्रयास किया करते थे। लौकिक क्या, लौकोत्तर क्या, कितनी-कितनी बातें वे दृष्टांतों से समझाया करते थे।
साधु के पास ज्ञान होता है और समझाने का तरीका होता है, साथ में त्याग-संयम है, तो साधु के द्वारा कितनों का कल्याण हो सकता है। आज सावण कृष्णा एकम, चतुर्मास का प्रथम दिन है। सुबह का प्रवचन महत्त्वपूर्ण होता है। सुनकर आदमी बहुत कुछ जान सकता है। हमारे ग्रंथों, आगमों में कितनी जानकारियाँ हैं। ज्ञान की बात कान में पड़े तो कान धन्य हो जाते हैं। कल्याण की बात सुनने को मिल जाती है। छापर पूज्यप्रवर कालूगणी की जन्म स्थली है। मैं आज प्रातः जहाँ जन्म हुआ था वहाँ गया भी था। वे बालावस्था में साधु बन गए, बाद में आचार्य बन गए। उनका अपना जीवन-वृत्त है। आचार्य श्रद्धा के आस्थान होते हैं। उनके जीवन से हम प्रेरणा ले सकते हैं।
हमारा चतुर्मास का मंगल कल दीक्षा समारोह से हो गया। बीच का मंगल भी दीक्षा के रूप में सितंबर माह में रखा हुआ है। सावण बदी एकम को तो आगम स्वाध्याय का निषेध है। स्वामीजी के पद्यों से हम ज्ञान, चिंतन व पाथेय प्राप्त कर सकते हैं। प्रवचन एक पाथेय-पोषण देने वाला हो सकता है। स्वाध्याय से भी पोषण प्राप्त हो सकता है।
सावण-भादवा माह में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का विशेष महत्त्व है। आगम के आधार पर व्याख्यान हो और भी आख्यान-व्याख्यान हो। साथ में त्याग-वैराग्य की बात भी हो। निर्जरा, प्रेरणा, कल्याण की दृष्टि से अच्छी बात हो सकती है।
प्रातः लगभग 9 बजे मुख्य प्रवचन शुरू हो सकेगा। 10ः30 से पहले प्रवचन समाप्त नहीं होना चाहिए। और देरी हो सकती है। इस बार भगवती सूत्र जितना संभव होगा उस पर बोलने का बताने का विचार है। इसमें तत्त्व ज्ञान भरा है। उपरले व्याख्यान के रूप में कालू यशोविलास बाँचने का विचार है। मुनि विकास कुमार जी जो वर्षों से सेवा केंद्र में सेवा दे रहे हैं, पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावना गीत से व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि वर्ष में लगभग 10 दिन अस्वाध्याय के होते हैं।