पापकर्मों से भारी आत्मा अधोगति में जाती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पापकर्मों से भारी आत्मा अधोगति में जाती है: आचार्यश्री महाश्रमण

18वें तेरापंथ कन्या मंडल राष्ट्रीय अधिवेशन ‘स्पेक्ट्रम’ का आयोजन

ताल छापर, 8 अगस्त, 2022
विज्ञा वारिधी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि प्राणी-जीव गुरुता, भारीपन को कैसे प्राप्त करते हैं। उत्तर दिया गया कि जीव भारी प्राणातिपात आदि 18 क्रियाओं से होता है। एक दृष्टि से देखें तो आत्मा क्या भारी होगी, क्या हल्की होगी। पाप कर्म करने से 2 किलो वजन आत्मा का बढ़ जाए, ऐसा संभव नहीं है। पर सामान्य रूपेण भारी चीज नीचे जाती है। व्यवहार की भाषा में देखें कि जीव का भारी होना, जिन क्रियाओं से जीव नीचे अधोगति में जाता है, रूप में पापों से भारी जीवनता है। 18 पापों से हिंसा आदि करने वाला राग-द्वेष कर आत्मा को पाप से भारी बना लेता है।
दूसरा प्रश्न किया गया कि फिर जीव लघुता को कैसे प्राप्त करता है? उत्तर दिया गया कि हे गौतम! ये जो प्राणातिपात आदि 18 पाप हैं, इनके विरमण से जीव लघुतापन को प्राप्त करता है। साधु के इन सावद्य योगों के त्याग होते हैं। साधु के तो विरमण होता है, तो वह मोक्ष में जाएगा या देवलोक में जाएगा। हल्की आत्मा तो ऊपर ही जाएगी। भारी आत्मा नीचे जाती है। और भी बातें आई हैं कि जीव संसार में परिमितता को कैसे प्राप्त करता है। अपरिमितता कैसे कर लेता है। संसार में भ्रमण क्यों करता है। सारी बातों का एक ही कारण है कि 18 क्रियाओं का सेवन करने से संसार में भ्रमण होता है। इनका विरमण करने से संसार से मुक्ति मिल जाती है। इनके सेवन से संसार अपरिमित और विरमण से परिमित बन जाता है।
शास्त्र में एक सिद्धांत की बात बता दी गई है कि 18 ही क्रियाएँ हैं, इनका सेवन आत्मा के लिए संसार को बढ़ाने वाला, जीव को भारी बनाने वाला, संसार को अपरिमित बनाने वाला बन जाता है। इन अठारह के त्याग से इससे उल्टी बातें होंगी। साधु के तो जीवन भर सावद्य प्रवृत्ति के त्याग होते हैं। गृहस्थ क्या करें? गृहस्थ इनका अल्पीकरण करने का प्रयास करे। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़े और विरमण की दिशा में आगे बढ़े। आदमी को उम्र के अनुसार समय-समय पर मोड़ लेना चाहिए। परिष्कार करना चाहिए। निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ें। विरमण की साधना आगे बढ़े। रोज 14 नियम चितारें।
गृहस्थ जीवन में समता रहे। झूठ से बचें। साधुओं की सेवा से धर्म का लाभ मिल सकता है। जैन-अजैन कोई हो, जीवन में जितना त्याग-संयम बढ़ेगा, उतनी आत्मा हल्की होगी। गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी ने यात्राएँ की। अनेक लोगों से संपर्क हुआ उस समय जो प्रवचन श्रवण से संबोध मिलता है और लोग उसको ग्रहण कर लेते हैं, तो उनके जीवन में परिष्कार घटित हो जाता है। पापात्माएँ भी पाप के कार्य को छोड़ धर्म की दिशा में आगे बढ़ने लग जाते हैं। त्यागी संतों से सन्मार्ग मिल सकता है।
अणुव्रत तो हर समाज के लोगों के लिए उपयोगी है। नास्तिक भी अणुव्रती बन सकता है। साधु भी ध्यान रखे कि मेरे इन 18 क्रियाओं का सेवन न हो जाए। साधु प्रमाद में न रहे। हिंसा-अहिंसा में वीतरागता और चेतना की बात होती है, तो बहुत बचाव हो सकता है। हिंसा अधोगति का रास्ता है। हम उस मार्ग पर न चलें। साधु के सदुपयोग से कितनों का कल्याण हो जाता है।
कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए धर्मज्ञाता ने फरमाया कि बाल दीक्षा के संबंध में श्रावकों ने लालाजी से भेंट की और जैन धर्म तेरापंथ की बात बताई। सिद्धांतों की बात बताई। लाला सुखबीर सिंह जी बात सुनकर प्रभावित हुए और आश्वासन देते हुए कहा कि मैं आपके गुरु के दर्शन करना चाहता हूँ। ऐसे भी गुरुजी हैं क्या? लालाजी ब्यावर में पूज्य कालूगणी के दर्शन कर, संपर्क कर बात करते हैं। सजोड़े दीक्षा का अवसर भी देख लिया। नीति-रीति को भी समझ लिया। उन्होंने कहा कि मैं नाबालिक दीक्षा कानून में ऐसा संशोधन कर दूँगा कि वो तेरापंथ पर लागू नहीं होगा। उस समय विश्व युद्ध शुरू हो जाता है और वह बिल पेंडिंग हो जाता है। अनेक कठिनाइयाँ कालूगणी के समय आईं पर उनकी पुण्यवाणी से सब ठीक हो गया। श्रावक समाज भी कितना जागरूक रहा है। ये खास बात है। तेरापंथी महासभा का जन्म कालूगणी के शासन में ही हुआ है।
स्पेकट्रम-18वें कन्या अधिवेशन का पूज्यप्रवर की सन्निधि में मंचीय कार्यक्रम
पूज्यप्रवर ने इस अवसर पर प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि तीन शब्द हैं-बुभुषा, जिज्ञासा, चिकीरसा। आदमी के जीवन में बुभुषा होनी चाहिए, कुछ होने की इच्छा होनी चाहिए। कुछ बनना है, तो जिज्ञासा हो। ज्ञान ग्रहण करने की इच्छा हो। चिकीरसा यानी कुछ बढ़िया काम करने की इच्छा होनी चाहिए। इन इच्छाओं के अनुसार आदमी प्रयत्न करता है, तो उसका एक सुंदर परिणाम भी आ सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि कन्याओं को जीवन में सहिष्णुता का विकास करना होगा। परिवार, व्यवसाय या समाज कोई भी क्षेत्र हो वहाँ सहिष्णुता की अपेक्षा है। तलाक की समस्या इसलिए बढ़ रही है कि दोनों ओर सहिष्णुता का अभाव है। कन्याओं में सहिष्णुता के बीजों का वपन हो जाएगा तो समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी।अखिल भारतीय महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्षा नीलम सेठिया ने इस अधिवेशन की विस्तार से जानकारी दी। कन्या मंडल से अर्चना भंडारी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल की प्रस्तुति हुई। मंचीय कार्यक्रम से पूर्व समणी जिज्ञासाप्रज्ञा जी एवं समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।