आचार्य भिक्षु का 297वाँ जन्म दिवस व 265वाँ बोधि दिवस
शाहदरा, दिल्ली।
आचार्यश्री भिक्षु के 297वें जन्म दिवस व 265वें बोधि दिवस एवं चातुर्मासिक बड़ी चतुर्दशी का कार्यक्रम शासनश्री साध्वी रतनश्री जी के सान्निध्य में आयोजित किया गया। इस अवसर पर शासनश्री साध्वी रतनश्री जी ने कहा कि वर्ष में 3 चातुर्मासिक चतुर्दशी आती हैं, इन तीनों में एक चतुर्दशी का सर्वाधिक महत्त्व है। साधु-साध्वियों के नव कल्पी व पंच कल्पी विहार होता है। उनमें चतुर्मास एक कल्प व आठ महीनों के एक कल्प साधुओं के लिए होता है। पाँच कल्प साध्वियों के लिए आगम में निर्धारित है। इस विधान के अनुसार सभी जैन साधु-साध्वियाँ चातुर्मास स्थल में पधार गए हैं। साधु-साध्वियाँ स्वयं की आत्म साधना में अनवरत लीन रहते हुए जनता को भी महावीर वाणी का रसास्वादन कराते हैं। शासनश्री साध्वी सुव्रताजी ने कहा कि आचार्य भिक्षु के शरीर में कुछेक जन्मजात विलक्षणताएँ थींµजैसे पैर में उर्ध्व रेखाएँ, हाथ में मत्स्य-रेखा, नाभि पर स्वस्तिक रेखा, ललाट पर आढ़ी तीन रेखाएँ यह सब चिÐ प्रभावशाली व्यक्त्यिों के शरीर में होते हैं। मर्यादा पत्र का वाचन हुआ। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन दिल्ली सभा के महामंत्री प्रमोद घोड़ावत द्वारा करवाया गया।