सम्यक्त्व को निर्मल रखने के लिए कषायमंदता आवश्यक: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 24 जुलाई, 2022
परम ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हुए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्नोत्तर करने का क्रम चल रहा है। ज्ञान वृद्धि का एक माध्यम है कि प्रश्न हो, और फिर समाधान दिया जाए। कई बार एक आदमी प्रश्न पूछता है, उसका समाधान मिलता है, साथ में दूसरों को भी उसकी जानकारी हो जाती है। प्रश्न पूछने वाला तो स्वतंत्र होता है और जबाव देने वाला कुछ परतंत्र हो जाता है। जवाब देने वाले को तो प्रश्न पूछने वाले के प्रश्न का जवाब देना होगा। भगवती सूत्र में प्रश्नोत्तर के माध्यम से अनेक-अनेक समाधान, जानकारियाँ देने का प्रयास किया गया है। प्रश्नकर्ता भी मुख्य रूप में गौतम स्वामी है। प्रश्नकर्ता जानकार व्यक्ति हो तो उत्तर देने वाला ध्यान देकर उत्तर देता है। परंतु उत्तर देने वाले सर्वज्ञ हो तो क्या ध्यान देने की जरूरत है। यहाँ प्रश्न किया गया है कि क्या वही सत्य और निशंक है, जो जिनों-अर्हतों द्वारा प्रवेदित है? उत्तर दिया गया हाँ गौतम वही सत्य है, जो जिनेश्वरों द्वारा प्रवेदित है।
सच्चाई के अन्वेषण की दृष्टि से और सच्चाई की भक्ति करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बात बताई गई है कि कई बार हर किसी बात का निर्णय करना कठिन हो सकता है। ऐसी स्थिति में श्रद्धा सही कैसे रह सकती है? हम अल्पज्ञ हैं, सच्चाईयाँ अनंत हैं। कई बातें हमारे सामने प्रत्यक्ष है, भी नहीं। जैसे धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय।
ज्ञेय जो जानने योग्य पदार्थ है, वे तीन प्रकार के बताए गए हैं। एक है-सुखाभिगम जो सरलता से, आसानी से जाना जा सके। दूसरा है दुर्भिगम-जिसको जान पाना कठिन होता है। तीसरा है-अनभिगम-वह ज्ञेय जो हमारे लिए प्रत्यक्ष जान पाना कठिन है, जो परोक्ष ज्ञान है, मति-श्रुत ज्ञान से जाना नहीं जा सकता है। सुखाभिगम जो है, उनमें शंका करने की स्थिति नहीं है। दुर्भिगम में थोड़ी शंका की स्थिति हो सकती है। अनभिगम तो मानो शंका से भरा पड़ा है।
दुनिया में इतने-इतने दर्शन व मान्यताएँ हैं। सबका अपना-अपना सिद्धांत-मान्यता है। जिनेश्वर भगवान तो सामने है नहीं जो यह बता सके कि यह बात ऐसे है। इसमें मेरी श्रद्धा यह रहे कि सारी बातों का निर्णय करना मेरे लिए कठिन है। जिनेश्वर भगवान ने जो देख लिया, जान लिया वो सत्य है, उसमें मुझे शंका नहीं। दुनिया में जो सही है, सत्य है, उसको मेरा समर्थन है। मेरी बात बताने में गलती हो सकती है, पर जिनेश्वर भगवान ने जो बताया है, वही सत्य है, उसमें मेरी श्रद्धा है। इसमें शंका नहीं। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने बताया है कि दो प्रकार के पदार्थ होते हैं-हेतु गम्य और अहेतु गम्य। कई-कई बातों को तर्क से, हेतु से जानने का, सिद्ध करने का प्रयास किया जा सकता है। कई चीजें हेतु से सिद्ध करनी, कठिन हो सकती हैं।
जो इंद्रिय-ज्ञान की सीमा में आने वाली चीजें हैं, उनको हेतु से, तर्क से सिद्ध किया जा सकता है। जो इंद्रिय ज्ञान की सीमा से परे है, वो अहेतुगम्य है, सिद्ध नहीं किया जा सकता है। जो सूक्ष्म चीजें हैं, इंद्रियों द्वारा गम्य नहीं है, वे अहेतुगम्य है। परमाणु, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अहेतुगम्य है। इनको सिद्ध करना मुश्किल है। जो जिनेश्वर भगवान ने प्रवेदित किया वो सत्य है। ये सम्यक्त्व को निर्मल रखने की बात है कि केवली की बात पर श्रद्धा रखो। हमारी अपनी बात में गलती हो सकती है, केवली की बात में नहीं। सम्यक्त्व को निर्मल रखने के लिए कषायमंदता करो। तीसरी बात है-तत्त्व बोध को जानने-समझने का प्रयास करो, नई बात सामने आ सकती है। तत्त्वज्ञान का प्रयास करते रहें तो हमारे यथार्थ बोध की स्थिति उच्च और निर्मल हो सकती है। जिनेश्वर भगवान ने जो बात कही है, उसको मानने वाला ज्ञान का आराधक होता है। इस आलंबन के द्वारा आराधक की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। ज्योतिपुंज ने कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए फरमाया कि पूज्य डालगणी का युग चल रहा है। डालगणी के मन में माणकगणी के बाद की व्यवस्था की जानकारी लेने की इच्छा हुई। उन्होंने मुनि मगनलालजी से सारी बात जानने का प्रयास किया, उस प्रकरण को विस्तार से समझाया कि किस तरह से डालगणी ने मगन मुनि से उनके मन की बात को जाना।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि एक गुरु कार्य है-आत्मा को जानना। आत्मा को जानने के लिए बाहर और भीतर की दुनिया को समझना होता है। बाह्य जगत में आकर्षण है, पर हमें भीतरी जगत में आकर्षण रखना चाहिए। अंतर्जगत का चिंतन अंतर्मुखी होता है। हमें चिंतन करना है कि हम शारीरिक स्तर पर जी रहे हैं या भीतरी स्तर पर जी रहे हैं। हमारा दृष्टिकोण सम्यक् हो। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने सूत्र दिया था-रहो भीतर, जीयो बाहर। धर्म है, भीतर रहना। जो भीतर रहता है, वह धर्म की आराधना करता है। हमें ध्यान के द्वारा भीतर अंतर्जगत की यात्रा करनी चाहिए। साध्वीवर्या जी ने कहा कि तीर्थंकर धर्मज्ञाता, धर्मधुरी एवं साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रूपी तीर्थ की स्थापना करने वाले होते हैं। उनके आठ प्रतिहार्य होते हैं, जिनको विस्तार से समझाया। भगवान अर्ध मागधी भाषा में प्रवचन करते हैं।
मालवा क्षेत्र के रतलाम व अन्य क्षेत्रों से एक विशाल संघ लगभग 250 श्रावक-श्राविकाओं के साथ गुरु सन्निधि में 2024 के चतुर्मास हेतु अर्ज करने श्रीचरणों में उपस्थित हुआ। न्यायालय के रूप में चतुर्मास अर्ज के लिए अच्छी प्रस्तुति हुई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाते हुए प्रस्तुति की सराहना की। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि 2024 के चतुर्मास की घोषणा 5 सितंबर को करने का तय किया हुआ है। आप प्रतीक्षा करें। साध्वी सुषमाकुमारी जी ने तपस्या की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने आचार्य भिक्षु एवं श्रावक शोभजी के नाथद्वारा जेल के प्रसंग को समझाया।