विशिष्ट तत्त्ववेत्ता आचार्य थे श्रीमद्जयाचार्य: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 23 अगस्त, 2022
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैसे सूर्य निशांत होने पर भरत क्षेत्र को प्रकाशित कर देता है, भारतवर्ष को प्रकाशित कर देता है और बड़ा शोभायमान होता है। हमारे जीवन में सूर्य की रोशनी और सूर्य के ताप का कितना महत्त्व है। प्राची में सूर्य उदय होता है, उससे कितना प्रकाश हो जाता है। कितना ताप मिलता है। शास्त्रकार ने आचार्य की तुलना कुछ मानो सूर्य से की है। सूर्य वैसे तो बड़ी चीज है आचार्यश्री सामान्यतया प्रकाश प्रदान करने वाले होते हैं। सूर्य शोभायमान होता है। स्वर्ग में इंदु शोभायमान होता है। जैसे देवों के मध्य इंद्र शोभायमान होता है, वैसे ही आचार्य चारित्रात्माओं के बीच और परिषद के बीच शोभायमान होते हैं।
आचार्य में अनेक विशेषताएँ होती हैं। उनमें आचार की विशेषता हो। कई-कई आचार्य तो श्रुत-बुद्धि की दृष्टि से भी बहुत विकसित होते हैं। आचार्य के पास श्रुत संपदा भी अच्छी होती है, तो वे सम्माननीय-श्रद्धेय होते हैं। श्रुत के प्रकाश के साथ शील की सौरभ भी हो। साथ में उनमें बुद्धि हो। आज एक महान आचार्य जयाचार्य का 242वाँ वार्षिक महाप्रयाण दिवस है। उनका समाधि स्थल जयपुर में है। मैं भी वहाँ गया था। श्रीमद्जयाचार्य हमारे चतुर्थ आचार्य थे। उनका जन्म और आचार्य भिक्षु का महाप्रयाण लगभग आसपास ही था। एक महापुरुष विदा हुआ और दूसरे महापुरुष ने मानो जन्म लिया।
आचार्य भिक्षु का ज्ञान गजब का था तो पूज्य जयाचार्य का ज्ञान भी गजब का था। ज्ञान की दृष्टि से भी वे आचार्य भिक्षु के उत्तराधिकारी थे। जयाचार्य का राजस्थानी भाषा का विशाल ग्रंथ भगवती की जोड़ है। कितने पद्यों और राग-रागिणियों से उसकी रचना की गई है। साथ में उन्होंने अपनी समीक्षा भी की है। वे बहुश्रुत थे। संस्कृत भाषा का भी ज्ञान था। उनके अपने ग्रंथ हम देखें प्रश्नोत्तर तत्त्व बोध में कितना तत्त्व ज्ञान भरा पड़ा है। झीणी चरचा में भी कितना तत्त्व ज्ञान भरा पड़ा है। उनका ज्ञान प्रवृद्ध था। आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को हम भ्रम विध्वंसक ग्रंथ से समझ सकते हैं। वे एक विशिष्ट तत्त्ववेत्ता आचार्य थे। उनका अपना साधना का विकास था। छोटी उम्र में साधु बन गए जो आगे चलकर हमारे आचार्य बन गए थे।
अंत समय में तो वे साधना में लग गए थे। जयाचार्य ने भी ध्यान साधना की थी। उनके शील चारित्र को भी हम देखें। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ में नए-नए आयाम उद्घाटित किए थे। आचार्य भिक्षु और जयाचार्य की तुलना कर सकते हैं, तो जयाचार्य और आचार्य तुलसी की भी हम कुछ अंशों में तुलना कर सकते हैं। जैसे आगम कार्य, संघीय दृष्टि से साध्वी प्रमुखाओं की एकाधिक नियुक्ति, संस्कृत भाषा के विकास के रूप में उन्हें देख सकते हैं। पट्टोत्सव, चरमोत्सव व मर्यादा महोत्सव भी जयाचार्य की देन है। हमें ऐसे आचार्य मिले जिन्होंने संपदा छोड़ी है। हमारा धर्मसंघ जयाचार्य से उपकृत हुआ है। ऐसे परमपूज्य जयाचार्य के प्रति मैं श्रद्धायुक्त वंदना अर्पित करता हूँ। पूज्यप्रवर ने गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित जयाचार्य के प्रति लिखित गीत का सुमधुर संगान किया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि जयाचार्य ने तेरापंथ के भंडार को भरने का प्रयत्न किया। उनकी बचपन से ही कंठस्थ के प्रति रुचि थी। उन्होंने अनेक आगमों को कंठस्थ किया था। कंठस्थ ज्ञान से उनकी मेधा निखरती गई। उन्होंने अंतिम समय तक उसे कंठस्थ रखा था। मुख्यमुनि प्रवर ने गीत से उनके प्रति अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की। साध्वीवर्या जी ने जयाचार्य के बचपन से जीवन प्रसंगों को समझाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।