ज्ञान रूपी संपदा से उन्नत हो सकता है आचार: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 31 जुलाई, 2022
जीवन नैया के कर्णधार आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र आधारित अपने मुख्य प्रवचन में फरमाया कि गौतम स्वामी को सौ-सौ साधुवाद देना चाहिए कि उन्होंने कितने-कितने प्रश्न किए हैं और भगवान ने उनका समाधान दिया है। गौतम स्वामी आगे प्रश्न नहीं पूछते तो पता नहीं इतने उत्तर आते कि नहीं आते। प्रश्न किया गया भंते! लोक-स्थिति कितने प्रकार की है? हम जहाँ हैं, वह लोक है। अलोक नहीं है। लोक की स्थिति क्या है किस पर लोक टिका हुआ है, वो क्या व्यवस्था है? उत्तर दिया गया कि आठ प्रकार की स्थितियाँ हैं-आकाश पर वायु टिकी हुई है, वायु पर समुद्र, समुद्र पर पृथ्वी त्रस और स्थावर प्राणी पृथ्वी पर, अजीव जीव पर, जीव कर्म से प्रतिष्ठित है। अजीव जीव द्वारा संगृहीत है, जीव कर्म के द्वारा संगृहीत है।
प्रश्न किया गया कि यह कैसे आकाश पर वायु, वायु पर समुद्र कैसे हो सकता है? व्यावहारिक रूप में समझाया गया मश्क के उदाहरण द्वारा। ऐसे कई बातें हैं। ऐसे लोक सृष्टि की स्थितियाँ बताई गई हैं। जैसे इश्द् प्राग्धारा पृथ्वी आकाश परस्थिति है। ये सारी सापेक्ष बातें हैं। त्रस-स्थावर प्राणी पृथ्वी पर बताए गए हैं, पर आकाश में भी हो सकते हैं। हमारा शरीर अजीव है, जो जीव पर टिका हुआ है। हमें जितने भी पदार्थ दिखाई देते हैं, वे सारे पुद्गल पदार्थ है। वे जीव के द्वारा ही गृहीत हैं। सारे अजीव जीव से संगृहीत-जीव से युक्त हुआ है। जीव का जितना भी नानात्व है, वे सारे कर्म द्वारा निष्पन्न हैं। इस तरह लोक की नाना स्थितियाँ हैं।
जैन दर्शन में दो वर्गीकरण आते हैं-एक है षड् द्रव्यवाद और दूसरा है-नवतत्त्ववाद। षड्द्रव्य में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय है। नव तत्त्व में जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष है। छः का नौ में या नौ का छः में समावेश किसी रूप में किया जा सकता है। प्रश्न किया गया कि फिर दो क्यों किए गए, एक से ही काम चल जाता। दो दृष्टिकोण हैं, इन पर आधारित वे दो वर्गीकरण हैं। यह लोक सृष्टि है क्या? जहाँ अस्तित्ववाद है, वहाँ छः द्रव्यों वाला लोक है। आत्मकल्याण की दृष्टि से क्या करना, वह है, उपयोगितावाद तब नव तत्त्वों को समझो। साधना की दृष्टि से समझाना हो तो नौ तत्त्व को काम में लें। दुनिया क्या है, यह समझाना हो तो छः द्रव्यों को काम में लें। अस्तित्ववाद और उपयोगितावाद को समझाने के लिए लोक की आठ स्थितियाँ बताई गई हैं। इस लोक स्थिति को जान लें, समझ लें तो हमारी जानकारी पुष्ट हो सकती है। जानकारी के बाद जो करणीय है, वो करना चाहिए। हेय क्या, उपादेय क्या, ये ज्ञान होने के बाद समझ सकते हैं। ज्ञय परिज्ञा से जान लें, अभ्याख्यान परिज्ञा से पापों की चीज को छोड़ने का प्रयास करें। ग्रहणीय को ग्रहण करने का प्रयास करें।
श्रावक भी आगम का हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद, भाष्य, टिप्पण पढ़ सकते हैं। आचार्य भिक्षु के ग्रंथों में कितना तत्त्वज्ञान भरा पड़ा है। पढ़ते-पढ़ते कई बातें समझ में आ सकती हैं, स्वाध्याय हो सकता है। जयाचार्य की झीणी चर्चा में तत्त्व ज्ञान भरा है। ज्ञान हमारी संपदा है। ज्ञान होने से हमारा आचार अच्छा हो सकता है। पूज्यप्रवर ने कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए फरमाया कि मुनि मनन व अन्य संतों द्वारा सम्मान-मनुहार के साथ पट्ट पर आसीन कराया जा रहा है। भादरा शुक्ल त्रयोदशी को चार तीर्थ की उपस्थिति में नियुक्ति पत्र पढ़ा गया। पट्टोत्सव मनाने का दिन भाद्रवा शुक्ला पूनमतय किया गया है। अब दूज का चांद, पूनम का चांद बनने जा रहा है। पट्टोत्सव पर अमल-धवल चद्दर औढ़ाई गई। गीतिकाओं से मंगलकामना की जा रही है। नौ के अंक की तरह तेरापंथ के 8वें आचार्य शोभित हो रहे हैं। आचार्य भिक्षु के लिखत का नवीनीकरण किया गया। प्रातःकालीन व्याख्यान व रात्रि में रामचरित का व्याख्यान पूज्य कालूगणी करवा रहे हैं। वत्सलता के साथ कड़ाई भी है। चतुर्मास पूर्ण होने पर प्रथम विहार सुजानगढ़ के लिए हो रहा है। वहाँ पर बोझ की पाँती डालगणी से पूर्ववत जो थी वो मान्य की गई। नए सात संतों के सिंघाड़े बनाएँ। छोगांजी बीकानेर में प्रवासित हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि मनुष्य का जीवन एक प्रवाह है। मनुष्य की गति चलती रहती है। गति कभी सीधी, कभी टेढ़ी, कभी घुमावदार या कभी भटकाव वाली हो सकती है। मनुष्य शिक्षित प्राणी है, जो जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करता है। हम नश्वर जीवन को कलात्मक बनाएँ। जो जीवन को संवार लेता है, वह जीवन जीने की कला सीख लेता है। जीवन में व्यक्ति व्यस्त नहीं, मस्त रहे तो वह जीवन का आनंद ले सकता है। भारतीय संस्कृति में जीवन उसे कहते हैं, जो शांत, संतुष्ट, संतोष, पवित्रता और आनंद से जीता है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक जो आचार्य महाप्रज्ञजी के प्रवचनों पर संकल्पित है-महापर्व पर्युषण श्रीचरणों में लोकार्पित की गई। इसका संकल्प साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने किया है। एक ओडियो- ॅीमतम ूपसस लवन हव ूीमद लवन कपम भी लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने भी पुस्तक के विषय में जानकारी दी। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वी सुषमा कुमारी जी एवं मुनि दिनेश कुमार जी ने तप की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि श्रावक-श्राविकाएँ साधु के माता-पिता होते हैं, जो डूबते को तिनके का सहारा देकर उबार लेते हैं।