आचार्य भिक्षु जन्म दिवस व बोधि दिवस भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के जीवन में अनेक साम्यताएँ : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 22 जुलाई, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर एकादशम अधिशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु का 296वाँ जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस मनाया गया। आज के दिन कंटालिया में माता दीपांजी की कुक्षी से भीखण का जन्म हुआ था। आज ही के दिन राजनगर में मुनि भीखण को श्रावकों की शंकाओं ने उन्हें आत्म-निरीक्षण के लिए बाध्य कर दिया। उससे जो फलित हुआ वह सारे संसार के लिए बहुत गुणकारक हुआ।
आचार्य भिक्षु के एकादशम पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि वीर पुरुष महान पथ के लिए समर्पित होते हैं। प्रश्न है कि वीर पुरुष ही क्यों समर्पित हो सकते हैं, महान पथ के लिए?
मैं व्यावहारिक रूप में बताना चाहूँगा कि महान पथ के लिए वीर होना जरूरी है। पहाड़ी मार्ग है, ऊँचाई का पथ है, उस पर चलना है। बिना वीरता के चलना कठिन है, वरना आदमी थक सकता है। वैसे ही महान पथ पर चलने के लिए पैरों में वीरता चाहिए। तभी वह आरोहण कर सकता है। स्वावलंबन से वही चढ़ता है, जो वीर होता है। यह वीरता बाह्य हो गई। भौतिक पथ है, भौतिक बल की बात हो गई।
जहाँ अभौतिक पथ होता है, वह भी उच्च-महानता का है, क्रांति का पथ है, आचरणगत उच्चता का पथ है, वहाँ भी भावात्मक वीरता चाहिए। निष्ठा और संकल्प के रूप में वीरता होती है, तो आदमी उस पर चल सकता है, वरना चल पाना मुश्किल होता है।
आचार्य भिक्षु का आज जन्म दिवस है। जन्म दिवस अपना-अपना होता है। जन्म में प्रकट रूप में और तात्कालिक रूप में जन्म लेने वाले का कोई कृतत्व नहीं होता। जन्म के बाद में जीवन काल में कृतित्व बोलता है, आचार्य भिक्षु के जन्म और जीवन केे प्रसंगों को मैं देखूँ तो मुझे भगवान महावीर की भी स्मृति हुई।
मैं कुछ अंशों में भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में समानता देखता हूँ। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु का जन्म शुक्ला त्रयोदशी को हुआ। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु ने सांसारिक जीवन में प्रवेश किया था, विवाह हुआ था। दोनों ही पुत्री के पिता बने। पुत्र नहीं हुआ। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु ने युवावस्था में अभिनिष्क्रमण किया, दीक्षा स्वीकार की।
भगवान महावीर को नमोत्थुणं में आइगराणं कहते हैं, एक अपेक्षा से भूल न हो जाए तो आचार्य भिक्षु भी आदिगर थे। भगवान महावीर तीर्थ के आदिगर थे। आचार्य भिक्षु ने एक पंथ की स्थापना की एवं पंथ के आदिगर हो गए। भगवान महावीर ने स्वयं दीक्षा ली थी तो आचार्य भिक्षु ने भी केलवा में स्वयं ने ही दीक्षा का पाठ स्वीकार किया।
भगवान महावीर के साधना काल में उपसर्ग-विरोध, कठिनाइयाँ आई थीं। देवता मनुष्य-तिर्यंच संबंधी भी भगवान महावीर के सामने कठिनाइयाँ आई तो आचार्य भिक्षु के जीवन को देखें तो केलवा में देवकृत स्थिति भी आ गई। मनुष्यों ने तो विरोध किया ही था। यक्षराज ने नाग का रूप बनाया था तो नाग के रूप में कठिनाई थोड़ी आ गई थी।
भगवान महावीर ने तीर्थ की स्थापना की तो आचार्य भिक्षु ने भी नए रूप में एक तीर्थ की स्थापना कर दी। चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की थी। इस तरह हम अनेक रूप में भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के जीवन में साम्य का दर्शन कर सकते हैं।
भगवान महावीर ने साम्य-समता की साधना की तो आचार्य भिक्षु के जीवन में कितनी स्थितियाँ आईं उनमें साम्य रहा होगा, समता रही होगी। आचार्य भिक्षु के जन्म के बाद की बात हम देखें। उनमें ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम अच्छा दिखाई दे रहा है। उनमें जो बौद्धिक बल, ज्ञान का बल था वह सामान्य आदमी में मिलना मुश्किल है। भले उसे औत्पतिक बुद्धि कहा जाए।
आचार्य भिक्षु ने किस प्रकार शास्त्रों का अवगाहन किया होगा। संस्कृत और प्राकृत भाषा के कम जानकार होते हुए भी उन्होंने आगमों का अर्थ किस प्रकार ग्रहण किया है, वह एक विशेष बात है। उनके पास विशेष प्रतिभा बल था। केवल जानना ही नहीं, प्रतिपादन करने की क्षमता थी। उनमें मति बल के साथ प्रतिपादन करने का बल भी था।
उनमें आस्था का बल भी दिखाई दे रहा है। भगवान महावीर या जिन वाणी के प्रति उनमें निष्ठा-समर्पण था उनमें आचार की निर्मलता भी थी। उन्होंने जो बोधि प्राप्त की इसके पीछे एक सैद्धांतिक और आचारात्मक बोध और निष्ठाएँ उसकी पृष्ठभूमि में लग रही है। ये मैं उनकी काव्यात्मक भाषा या शैली की बात बता रहा हूँ।
बोधि की जो बात है, वे एक संप्रदाय में दीक्षित भी हो गए थे। प्रतिभा थी तो शास्त्रों का अध्ययन भी करते। मन में प्रश्न उठते। विद्यार्थी की इस बात को सफलता मानता हूँ, जिसके दिमाग में ठीक प्रश्न पैदा होते हों। तार्किक बुद्धि चाहिए। तार्किकता है, तो विद्यार्थी का ज्ञानात्मक विकास हो सकता है। वे अपने गुरुजी के कृपापात्र-प्रिय शिष्य थे।
आचार्यप्रवर ने राजनगर की घटना को बताते हुए फरमाया कि उन्होंने सत्य का अन्वेषण कर अपनी तार्किक बुद्धि से ऐसे पंथ का निर्माण किया जिसकी मजबूत और गहरी नींव से तेरापंथ धर्मसंघ चहुँदिशा में आलोकित है।
ज्योति का अवतार बाबा, ज्योति ले आया। गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान किया। ऐेसे हमारे आचार्य भिक्षु जिनका आज जन्म दिवस और बोधि दिवस जो आज मेवाड़ में हमारे सान्निध्य में आया है। जिस मेवाड़ की धरती पर वास्तव में बोधि की बात हुई थी।
परम पूज्य आचार्य भिक्षु का जो जीवन दर्शन है, क्रांत दर्शन है, शांत दर्शन है, उस दर्शन से हमें प्रेरणा मिलती रहे। यह काम्य है। तेले या उपवास करने वालों से प्रत्याख्यान करवाया।
मुनि मोहजीत कुमार जी ने आचार्य भिक्षु के विषय में बताया कि जन्म तो हर किसी का होता है, पर उस किसी के साथ कुछ विरले पुरुष कुछ ऐसे कृतित्व, जिनकी कहानी कितने ही शब्दों में कह दें, कम है। इतिहास बनता नहीं बनाया जाता है।
मुनि उदित कुमार जी ने बताया कि जन्म लेना एक नियति है। पर हमारे आराध्य के साथ जुड़ने से वह तिथि विशेष हो जाती है। आचार्य भिक्षु क्रांतिकारी थे, कुशल संगठक थे। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाया। तेरापंथ हमारे लिए आदर्श है।
साध्वी मननयशा जी, मुनि संबोध कुमार जी, पूज्यप्रवर द्वारा घोषित नव समणी नियोजिका, समणी अमलप्रज्ञा जी ने अपनी भावना परम पावन पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्त की।
परम पावन ने फरमाया कि हमने आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस और बोधि दिवस मनाया है। हमें भिक्षु स्वामी से प्रेरणा अध्यात्म की, ज्ञानार्जन की, आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहे। समणी अमलप्रज्ञा खूब अच्छा विकास करे, अच्छी सेवा करे।
साध्वी जयंतमाला जी व साध्वी संकल्पप्रभा जी ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने सम्यक्त्व के बारे में बताया।